डेंजर दलित: 'संगीत की कोई जाति नहीं होती'

'साहित्य आजतक' को इस बार सौ के करीब सत्रों में बंटा है, तीन दिन तक चलने वाले इस साहित्य के महाकुंभ में 200 से भी अधिक विद्वान, कवि, लेखक, संगीतकार, अभिनेता, प्रकाशक, कलाकार, व्यंग्यकार और समीक्षक हिस्सा ले रहे हैं. तीसरे दिन का आयोजन के आकर्षण होंगे जावेद अख्तर और चेतन भगत.

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गुरकंवल भारती उर्फ गिन्नी माही गुरकंवल भारती उर्फ गिन्नी माही

विवेक पाठक

  • नई दिल्ली,
  • 18 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:16 AM IST

साहित्य आजतक' के हल्लाबोल मंच का चौथा सत्र 'डेंजर दलित' में युवाओं के दलित आंदोलन की आवाज बन चुकीं जालंधर की दलित लोक गायिका गुरकंवल भारती उर्फ गिन्नी माही ने अपने क्रांतिकारी गीतों से समा बांधा.

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को अपना आदर्श मानने वाली गिन्नी ने कहा कि यदि आज हम लड़कियां इस मंच पर हैं तो वो बाबा साहेब की बदौलत है.  इस सत्र की शुरुआत गिन्नी ने लड़कियों को समर्पित पंजाबी गीत से किया. इस गीत के जरिए एक लड़की अपनी बात कहने की कोशिश कर रही है कि मेरे पैदा होने पर आप निराश मत होइए, क्योंकि लड़की होकर भी मैं लड़कों की तरह काम करना और नाम कमाना चाहती हूं.

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गिन्नी ने कहा कि संगीत की कोई जात नहीं होती, वो भविष्य में बॉलिवुड की पार्श्व गायिका बनना चाहती हैं. अपने विवादित गीत 'डेंजर चमार' की चंद पंक्तियां सुनाने के साथ उन्होंने  इसके बारे में बताया कि, च से चमड़ी, मा से मांस और र से रक्त होता है और इनसे मिलकर एक इंसान बनता है.

अक्सर बॉलिवुड में लोगों के प्रति एक धारणा बना दी जाती है, इस पर गिन्नी ने कहा कि जो आंदोलन उन्होंने चलाया है उसे जारी रखेंगी. उन्होंने कहा कि 'फैन बाबा साहेब दी' ने उन्हें पहचान दी और गिन्नी ने बाबा साहेब को समर्पित यह गीत भी सुनाया. गिन्नी ने कहा कि वे नुसरत फतेह अली खान और लता मंगेशकर को काफी पसंद करती हैं. उन्होंने नुसरत साहेब का 'अंखिया उडीक दिया' गाकर सुनाया.

जालंधर की दलित लोक गायिका गुरकंवल भारती उर्फ गिन्नी माही ने आठ साल की उम्र से गाना शुरू कर दिया था और आज उनकी आवाज 'डेंजर दलित' की नुमाइंदगी सी करती है. पंजाबी लोकगीत, रैप और हिप-हॉप की यह  मलिका बाबा साहेब आंबेडकर और गुरु रविदास के संदेश तो देती हैं.

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