राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से अपने स्वभाव के विपरीत जाकर अपने पूर्व डिप्टी सचिन पायलट के खिलाफ ‘निकम्मा, नाकारा’ जैसी भड़ास निकालना महज पायलट की बगावत के चलते या नापसंदगी की वजह से ही नहीं है. राजस्थान कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक गहलोत ने पार्टी हाईकमान की भी अवहेलना की जहां से उन्हें संयम बरतने की सलाह मिल रही थी. और ये हताशा से ज्यादा डर की वजह से हुआ.
राजस्थान में वर्तमान में राजनीतिक स्थिति तेजी से बदल रही है और ऐसे में विधायकों की वफादारी सबसे अहम है. लेकिन लिफाफे के पीछे की जाने वाली फौरी गिनती से पता चलता है कि गहलोत के लिए निश्चित समर्थन देने वाले विधायकों की संख्या खतरनाक ढंग से नीचे गिरी है. अगर बीजेपी और पायलट कांग्रेस के सहयोगियों और निर्दलियों को तोड़ने में सफल रहते हैं या वो खुद ही मुख्यमंत्री से नाता तोड़ने का फैसला करते हैं तो गहलोत कैंप और बीजेपी समर्थित सचिन पायलट कैंप के बीच का अंतर 2-3 विधायक का ही रह सकता है.
पायलट या गहलोत, कोर्ट में फैसला टलने से किसकी बढ़ेंगी मुश्किलें
राजस्थान की मौजूदा राजनीतिक स्थिति खरीद-फरोख्त के लिए उपजाऊ नजर आती है. वफादारी इस बात पर निर्भर करेगी कि कौन बेहतर डील ऑफर करता है.
गहलोत विरोधी कैंप के आंकड़े
राजस्थान विधानसभा में बीजेपी के पास 72 विधायकों का एक मजबूत ब्लॉक है. इसे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन विधायकों और 1 निर्दलीय का प्रतिबद्ध समर्थन हासिल है. पायलट के वॉकआउट से पहले बीजेपी के साथ कुल 76 विधायक थे.
पायलट वॉकआउट से पहले
सचिन पायलट ग्रुप के पास कांग्रेस के 19 विधायक (स्पीकर ने 19 को नोटिस दिए हैं) हैं. इस तरह बीजेपी+ और पायलट ग्रुप को मिलाकर गहलोत के खिलाफ कुल 95 विधायकों का जोड़ बैठता है.
इस तरह बीजेपी+ और पायलट ग्रुप से बाहर 105 विधायक बैठते हैं. सदन की कुल सदस्य संख्या 200 है.
गहलोत कैंप के आंकड़े
गहलोत कैंप का दावा है कि पायलट ग्रुप के 19 विधायकों के जाने के बाद उसे 107 विधायकों का समर्थन हासिल है. यह संभव नहीं है. क्योंकि अभी बीजेपी+ और पायलट ग्रुप से बाहर सिर्फ 105 विधायक ही हैं.
यहां तक कि ये आंकड़ा भी निश्चित आंकड़ा नहीं हो सकता. आइए गणना करते हैं. पायलट की बगावत से पहले गहलोत को 124 विधायकों का समर्थन हासिल था.
पायलट के नेतृत्व में 19 विधायकों का समर्थन बरकरार न रहने से गहलोत कैंप का आंकड़ा 105 तक नीचे आ गया. वहीं बीजेपी+ और पायलट ग्रुप को मिलाकर 95 विधायक हैं.
गहलोत कैंप के 105 विधायकों में से राज्य विधानसभा के स्पीकर तब तक वोट नहीं दे सकते जब तक कि वोट या फ्लोर टेस्ट के दौरान टाई न हो. इससे ये आंकड़ा 104 पर आ जाता है.
राजस्थान में जल्द फ्लोर टेस्ट करवाने के मूड में कांग्रेस, ‘निकम्मा’ कमेंट पर गहलोत को नसीहत
चुरू क्षेत्र के सुजानगढ़ से एक कांग्रेस विधायक मास्टर भंवर लाल, जो कैबिनेट में सामाजिक न्याय मंत्री है, वो गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती हैं और गंभीर मेडिकल स्थिति से जूझ रहे हैं. वो फ्लोर टेस्ट में फिलहाल हिस्सा लेने की स्थिति में नहीं हैं. इससे गहलोत कैंप की ताकत 103 विधायक तक नीचे आ जाती है.
गहलोत के आंकड़ों की कमजोरी
यदि यह संख्या 103 (गहलोत कैंप) बनाम 95 (बीजेपी+ और पायलट ग्रुप) है तो गहलोत की नैया पार लग जाएगी भले ही स्पीकर और एक बीमार विधायक फ्लोर टेस्ट में वोट नहीं करें.
