प्रवासी मजदूर आज देश के किसी भी हिस्से में हों, उनमें से अधिकतर की ख्वाहिश यही है कि किसी तरह अपने घर, अपने गांव लौट जाएं. ऐसे में उनके दर्द से जुड़ी हज़ारों कहानियां आज सड़कों, बस स्टैंड्स. रेलवे स्टेशनों आदि पर उन्हीं की जुबानी सुनी जा सकती है. लॉकडाउन का ये सबसे मार्मिक चेहरा है. लेकिन दुनिया से इंसानियत मिटी नहीं है. इसका सबूत देने के लिए ऐसे लोग भी हैं जो इन मजदूरों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं. ऐसे ही दो जुड़वां भाई हैं- राम और लक्ष्मण. दोनों आंध्र प्रदेश के पुट्टापर्थी में रहते हैं.
राम राव और लक्ष्मण राव का शुक्रिया अदा करते कश्मीर के 80 प्रवासी मजदूर थक नहीं रहे हैं. पुट्टापर्थी में पिछले दो हफ्ते इन 80 कश्मीरी मजदूरों के लिए बहुत बुरे गुजरे. न इनके पास पैसे बचे और न ही खाने का कोई ठिकाना रहा. ऐसे में इन सबकी एक ही दुआ थी कि किसी तरह घाटी में अपने घऱ वापस पहुंच जाएं.
स्थानीय अधिकारियों ने हाल में जब इन्हें बताया कि हैदराबाद से उन्हें उधमपुर जाने के लिए ट्रेन मिल सकती है. ये सुनकर कश्मीरी मजदूरों को खुशी हुई लेकिन पुट्टापर्थी से हैदराबाद 436 किलोमीटर दूर है. ऐसे में वहां तक पहुंचना भी टेढ़ी खीर था. वो भी ऐसी स्थिति में जब स्थानीय अधिकारियों ने साफ कर दिया था कि हैदराबाद तक जाने का इंतजाम उन्हें खुद करना पड़ेगा. प्राइवेट बस ऑपरेटर्स के जरिए बसों का इंतज़ाम करने की बात कही गई लेकिन साथ ही ये भी साफ कर दिया गया कि उसके लिए मजदूरों को 1.82 लाख रुपए देने होंगे.
पैसे पैसे को मोहताज मजदूरों के पास इतनी बड़ी रकम कहां से आती? उनकी परेशानी देख दो स्थानीय कारोबारी भाइयों- राम और लक्ष्मण ने स्थानीय प्रशासन, विधायक के सामने ये मुद्दा उठाया. लेकिन वहां से कोई खास प्रतिक्रिया न दिखने पर राम और लक्ष्मण ने खुद ही इन कश्मीरी मजदूरों की मदद करने का फैसला किया. उन्होंने लोन के तौर पर 1.82 लाख रुपए की रकम इन मजदूरों को दी. मजदूरों ने वादा किया कि वो घाटी पहुंचने के बाद उनकी इस रकम को लौटा देंगे.
लक्ष्मण राव ने फोन पर आजतक/इंडिया टुडे से कहा, “उन्होंने हमें रकम लौटाने का वादा किया, लेकिन अगर वो ऐसा करने में समर्थ नहीं होते तो भी कोई दिक्कत नहीं, हम सोचेंगे कि हमने सोशल सर्विस की.” लक्ष्मण ने ये भी कहा, “हम इन कश्मीरियों को जानते हैं जो बीते 20 साल से इस इलाके में रहते आए हैं. वो हमारे भाई हैं. हमने अधिकारियों से इनकी मदद की गुजारिश की, लेकिन उनकी ठंडी प्रतिक्रिया को देखते हुए हमने उन्हें 1.82 लाख का लोन देने का फैसला किया, ताकि वे घर जा सकें." लक्ष्मण ने ये भी बताया कि वो 2014 से वो चार बार कश्मीर गए, और हर बार वहां उनका अच्छा स्वागत किया गया.
दोनों भाइयों की दुकानें, पेट्रोल पम्प और रीयल एस्टेट का कारोबार है.
कश्मीरी शॉल बेच कर गुजारा करने वाले शेख तारिक ने इस मदद के लिए राव भाइयों का शुक्रिया जताते हुए कहा कि “ये दोनों मदद के लिए आगे नहीं आते तो हमारा घर लौटना मुश्किल था, अब हमें उम्मीद है कि घर पहुंच जाएंगे.” तारिक ने आगे कहा, "सरकार लंबे दावे करती है कि मजदूरों को मुफ्त में भेजा जा रहा है. हमें तीन बसों के लिए हर बस के 65,000 रुपये हिसाब से देने के लिए कहा गया. इसमें बसों के खाली वापस लौटने का किराया भी शामिल था. सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करने के लिए तीन बस की व्यवस्था की गई, लेकिन ये बहुत महंगा हो गया.”
तारिक का कहना है कि मजदूरों पर राव भाइयों का पैसा बकाया है और वो इसे हर सूरत में चुकाएंगे, चाहें उसके लिए घर का सामान ही क्यों न बेचना पड़े. अब ये कश्मीरी मजदूर यही दुआ कर रहे हैं कि हैदराबाद पहुंचने पर उन्हें उधमपुर के लिए ट्रेन मिल जाए. जम्मू और कश्मीर छात्र संघ एसोसिएशन के प्रवक्ता नासिर खुहामी ने भी इन मजदूरों की व्यथा पर एक ट्वीट किया.
इस ट्वीट में खुहामी ने लिखा- “मैंने आंध्र प्रदेश के मजदूरों का मुद्दा @DrJitendraSingh ji के समक्ष उठाया. सौभाग्य से उन्होंने ‘तथ्यों का पता लगाया जाएगा’ लिख कर जवाब दिया. मैं उनके जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था. दुर्भाग्य से पाया कि उनका पहले का ट्वीट डिलीट हो गया. क्या कोई समाधान नहीं होना, इसका कारण हो सकता है.” इस पर पीएमओ में राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने ब्यौरा मांगा. लेकिन अभी तक मजदूरों तक कोई मदद नहीं पहुंची.
कमलजीत संधू