रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस भेजने को लेकर मानवाधिकार आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बहस छिड़ गई है. मानवाधिकार आयोग के कार्यक्रम में जहां गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने साफ कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों को वापस उनके देश भेजा ही जाएगा. क्योंकि देश के संसाधनों पर पहला और वाजिब हक यहां के नागरिकों का है. खुफिया रिपोर्ट भी इनकी संदिग्ध गतिविधियों की तस्दीक करती हैं.
इस पर मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एचएल दत्तू ने जवाब दिया कि आयोग रोहिंग्या मुसलमानों के मानवीय अधिकारों की हिमायत में सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा. पक्षकार भी बनेगा और ये भी कहेगा कि वापस भेजने से पहले इनके जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने गुहार लगाई कि म्यांमार में मौजूदा हिंसक हालात को देखते हुए रोहिंग्या मुसलमानों के बच्चों और उनकी मांओं को वापस ना भेजा जाय.
आयोग की अध्यक्ष अनन्या चक्रवर्ती की ओर से कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया कि राज्यभर में रोहिंग्या बस्तियों के अलावा 44 बच्चे शेल्टर होम और सुधार गृहों में रह रहे हैं. इनमें से शेल्टर होम में 24 और सुधार गृह में 20 बच्चे रह रहे हैं. बच्चों की मांओं को अवैध रूप से भारत में रहने के आरोप में सुधार घरों में रहना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि राज्य की रोहिंग्या बस्तियों में रहने वाले बच्चों का अब तक कोई सर्वेक्षण नहीं कराया जा सका है.
चक्रवर्ती ने रोहिंग्या मुसलमानों के पक्ष में यह भी कहा कि बच्चे आतंकवादी नहीं बल्कि भविष्य हैं. कुछ लोगों की कारस्तानियों की वजह से पूरी कम्युनिटी को आरोपी मानकर मौत के मुंह में धकेलना उचित नहीं है. म्यांमार के मौजूदा हालात में बच्चों को वापस भेजना मौत के मुंह में धकेलने जैसा होगा. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई भी मूल मैटर के साथ 3 अक्टूबर को करना तय कर दिया है.
संजय शर्मा