चीन से चल रहे विवाद के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस के दौरे पर हैं. वहीं, रूस ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता के लिए भारत का समर्थन किया है, जबकि उसकी नजदीकियां चीन से भी हैं. ऐसे में इसका भारत-चीन मसले पर क्या असर होगा, ये आगे पता चलेगा, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि रूस चीन का जूनियर पार्टनर नहीं है और न ही कभी होगा.
इंडिया टुडे के न्यूजट्रैक प्रोग्राम में मॉस्को से जुड़े इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड इकोनॉमी एंड इंटरनेशनल रिलेशंस (IMEMO) के रिसर्च फेलो अलेक्सी कुप्रियानोव ने कहा कि भारत और चीन दोनों रूस के स्ट्रैटजिक पार्टनर हैं. रूस शांति बनाए रखने को प्राथमिकता देता है. हम किसी तरह के युद्ध का समर्थन नहीं करते हैं.
उन्होंने कहा कि रूस चीन का जूनियर पार्टनर नहीं है और न ही कभी होगा. हम भारत के दोस्त हैं, जो हथियार उसे बेचते हैं, वही हम चीन को भी बेचते हैं. व्यापार के मोर्चे पर भी रूस चीन पर निर्भर नहीं है.
रूस किसी का पक्ष नहीं लेगाः वासिली बी काशिन
सेंटर फॉर कॉम्प्रिहेंसिव यूरोपियन एंड इंटरनेशनल स्टडीज में सीनियर रिसर्च फेलो वासिली बी काशिन ने कहा कि भारत-चीन के बीच जो चल रहा है वो दुखद है, लेकिन इस मसले पर रूस किसी का पक्ष नहीं लेगा और न ही किसी तरह के विरोध का समर्थन करेगा.
वासिली बी काशिन ने कहा कि रूस अपने संबंध वैसे ही रखेगा, जैसे हैं. जहां तक व्यापार का सवाल है तो रूस 40 फीसदी व्यापार यूरोपियन यूनियन और 15 पर्सेंट चीन के साथ करता है, इसलिए कहीं से भी रूस का व्यापार चीन पर निर्भर नहीं है. हालांकि चीन से रक्षा सौदों पर अच्छे संकेत मिले हैं. चीन की आर्मी ग्रोथ अच्छी हुई है, लेकिन चीन के कहने में रूस नहीं आएगा.
उन्होंने कहा कि भारत की डिफेंस पॉलिसी एक सोर्स पर डिपेंड नहीं है. वो यूरोपियन यूनियन से भी आर्म्स डील करता है और यूएस से भी, लेकिन अमेरिका डील को राजनीतिक एंगल से जोड़ देता है, जिसके फायदे-नुकसान दोनों है.
चीन का जूनियर पावर नहीं बनेगा रूस
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के फेलो नंदन उन्नीकृष्णन ने कहा कि भारत-चीन विवाद में रूस कोई दखल नहीं देगा. रूस का व्यापार सिर्फ चीन पर निर्भर नहीं है और उसके भारत से भी अच्छे संबंध हैं. जो चीन चाहता है, वैसा रूस कभी नहीं करेगा. चीन का जूनियर पावर रूस कभी नहीं बनना चाहेगा.
चीन से तनाव के बीच साथ आया रूस, किया UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन
पूर्व डिप्लोमेट कंवल सिब्बल ने कहा कि चीन दोनों देशों को स्ट्रैटजिक पावर देता है. रूस ने कई मौके पर भारत का साथ दिया है. कारगिल युद्ध के दौरान रूस ने अर्जेंट बेस पर हथियार उपलब्ध कराए थे. बाकी रूस के हथियारों के डील का तरीका भी अन्य देशों से अच्छा है. ऐसे में भारत से रूस के संबंध बेहतर ही रहेंगे.
अमेरिका के साथ सैन्य खरीद आगे बढ़ा रहा भारत
बता दें कि पिछले कुछ वर्षों में भारत तेजी से अमेरिका के साथ सैन्य खरीद आगे बढ़ा रहा है. इस ट्रेंड को आगे बढ़ाने में भारत-अमेरिका संबंध और अमेरिकी हथियारों की बेहतर क्वालिटी दोनों जिम्मेदार हैं. उधर, रूस रक्षा टेक्नोलॉजी में अपनी बढ़त बनाए रखने के लिए जूझ रहा है. भारत की जहां तक बात है तो उसके सभी तीन सशस्त्र बलों के इस्तेमाल किए जाने वाले अधिकांश हथियार रूस में ही बने हैं.
यूएस नहीं देता है चीन को हथियार
चीन को अमेरिका हथियारों की सप्लाई नहीं करता. इसलिए बीजिंग के लिए मॉस्को ही आधुनिक हथियारों का प्रमुख सप्लायर है. रूस अपने आप में हथियारों का बड़ा अड्डा है, लिहाजा मौजूदा समय में या आने वाले वक्त में चीन उसका सबसे बड़ा क्लायंट है. भारत, रूस का भले ही पारंपरिक साझेदार हो, लेकिन आजकल उसने कहीं और देखना भी शुरू कर दिया है.
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