लेकिन यह वह जगह है जहां गहलोत की संख्या मुश्किल में पड़ सकती है. बीजेपी और सचिन पायलट कैंप की निर्दलीय उम्मीदवारों और गहलोत के सहयोगियों पर नजर है जो गुटबाजी के शिकार हैं.
सीपीएम की चिंता
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के विधानसभा में 2 विधायक हैं- बलवंत पूनिया और गिरधारी मेहारिया.
पूनिया की वफादारी पर पहले से ही सवालिया निशान है. राज्य में हालिया राज्यसभा चुनावों में पार्टी के निर्देशों की अवज्ञा के लिए 22 जून को सीपीएम की राजस्थान इकाई को पूनिया को एक साल के लिए पार्टी से निलंबित करना पड़ा.
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राजस्थान में अपनी विधानसभा यूनिट में विभाजन के डर से लेफ्ट पार्टी ने मंगलवार को अपने राज्य सचिव और पूर्व विधायक अमरलाल के जरिए एक बयान जारी किया. इसमें कहा गया कि उनकी पार्टी अभी न कांग्रेस के साथ है और न ही बीजेपी के साथ.
अगर सीपीएम के 2 विधायकों में से 1 अनुपस्थित या संदिग्ध हो जाता है, तो अशोक गहलोत के आश्वस्त वोट 102 तक कम हो जाएंगे.
बीटीपी का रुख
दो विधायकों के साथ भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) गहलोत को समर्थन दे रही थी. लेकिन कुछ दिनों पहले इस पार्टी के एक विधायक का वीडियो वायरल हुआ था जिसमें विधायक ने बताया था कि कैसे राज्य पुलिस ने उसकी चाबियां छीन ली थीं और बंद रहने के लिए मजबूर किया था. पार्टी ने एक बयान भी जारी किया कि वह कांग्रेस और बीजेपी दोनों से समान दूरी बनाए रखना चाहती है.
यदि हम संदिग्ध सूची में दो और विधायक जोड़ते हैं, तो गहलोत खेमे के साथ सुनिश्चित वोटों की संख्या 100 रह जाती है.
निर्दलीय
अगला निर्णायक फैक्टर निर्दलीय हो सकते हैं. विधानसभाओं और संसद में पाला बदलने के लिए सबसे पहले निर्दलियों पर ही अहम दलों की नजर रहती है.
पायलट ग्रुप का दावा है कि कुल 13 निर्दलीय उम्मीदवारों में से 2 और ने इसका समर्थन किया है. जबकि गहलोत कैंप इस दावे को खारिज करता है. यदि 2 निर्दलीय विधायकों को हटा दिया जाए तो गहलोत कैंप की संख्या 98 पर आ जाएगी और बीजेपी+ और पायलट ग्रुप की संख्या बढ़ कर 97 हो जाएगी.
और गहलोत 98 बनाम 97 विधायक मुकाबले से बचना चाहेंगे क्योंकि बीजेपी ने इस तरह की क्लोज फाइट को जीतने में पूर्व में ज्यादा महारत दिखाई है.
गहलोत की और चिंताएं
इस गणना में बहुत सारे किंतु-परंतु शामिल हैं लेकिन यह सिर्फ आंकड़ों की नाजुकता और गहलोत की चिंता के कारणों की ओर इशारा करती है.
गहलोत एक बुद्धिमान राजनेता हैं और बीजेपी के लिए निश्चित तौर पर मुश्किलें खड़ी कर देंगे. लेकिन उनकी चिंताओं को यह तथ्य और बढ़ाता है कि उनके साथ 98 विधायकों में 6 पहले बीएसपी में थे और चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे. उनके इस कदम ने बीएसपी सुप्रीमो को बहुत नाराज किया था और उन्होंने सहयोगी के रूप में कांग्रेस पर पीठ में छुरा घोपने का आरोप लगाया था.
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दिलचस्प बात यह है कि गहलोत के पास अब मूल कांग्रेस परिवार के केवल 82 लोग ही हैं. इससे गहलोत सरकार की निर्भरता बीटीपी के 2, सीपीएम के 2 और निर्दलीय विधायकों पर और बढ़ जाती है.
इस तरह गहलोत की विधानसभा में बढ़त इतनी पतली है कि अगर बीजेपी+ और पायलट कैंप ने कांग्रेस के कुछ और विधायकों को लुभाने या विश्वास मत के मामले में अनुपस्थित रहने के लिए तैयार करने में कामयाबी पाई तो गहलोत वाकई गंभीर परेशानी में होंगे.
राहुल श्रीवास्तव