FILM REVIEW: आसानी से जज्ब नहीं होती है 'जज्बा'

संजय गुप्ता ने साउथ कोरियन फिल्म 'सेवन डेज' की हिंदी रीमेक फिल्म 'जज्बा' बनाई है, जिसके साथ ऐश्वर्या राय बच्चन एक्टिंग की दुनिया में एक बार फिर से कमबैक कर रही हैं.

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दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब होगी जज्बा? दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब होगी जज्बा?

aajtak.in

  • मुंबई,
  • 08 अक्टूबर 2015,
  • अपडेटेड 1:37 PM IST

फिल्म का नाम: जज्बा  
डायरेक्टर: संजय गुप्ता
स्टार कास्ट: इरफान खान, ऐश्वर्या राय बच्चन, शबाना आजमी, जैकी श्रॉफ, चन्दन रॉय सान्याल, सिद्धांत कपूर, अतुल कुलकर्णी
अवधि: 122 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 2 स्टार

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के राइटर, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर संजय गुप्ता की कई फिल्में दर्शकों को रास आई हैं, जैसे 'आतिश', 'कांटे', 'मुसाफिर', 'शूटआउट ऐट लोखंडवाला' और 'शूटआउट ऐट वडाला' इत्यादि.

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इस बार संजय ने साउथ कोरियन फिल्म 'सेवन डेज' की हिंदी रीमेक फिल्म 'जज्बा' बनाई है, जिसके साथ ऐश्वर्या राय बच्चन एक्टिंग की दुनिया में एक बार फिर से कमबैक कर रही हैं. क्या यह फिल्म संजय गुप्ता और ऐश्वर्या राय बच्चन के लिए सफलता के नए आयाम जोड़ेगी? आइए गौर करते हैं.

कहानी:
यह कहानी है एक सफल और नामचीन वकील अनुराधा वर्मा (ऐश्वर्या राय बच्चन) की, जिसकी बेटी सनाया (सारा अर्जुन) को अगवा कर लिया जाता है और उसके पास अपनी बेटी को बचाने के लिए एक ही रास्ता होता कि वह हत्या और मर्डर के अपराधी नियाज का केस लड़े और उसको फांसी की सजा से मुक्त करवाए. इसी दौरान अलग-अलग गतिविधियों में अनुराधा का दोस्त इंस्पेक्टर योहान (इरफान खान), गरिमा चौधरी (शबाना आजमी), महेश मंगलई (जैकी श्रॉफ) भी कहानी का हिस्सा बनते हैं. अंततः सिर्फ चार दिनों में अनुराधा को अपनी बेटी और केस, दोनों के मद्देनजर काम करना पड़ता है. अब क्या अनुराधा अपनी बेटी को बचा पाती है? या केस हार जाती है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

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स्क्रिप्ट:
फिल्म की कहानी दिलचस्प है और साउथ कोरियन फिल्म 'सेवन डेज' से प्रेरित प्लॉट है. चार दिन, बड़ी समस्याएं और आखिरकार रिजल्ट. संजय गुप्ता ने अपनी ही स्टाइल में फिल्म को रंगा है. सिनेमेटोग्राफी और लोकेशंस काबिल-ए-तारीफ हैं. फिल्म की गति भी काफी सराहनीय है और एक के बाद एक घटनाओं को बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया है. फिल्म को शूट करने का ढंग काफी उम्दा है. फिल्म के संवाद भी गजब हैं, खास तौर से पूरी फिल्म के दौरान सबसे अच्छे अल्फाज इरफ़ान खान के द्वारा बोले जाते हैं.

अभिनय:
फिल्म से कमबैक कर रही ऐश्वर्या राय बच्चन ने एक मां के साथ-साथ जिम्मेदार वकील का किरदार निभाया है. ऐश्वर्या बेहद खूबसूरत हैं, लेकिन उनकी अदा काफी बनावटी लगती है. उनके द्वारा नेचुरल एक्टिंग की काफी कमी लगी. मां के दर्द वाले इमोशंस भी काफी जबरदस्ती वाले लगे, वहीं अपने डायलॉग और प्रतिभा से इरफान खान एक बार फिर से आपको एक्टिंग का लोहा मनवाने पर विवश करेंगे. जब भी इरफान के शेर आते हैं, तो तालियां बजती ही हैं. फिल्म में शबाना आजमी, जैकी श्रॉफ, सिद्धांत कपूर और चन्दन रॉय सान्याल ने अच्छा प्रदर्शन किया है.  

संगीत:
फिल्म में बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है. 'सरफिरा' गीत से फिल्म की शुरुआत होती है, जो शुरू में फिल्म का मूड बनाने में कामयाब रहता है.

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कमजोर कड़ी:
फिल्म की कहानी तो सिंपल है, लेकिन स्क्रीन पर अदायगी और एक मां का दर्द दिखाना और महसूस कर पाने में अंतर है. ऐश्वर्या राय बच्चन और बेहतर एक्टिंग कर सकती थीं. उनके कन्धों पर यह फिल्म टिकी थी, लेकिन अदायगी काफी हल्की और कमजोर रही. साउथ कोरियन फिल्म की अच्छी हिंदी रीमेक बना पाने में असफलता हाथ लगती दिखाई पड़ती है.

क्यों देखें:
इरफान के सहज अभिनय और संवादों के लिए आप यह फिल्म देख सकते हैं और अगर आप ऐश्वर्या राय बच्चन के बहुत बड़े फैन हैं, तो ही यह फिल्म देखें.

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