कोरोना के इस संकट काल में लॉकडाउन की वजह से देश की इकोनॉमी को बड़ा नुकसान हुआ है. सरकार में इकोनॉमी के सुधार को लेकर मंथन जारी है. वहीं, मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी अपने स्तर पर चर्चा कर रहे हैं. यही वजह है कि बीते कुछ दिनों से राहुल गांधी अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञों से बातचीत करते नजर आ रहे हैं. इसी के तहत राहुल गांधी ने बजाज ऑटो के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव बजाज से बात की है. इस बातचीत के दौरान राजीव बजाज ने देश के माहौल पर बड़ा बयान दिया है.
- राजीव बजाज ने कहा कि हमारे यहां 100 लोग बोलने से डरते हैं, जबकि उनमें से 90 के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं होता. मेरे पिता की तरह बोलने का जोखिम बहुत कम लोग उठा पाते हैं. उन्होंने ये कहा कि उद्योगपित भी दूध के धुले नहीं हैं लेकिन सभी एक जैसे नहीं होते हैं.
आपको यहां बता दें कि बीते साल एक कार्यक्रम में राजीव के उद्योगपति पिता राहुल बजाज ने गृह मंत्री अमित शाह को कहा था कि इस वक्त देश में लोगों के बीच खौफ का माहौल है. लोगों को ये विश्वास नहीं है कि उनकी आलोचना को सरकार में किस तरह लिया जाएगा.
- 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज के संदर्भ में राजीव बजाज ने कहा कि हम यहां पैकेज की नहीं सिर्फ प्रोत्साहन की बात कर रहे है, जबकि दूसरे देशों में पैकेज दिया जाता है. कई लोग पूछते हैं कि भारत ने आम लोगों को सीधा सहयोग क्यों नहीं दिया.- लॉकडाउन पर राजीव बजाज ने कहा कि आम आदमी के नजरिए से यह काफी कठिन है, क्योंकि भारत जैसा लॉकडाउन कहीं पर भी नहीं हुआ. आज हर कोई बीच का रास्ता निकालना चाहता है, भारत ने सिर्फ पश्चिम को नहीं देखा, बल्कि उससे आगे निकलकर कठिन लॉकडाउन लागू किया.
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दुनिया के कई देशों में बाहर निकलने की अनुमति थी, लेकिन हमारे यहां स्थिति अलग रही. कमजोर लॉकडाउन से वायरस रहता है और सख्त लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था बिगड़ गई. हम इन दोनों के बीच फंस गए हैं. हमें जापान और स्वीडन की तरह नीति अपनानी चाहिए थी. वहां पर नियमों का पालन हो रहा है, लेकिन लोगों के लिए जीवन को मुश्किल नहीं बनाया जा रहा है.
- राजीव बजाज ने सलाह दी है कि मजदूरों को अगर 6 महीने तक ही पैसा दिया जाए तो मार्केट में डिमांड बढ़ेगी. कंपनियों को भी स्पेशलिस्ट बनना होगा. हम लोग विचारों से काफी खुले हैं. भारत को अपने विचारों का खुलापन नहीं खोना चाहिए.
- राजीव बजाज ने कोरोना को लेकर कहा कि अपने यहां फैक्ट और सच्चाई के मामले में कमी रह गई है, लोगों को लगता है कि ये बीमारी एक कैंसर जैसी है. अब जरूरत है कि लोगों की सोच को बदला जाए और जीवन को आम पटरी पर लाया जा सके. लेकिन इसमें एक लंबा वक्त लग सकता है.
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