देश में जब किसी को फांसी की सजा दी जाती है तो उस वक्त वहां डॉक्टर का रहना भी जरूरी होता है, लेकिन अब देश में डॉक्टरों की संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) को चिट्ठी लिखकर इस पर ऐतराज जताया है. चिट्ठी में किसी डॉक्टर को फांसी के समय मौजूद रहने के लिए बाध्य किए जाने को मेडिकल सिद्धांतों के खिलाफ बताया गया है.
IMA के अध्यक्ष डॉ. के. के अग्रवाल ने MCI अध्यक्ष के नाम भेजी चिट्ठी में कहा है कि किसी दोषी को फांसी दिए जाते वक्त डॉक्टर की मौजूदगी मेडिकल सिद्धांतों का उल्लंघन है और एक तरफ से पेशेवर तौर पर गलत आचरण है. फांसी के वक्त डॉक्टर को ये मॉनीटर करना होता है कि जिस व्यक्ति को सजा देनी है उसके शरीर के अहम संकेत कैसे काम कर रहे हैं. फांसी दिए जाने के बाद मृत्यु की घोषणा भी डॉक्टर द्वारा ही की जाती है.
आधिकारिक तौर पर दी जाने वाली फांसी के वक्त डॉक्टरों की उपस्थिति मेडिकल सिद्धांतों के मद्देनजर बहुत विवादित मुद्दा है. मेडिकल सिद्धांत कहते हैं- 'नुकसान ना करो' और 'अच्छा करो'. फांसी के वक्त डॉक्टर की उपस्थिति की बाध्यता इन दोनों ही बातों के खिलाफ है. IMA की चिट्ठी में हवाला दिया गया है कि वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन (WMA) ने पहले 1981 में एक प्रस्ताव पास करके इस मुद्दे पर विरोध जताया था. 2008 में फिर संशोधन के जरिए ये मुद्दा उठाया गया.
डॉ. अग्रवाल ने इंडिया टुडे को बताया कि WMA की संशोधित जेनेवा घोषणा 'द फिजिशियन प्लेज' को 14 अक्टूबर 2017 को WMA महासभा में अपनाया गया. इस प्रस्ताव के मुताबिक फिजिशियन (डॉक्टर) को मौत की सजा से जुड़ी किसी भी प्रकिया के वक्त किसी भी तरीके से उपस्थित रहना अनैतिक है. प्रस्ताव में सभी डॉक्टरों से कहा गया है कि इस बाध्यता को खत्म कराने के लिए वो अपनी सरकारों या विधायिकाओं के सामने मुहिम चलाएं.
IMA के WMA के सदस्य होने की वजह से उसके प्रस्तावों को मानना जरूरी है. डॉ. अग्रवाल के मुताबिक IMA का भी यही मत है कि फांसी देते वक्त कोई डॉक्टर उपस्थित नहीं रहना चाहिए. डॉ. अग्रवाल ने कहा कि इस विषय में MCI से शीघ्र कदम उठाने के लिए आग्रह किया गया है. ऐसा नहीं होता है तो दिसंबर में अपनी बैठक में IMA इस विषय पर प्रस्ताव पास करेगा. IMA में 3 लाख डॉक्टर सदस्य हैं. इसकी 1700 स्थानीय शाखाएं और 31 राज्य शाखाएं हैं.
खुशदीप सहगल