राजस्थान में कैसे हो रहा शिक्षा का भगवाकरण?

बीजेपी शासित राजस्थान शिक्षा के भगवाकरण की प्रयोगशाला बना तो वासुदेव देवनानी उसका चेहरा. संघ परिवार गदगद है तो विपक्ष मुखर.

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वासुदेव देवनानी वासुदेव देवनानी

संतोष कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 3:32 PM IST

''केंद्र-राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों से प्रतिनिधि सभा आग्रह करती है कि सस्ती व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सबको उपलब्ध कराने के लिए समुचित संसाधनों की व्यवस्था और उपयुक्त वैधानिक प्रावधान करे. अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों समेत सभी देशवासियों से आह्वान करती है कि शिक्षा प्रदान करने के पावन कार्य हेतु विशेषकर ग्रामीण, जनजातीय, अविकसित क्षेत्रों में वे आगे आएं, ताकि एक योग्य, क्षमतावान ज्ञान आधारित समाज का निर्माण हो सके, जो राष्ट्र के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.''
राजस्थान के नागौर में 11-13 मार्च को संपन्न आरएसएस की सालाना प्रतिनिधि सभा की बैठक में शिक्षा पर अलग से पारित प्रस्ताव की यह टिप्पणी संघ के एक 68 वर्षीय खांटी स्वयंसेवक के चेहरे पर सुकून और मुस्कराहट छोड़ गया, जो उस प्रदेश के शिक्षा मंत्री हैं. उन्होंने न किसी आलोचना की परवाह की और न ही अपनों की आपत्तियों की चिंता, अनुशासित स्वयंसेवक की भांति आगे बढ़ते गए, जिसे विपक्ष ने 'शिक्षा का भगवाकरण' करार दिया. लेकिन राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी इन आरोपों से तनिक भी विचलित नजर नहीं आते, ''भगवा तो हमारे तिरंगे में भी है. भगवा त्याग और समर्पण का प्रतीक है. अगर नए पाठ्यक्रम से राष्ट्रवाद के साथ-साथ आध्यात्मिक जुड़ाव की भावना पैदा होती है तो कोई उसे भगवाकरण कहे या कुछ और, फर्क नहीं पड़ता''.

देवनानी की इस आत्मविश्वास की वजह भी है. दिसंबर 2013 में राजस्थान में ऐतिहासिक जीत के बाद वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं तो देवनानी उस सरकार के हिस्सा नहीं थे. लेकिन अक्तूबर 2014 में उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और कैबिनेट मंत्री कालीचरण सर्राफ से स्कूल शिक्षा (प्राथमिक-माध्यमिक) विभाग लेकर स्वतंत्र प्रभार के रूप में उन्हें सौंपा गया. इसके बाद संघ के एजेंडे के मुताबिक राजस्थान के पाठ्यक्रम में बदलाव की पटकथा लिखी गई.

कैसे और क्या हुआ है बदलाव

देवनानी के मंत्री बनने के बाद शुरुआती हफ्तों में ही उनकी संघ के शिक्षा क्षेत्र से जुड़े सभी संगठनों के साथ विस्तृत चर्चा हुई. सूत्रों के मुताबिक, इन बैठकों में विद्या भारती, शिक्षण मंडल, शिक्षा बचाओ, शिक्षक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रतिनिधियों के साथ बैठक में तीन बिंदु सामने आए. एक, राजस्थान और देश के वीर-वीरांगनाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करना, दूसरे, पाठ्य-सामग्री ऐसी हो जिससे भारतीय संस्कृति पर गर्व की अनुभूति हो और तीसरे, छात्र देशभक्त और श्रेष्ठ नागरिक बनें. शिक्षण सत्र के मध्य में बदलाव संभव नहीं था इसलिए पूरक पाठ्यक्रम के जरिए महाराणा प्रताप, गोविंद गुरु और सुभाषचंद्र बोस जैसे महापुरुषों के पाठ जोड़े गए. उसके बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निर्देश पर तय किया गया कि पहली से पांचवीं कक्षा तक 75 फीसदी राजस्थान के बारे में तो 25 फीसदी भारत के बारे में पढ़ाया जाएगा तो छठी से आठवीं तक 50-50 फीसदी और 9वीं कक्षा से विश्व के बारे में पढ़ाया जाएगा. देवनानी ने पूर्ण बदलाव की दिशा में कदम उठाया और कमेटी गठित कर पाठ्यक्रम को फिर से लिखने की पहल की. अब 2016 से सभी पाठ्यक्रम बदले जा चुके हैं.

