राहुल गांधी बीते 14 जुलाई को कांग्रेस मुख्यालय में छत्तीसगढ़ में पार्टी की स्थिति और चुनावी तैयारियों पर चर्चा कर रहे थे. उस दौरान छत्तीसगढ़ के पार्टी अध्यक्ष भूपेश बघेल ने अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) के लिए "भाजपा की बी टीम्य शब्द का इस्तेमाल किया.
बघेल यह बताते कि जोगी की पार्टी किन-किन सीटों पर कांग्रेस को कितना नुक्सान पहुंचा सकती है, उससे पहले ही राहुल गांधी ने अपने इस फीडबैक को साझा कर दिया कि जोगी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी), छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच (सीएसएम) और नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीईपी) के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लडऩे की जुगत लगा रहे हैं.
राहुल गांधी को छत्तीसगढ़ का यह फीडबैक अपनी उस "गुप्त'' टीम से हासिल हुआ है जिसमें पार्टी के छात्र संगठन एनएसयूआइ के कई लोग शामिल हैं. यह टीम हर 15 दिन पर अपना फीडबैक पार्टी अध्यक्ष को भेजती है.
बैठक में शामिल लोगों के मुताबिक, राहुल गांधी ने इस संकेत के साथ बैठक का समापन किया कि '2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा बनाम अन्य की नींव डालने के लिए छत्तीसगढ़ सबसे उपयुक्त राज्य हो सकता है.''
छत्तीसगढ़ के सियासी मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार रमेश शर्मा कहते हैं, "प्रदेश कांग्रेस इकाई छत्तीसगढ़ के चुनाव को भले रमन सरकार से मुकाबले के तौर पर देख रही है पर राहुल गांधी छत्तीसगढ़ के चुनाव को नरेंद्र मोदी से मुकाबले के तौर पर देख रहे हैं.
अगर ऐसा नहीं होता तो 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से महज 0.75 फीसदी कम वोट पाने वाली कांग्रेस, राज्य के विधानसभा चुनाव को भाजपा बनाम अन्य का विकल्प बनाने के बारे में नहीं सोचती.''
छत्तीसगढ़ का सियासी समीकरण ही कुछ इस तरह का बन गया है कि यहां सत्ताविरोधी रुझान होते हुए भी कांग्रेस भाजपा से मात खा जाती है. पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) हालांकि सिर्फ एक सीट ही जीत सकी पर उसने कांग्रेस को सीधे तौर पर सात सीटों पर हरवा दिया.
दरअसल, उन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा आगे निकल गई. वहीं तीन सीटों पर बसपा ने कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेल दिया. इसी तरह जीजीपी ने पांच, सीएसएम मंच ने तीन, एनपीईपी और एनसीपी 1-1 सीटों पर कांग्रेस की हार की वजह बनी. कुल मिलाकर, इन दलों की वजह से कांग्रेस को 20 सीटों का नुक्सान हुआ.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है, "अगर 2013 में इन दलों के साथ कांग्रेस का गठबंधन हुआ होता तो भाजपा 30 सीटों पर सिमट कर रह जाती. सिर्फ बसपा से भी गठबंधन हुआ होता तो भी कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले 3.5 फीसदी अधिक वोट मिलते.''
वे बताते हैं, "इस बार पलड़ा कांग्रेस का भारी था क्योंकि लगातार तीन बार प्रदेश में सरकार बना चुकी भाजपा सत्ताविरोधी रुझान से जूझ रही है. लेकिन अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाकर खेल बिगाड़ दिया है.''
दरअसल, प्रदेश की सभी सीटों पर जोगी कांग्रेस के वोट काटने की स्थिति में हैं. कम से कम 20 सीटों पर तो उनका काफी प्रभाव है. ऐसे में सिर्फ बसपा से गठबंधन कांग्रेस के लिए काफी नहीं है. अगर जोगी एनपीईपी, जीजीपी, सीएसएम जैसी पार्टियों से पहले ही गठबंधन कर लेते हैं तो कांग्रेस के लिए और मुश्किल हो जाएगी.
