लॉकडाउन ने बहुत सारी चीजों पर बंदिश लगा दी थी और उनमें से एक तो किताबों की खरीद-फरोख्त ही थी. पुरानी दिल्ली के दरियागंज की गलियाँ स्वादिष्ट ज़ायके और किताबों की दुकानों से पहचानी जाती हैं. भीड़भाड़ वाले इस इलाके में 4 मई की सुबह, लगभग 40 दिनों के लॉकडाउन के बाद किताबों की बिक्री पर लगा ताला खुल गया. इसकी शुरुआत राजकमल प्रकाशन समूह ने की और पाठकों के लिए किताब उपलब्ध कराने के लिए सुविधा शुरू कर दी है.
राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी कहते हैं, “यह संकट का समय है. बाहर खतरा है. लेकिन, खतरा उठाते हुए भी हम पूरी सावधानी के साथ पाठकों के लिए किताबें उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी को पूरी करेंगे. सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए एवं सैनिटाज़र की सुविधा के साथ हमने पाठकों के लिए किताब खरीदने की सुविधा उपलब्ध कराने का फैसला किया है. साथ ही ग्रीन ज़ोन और ऑरेंज़ ज़ोन में जहाँ स्थितियाँ दिल्ली के मुकाबले थोड़ी बेहतर हैं, वहाँ भी हम किताबें घर तक पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं. “
राजकमल प्रकाशन ने इसके अलावा वाट्सऐप्प के जरिए फ्री में लोगों को पढ़ने की सामाग्री उपलब्ध करवा रहा है. प्रकाशन ने पिछले 40 दिनों से लगातार फ़ेसबुक लाइव के जरिए लेखकों और साहित्य-प्रेमियों को जोड़ने की कोशिश भी की है. महेश्वरी कहते हैं, "लाइव में अपने प्रिय लेखक से जुड़ना पुरानी यादों को ताज़ा कर देता है, साथ इस विश्वास को मजबूत करता है कि इस मुश्किल घड़ी में हम एक हैं. अगर, हम एक हैं तो मुश्किलें छोटी हो जाती हैं.“
राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा रोज़ वाट्सएप्प के जरिए ख़ास तैयार की गई पुस्तिका साझा की जाती है. “पाठ-पुनर्पाठ” में रोज़ अलग-अलग तरह की पाठ्य सामाग्री को चुनकर तैयार किया जाता है ताकि पाठकों को सभी तरह के विधाओं का आस्वाद मिल सके. अब तक 10,000 लोग इस ग्रुप से जुड़कर पुस्तिका प्राप्त कर रहे हैं. फ़ेसबुक और ट्विटर के जरिए पाठकों ने इस पहल की भरपूर प्रशंसा की है.
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मंजीत ठाकुर