सबसे अधिक विवाद महापुरुषों को जोडऩे और पाठ्यक्रम से पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से जुड़े कुछ अंशों में काट-छांट को लेकर है. राज्यों के एकीकरण वाले पाठ में पहले नेहरू की तस्वीर थी, लेकिन अब सरदार पटेल की लग गई है. देवनानी का कहना है कि पहले इतिहास एक विशेष परिवार तक सिमटा था, लेकिन अब बोस, तिलक, पटेल, आंबेडकर वगैरह को भी जोड़ा गया है. पाठ्यक्रम में जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी के कश्मीर आंदोलन, पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन, पूर्व सरसंघचालक के.एस. सुदर्शन की पर्यावरण पर कविता, बीजेपी नेता मेनका गांधी, नानाजी देशमुख, वीर सावरकर जैसे सीधे संघ से जुड़े हुए नाम शामिल किए गए हैं. इसके अलावा संघ जिन्हें अपना आदर्श मानता हैं उनमें भी कई नाम पाठ्यक्रम में हैं. इनमें भास्कराचार्य, आर्यभट्ट संघ के प्रातः स्मरणीय पाठ का हिस्सा हैं तो विद्या भारती और शिक्षण मंडल के अनुरोध पर पन्ना धाय को विशेष महत्व के साथ जोड़ा गया.

लेकिन कक्षा सात में पढ़ाई जाने वाली रानी लक्ष्मीबाई वाली कविता भी हटा दी गई है. हालांकि देवनानी अब इसे सप्लीमेंट्री के तौर पर जोडऩे की बात करते हैं. कविता में सिंधिया को अंग्रेजों का मित्र बताते हुए राजधानी छोडऩे जैसी पंक्तियां है. कहा जा रहा है कि इसी वजह से कविता हटाई गई. पाठ्यक्रम में अब अकबर महान नहीं, बल्कि मुगल शासक मात्र है, उसकी जगह महाराणा प्रताप को महान बताया गया है. पाठ्यक्रम में सभी प्रधानमंत्री शामिल हैं. लेकिन बीजेपी नेता और पूर्व पीएम अटलबिहारी वाजपेयी तथा मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी (दोनों का कुल 8 साल का कार्यकाल) को करीब 9 पैराग्राफ जगह दी गई है तो 10 साल तक पीएम रहे मनमोहन सिंह को महज एक पैरा में समेट दिया गया है.

देवनानी ने सभी मॉडल स्कूलों का नामकरण स्वामी विवेकानंद के नाम पर किया. पाठ्यक्रम में भगवद् गीता, योग, वंदे मातरम, सूर्य नमस्कार, वसंत पंचमी पर सरस्वती पूजन और टॉपर्स छात्रों को पुरस्कार भी संघ के आदर्श एकलव्य और मीरा के नाम पर रखे गए हैं. दिलचस्प यह है कि स्थानीय स्तर पर गठित विद्यालय विकास समिति (एसडीसी) की बैठक के लिए अमावस्या तिथि निर्धारित की गई है.

संघपरक सामाजिक समरसता
संघ ने सामाजिक समरसता और पर्यावरण पर दो नए प्रकल्प शुरू किए तो देवनानी ने भी राजस्थान में इस एजेंडे को आगे बढ़ा दिया. पाठ्यक्रम में राज्य की सभी प्रमुख जातियों के सामाजिक नेताओं-गुरुओं को जगह दी गई है, जो राजनैतिक लिहाज से मुफीद भी हैं. गुर्जर समाज को लुभाने के लिए भगवान देवनारायण, जाट से महाराजा सूरजमल, राजपूत से महाराणा प्रताप, वीर दुर्गादास राठौड़, पृथ्वीराज चैहान, जैन से महावीर स्वामी, आचार्य तुलसी, विश्नोई से भांभोजी महाराज, गुरु जंभेश्वर, आदिवासी से गोविंद गुरु, ब्राह्मण से चाणक्य, सिंधी से हेमू कालाणी, महाराजा दाहरसेन, माली समाज से
ज्योतिबा फूले पाठ्यक्रम में जोड़े गए हैं.

विपक्ष आक्रामक

शिक्षा में बदलाव को लेकर कांग्रेस-वामपंथी संगठनों के अलावा बुद्धिजीवी भी बीजेपी के खिलाफ मुखर हो रहे हैं. लेकिन देवनानी का कहना है कि कांग्रेस ने अपने राज में राष्ट्रवादियों के पाठ हटा दिए थे. मुखर्जी, उपाध्याय, सावरकर के पाठ फाड़ दिए थे. राम-लक्ष्मण संवाद, कुंभ मेला तक हटा दिया था. लेकिन उनकी सरकार ने किसी महापुरुष को हटाया नहीं, बल्कि जोड़ा है. नेहरू पर विवाद पर उनका कहना है कि उनका जिक्र 15 जगहों पर है, लेकिन अन्य महापुरुषों को जोडऩे से पाठ का हिस्सा कम होगा.

लेकिन इंडिया टुडे से बातचीत में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं, ''हमने सांप्रदायिकता फैलाने के लिए नहीं, बल्कि सद्भाव के लिए बदलाव किया था. लेकिन बीजेपी जो कर रही है उससे सारा मुल्क चिंतित है. बीजेपी ने राजीव सेवा केंद्र का नाम बदलकर अटल सेवा केंद्र कर दिया, लेकिन हम शासन में आएंगे तो अटल का नाम नहीं हटाएंगे बल्कि नाम राजीव गांधी अटल सेवा केंद्र कर देंगे. इनकी सोच और हमारी सोच में बड़ा फर्क है.''

प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय शिक्षा के मौजूदा बदलाव को पश्चगामी कदम बताती हैं. वे कहती हैं, ''हर दो-चार साल में पाठ्य-पुस्तकों में बदलाव भी एक घोटाला है क्योंकि इससे प्रकाशक-वितरक को बड़ा फायदा मिलता है. शिक्षा के मामले में किसी भी सरकार को राजनैतिक लिहाज से मनमानी नहीं करनी चाहिए, बल्कि इस मामले में राजनैतिक विचार से दूर जाने-माने शिक्षा शास्त्रियों की टीम बनाकर पाठ्यक्रम तय करना चाहिए.''

एजेंडे के साथ आधुनिकता भी
संघ के एजेंडे के अलावा देवनानी तंत्र की खामियों को भी दूर करने का दावा कर रहे हैं. तबादले में ऑनलाइन काउंसलिंग, शाला दर्पण और शाला दर्शन नाम से पोर्टल बनाकर छात्र-शिक्षक का पूरा ब्यौरा, हर पंचायत में उत्कृष्ट विद्यालय, आदर्श विद्यालय की पहल कर बोर्ड के नतीजों को सुधारा है. इन प्रयासों से एक तरफ प्रगतिशील बनने की कोशिश तो दूसरी तरफ संघ एजेंडे की खुली पैरवी कर देवनानी भगवा चेहरे के रूप में उभर रहे हैं.

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