लेखक यतींद्र मिश्र बोले- जिसे गा दिया गया वो अमर हो गया

सामवेद में जो लिखा गया उसमें एक सुर है, एक लय है. संगीत और साहित्य एकदूसरे से मिले हुए हैं. 

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साहित्य आजतक में सुनीता बुद्दिराजा और यतींद्र मिश्र [फोटो-आजतक] साहित्य आजतक में सुनीता बुद्दिराजा और यतींद्र मिश्र [फोटो-आजतक]

अमित राय

  • नई दिल्ली,
  • 17 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 11:42 PM IST

संगीत और साहित्य के मिलन का स्पष्ट रूप भक्तिकाल में दिखाई देता है. मीरा बाई के जो भजन हैं उसमें आगे उन्होंने राग का जिक्र कर दिया. सूर, मीरा, तुलसी की रचनाएं अमर हो गईं क्योंकि उन्हें गा दिया गया. इसी तरह फिल्मों की गीत भी वर्षों तक रहेंगे लेकिन उन कविताओं के बारे में सोचना होगा जिनका गायन नहीं हुआ. यह कहना है यतींद्र मिश्र का. वह साहित्य आज तक में संगीत में साहित्य विषय पर अपनी बात रख रहे थे. पंडित जसराज पर किताब लिख चुकीं सुनीता बुद्दिराजा भी इस सत्र में मौजूद रहीं.   

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संजय शर्मा के सवालों का जवाब देते हुए सुनीता बुद्दिराजा ने बताया कि किसी संगीतकार पर किताब लिखने की सबसे बड़ी चुनौती है कि सामग्री कैसे जुटाई जाए. जैसे जसराज का बचपन और उनका जीवन. इसके लिए जरूरी है कि आप उनके भावभूमि तक पहुंचें और उस स्तर तक अपने पाठक को भी ले जाएं.

यतींद्र मिश्र ने कहा कि हमारे यहां निरूक्त को एक लय में सुर में बांधा गया. सोमदेव के लिए गीत गाए जाते थे. भगवान को जगाने से लेकर सुलाने तक के पदवलियां हैं. सूफी संगीत तक साहित्य भले दूर हो लेकिन भक्तिकाल का समय संगीत और साहित्य के मिलन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.

सुनीता ने कहा कि संगीतकार संगीतकार होता है. वह हिंदू या मुसलमान नहीं होता. विस्मिल्ला खान विदेशों से आकर गंगा के पानी में शहनाई शुद्द करते थे. खान साहब कहते थे कि सुर महाराज सबके हैं और किसी के नहीं हैं.

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लता पर किताब लिख चुके यतींद्र मिश्र ने बताया कि पहली से दूसरी किताब को अलग करने के लिए वह किरदारों के साथ समय बिताते हैं, फिलहाल उन्होंने गिरिजा देवी, सोनल मान सिंह, विस्मिल्ला खान और लता मंगेशकर पर किताब लिखी है और इन सबका टोन अलग-अलग है. 

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