ऐसे में हो सकता है कि जोगी की अगुवाई में बना गठबंधन भाजपा के बाद दूसरे नंबर पर आ जाए. यह स्थिति न सिर्फ छत्तीसगढ़ के लिहाज से कांग्रेस को नुक्सान पहुंचाएगी बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भी उसे झटका लगेगा. भाजपा यह कहने की स्थिति में हो जाएगी कि प्रदेश में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल भी नहीं बन सकी. ऐसे में राष्ट्रीय परिदृश्य में कांग्रेस की अहमियत और कम होगी.
कांग्रेस को इस बात का एहसास भी है. इसलिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व न सिर्फ बसपा बल्कि एनपीईपी, सीएसएम, जीजीपी, एनसीपी जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन करना चाह रही है. अगर कांग्रेस की यह पहल रंग लाती है तो वह न सिर्फ जोगी से होने वाले खतरे से बचेगी बल्कि राज्य में भाजपा से भी मुकाबला करने में कामयाब हो जाएगी.
इसके साथ ही उसे राष्ट्रीय स्तर पर मोदी बनाम अन्य के लक्ष्य की दिशा में बढऩे में भी सफलता मिलेगी. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बघेल भी मानते हैं कि चुनाव में बसपा और अन्य दलों से गठबंधन करके पार्टी को लाभ होगा.
लेकिन वे कहते हैं कि गठबंधन करने का फैसला पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व ही लेगा. बघेल का कहना है, "रमन सरकार के खिलाफ मुद्दों की कमी नहीं है. कांग्रेस आदिवासियों से लेकर किसानों तक के मुद्दे को लेकर गांव-गांव तक जा रही है. कांग्रेस लोगों को यह भी बता रही है कि अजीत जोगी की पार्टी, भाजपा की बी टीम है.''
लेकिन चुनाव में सियासी अंक गणित का ज्यादा महत्व है. बसपा पिछले विधानसभा चुनाव में करीब चार फीसदी वोट ले गई थी और भाजपा ने कांग्रेस से महज 0.75 फीसदी ज्यादा वोट पाकर कांग्रेस के मुकाबले 10 सीटें अधिक हासिल कर ली थी.
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, बीते जून में राहुल गांधी जब छत्तीसगढ़ गए थे तो उन्होंने पार्टी के बूथ पदाधिकारियों से कहा था कि उन्हें भाजपा से मुकाबला करना है, इसलिए अन्य दलों के लोगों से दो-दो हाथ करने में समय नष्ट न करें. अलबत्ता, इस बात के लिए उन्होंने जरूर सजग रहने कहा था कि किसी भी हालत में किसी भी सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार नहीं बनने पाए.
कांग्रेस के एक बड़े नेता कहते हैं, "कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व पिछले काफी समय से यह मन बना कर चल रहा है कि किसी भी हाल में भाजपा विरोधी वोटों को बंटने का अवसर नहीं दिया जाए. छत्तीसगढ़ की जंग को इस लिहाज से सिर्फ एक राज्य का चुनाव नहीं मानना चाहिए.
कांग्रेस के लिए यह एक अवसर है कि वह राज्य में भाजपा विरोधी सभी दलों से तालमेल कर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ प्लेटफॉर्म तैयार करे.'' ऐसे में क्या कांग्रेस अन्य दलों के साथ सीट बंटवारे में उदारता दिखाएगी? कांग्रेस के एक नेता बताते हैं, "कर्नाटक का उदाहरण सभी के सामने है.
चुनाव में कांग्रेस, जेडी (एस) के खिलाफ लड़ी थी. लेकिन भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस ने बिना शर्त जेडी (एस) को समर्थन दिया. अब वक्त आ गया है कि चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ लडऩे से बेहतर विकल्प है कि चुनाव पूर्व गठबंधन करके भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा जाए.''
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से जाहिर हो जाएगा कि भाजपा विरोधी मंच बनाने में कितना सफल होगी, फिलहाल पार्टी इसी दिशा में काम कर रही है.
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सुजीत ठाकुर / संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर