Film Review: एक अहम मुद्दे की तरफ ध्यान आकर्षित करती है 'फुल्लू'

भारत एक कृषि प्रधान देश माना जाता है और आज भी यह विकासशील देश कहा जाता है, यहां आज भी शहर से ज्यादा गांव की आबादी है और जहां एक तरफ गांव के पुरूष पास के शहर जाकर कामकाज करने की कोशिश करते हैं वहीं आज भी समाज की सोच और कहीं-कहीं रूढ़िवादिता भी मौजूद है.

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फिल्म 'फुल्लू' फिल्म 'फुल्लू'

आर जे आलोक

  • मुंबई,
  • 16 जून 2017,
  • अपडेटेड 9:01 AM IST

फिल्म का नाम: फुल्लू
डायरेक्टर: अभिषेक सक्सेना
स्टार कास्ट: शारिब अली हाशमी, ज्योति सेठी, इनामुल हक ,नूतन सूर्या
अवधि: 1 घंटा 36 मिनट
सर्टिफिकेट: A
रेटिंग: 3 स्टार

भारत एक कृषि प्रधान देश माना जाता है और आज भी यह विकासशील देश कहा जाता है, यहां आज भी शहर से ज्यादा गांव की आबादी है और जहां एक तरफ गांव के पुरूष पास के शहर जाकर कामकाज करने की कोशिश करते हैं वहीं आज भी समाज की सोच और कहीं-कहीं रूढ़िवादिता भी मौजूद है. निर्देशक अभिषेक सक्सेना ने ग्रामीण महिलाओं की हर समस्या की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए इस फिल्म का निर्माण किया है जिसमें कुछ साल पहले आई हुई फिल्म 'फिल्मिस्तान' के एक्टर शारिब अली हाशमी को लिया गया है. बस इसी मुद्दे पर अभिनेता अक्षय कुमार ने भी एक फिल्म बनाई है जिसका नाम है 'पैडमैन' जो कि आने वाले महीनों में रिलीज होगी लेकिन उसके पहले महीने के उन्हीं दिनों पर प्रकाश डालने के लिए 'फुल्लू' फिल्म के मेकर्स ने यह फिल्म बनाई है आखिर कैसी बनी है फिल्म आइए फिल्म की समीक्षा करते हैं.

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कहानी
यह कहानी गांव के रहने वाले फुल्लू(शारिब अली हाशमी) की है जो अपनी मां और बहन के साथ गांव में रहता है. फुल्लू की एक खासियत है कि वह गांव की रहने वाली हर एक महिला के लिए जब भी शहर जाता है तो उनकी जरूरत का सामान जरूर लेकर आता है, फुल्लू निकम्मा है कोई काम वाम नहीं करता जिसे देखते हुए उसकी मां ने उसकी शादी बिगनी(ज्योती सेठी) से करा दी है लेकिन शादी के बाद भी फुल्लू के क्रियाकलापों में कोई बदलाव नहीं आता है वह हमेशा की तरह शहर आया जाया करता है लेकिन एक बार जब वह मेडिकल स्टोर पर जाकर के वहां की डॉक्टर साहिबा से महिलाओं की माहवारी के पैड के बारे में समझता है तो उसे आभास होता है कि उसके घर में रहने वाली महिलाएं यानी की मां बहन और पत्नी और साथ ही साथ उसके गांव की महिलाओं के लिए भी कम पैसों में पैड की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए. किसी कारणवश फुल्लू शहर जा कर के पैड बनाना सीखता है लेकिन जब यह सीख कर वापस गांव आता है तो उसके घरवाले ही उसकी इन बातों से खुश नहीं रहते हालांकि फुल्लू की बीवी को यकीन रहता है कि उसका पति एक ना एक दिन अपने मंसूबे में कामयाब होगा, कहानी में ट्विस्ट टर्न आते हैं और आखिरकार इसको अंजाम मिलता है जिसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

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जानिए आखिर फिल्म को क्यों देख सकते हैं
फिल्म की कहानी काफी दिलचस्प है जो कि महिलाओं के महीने में आने वाले पीरियड की तरफ डायरेक्ट इशारा करती है और उसके दौरान प्रयोग आने वाले पैड यूज करने के लिए बड़ा मैसेज देती है. फिल्म में यह कहानी तो एक गांव में बेस्ड है लेकिन इस कहानी से हर एक तरह का तबका कनेक्ट कर सकता है और सबसे ज्यादा ग्रामीण महिलाएं और पुरूष प्रधान घरों के पुरुष भी जरूर कनेक्ट करेंगे.

फिल्म में काफी अच्छा डायरेक्शन है साथ ही रियल लोकेशन फिल्म को और भी ज्यादा रिच बनाती हैं, गांव के कुछ बढ़िया लोकेशन और रोजमर्रा की जिंदगी के काम इसे और भी ज्यादा रियल बनाते हैं. फिल्मिस्तान नामक फिल्म से लोगों के दिलों में घर कर गए एक्टर शारिब अली हाशमी ने बहुत बढ़िया काम किया है जो कि आपको सोचने पर विवश भी करा देता है वही अभिनेत्री ज्योति सेठी का काम अच्छा है नूतन सूर्या ने भी बढ़िया काम किया है वही छोटे से रोल में अभिनेता इनामुल हक ने चेरी ऑन द टॉप का काम किया है बाकी सभी किरदारों का काम भी अच्छा है.

फिल्म का संगीत बढ़िया है और जमीनी हकीकत से जुड़े संगीत को ही बैकग्राउंड में भी प्रयोग में लाया गया है, गांव में गाए जाने वाले गीत स्क्रीन प्ले के साथ पिरोए गए हैं और 'भुनर-भुनर' वाला गीत काफी अच्छा है. यह फिल्म महिलाओं से जुड़ी महीने के दौरान आने वाली प्रॉब्लम की तरफ ध्यान आकर्षित करती है और आंखें खोलने का काम भी करती है. इस फिल्म की तुलना अक्षय कुमार की आने वाली सिमिलर मुद्दे पर बनी फिल्म 'पैडमैन' से नहीं की जा सकती क्योंकि अक्षय की फिल्म बड़े लेवल पर बनाई जा रही है जिसकी कमर्शियल और प्रोडक्शन वैल्यू और भी ज्यादा है.

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कमज़ोर कड़ियां
वैसे फिल्म का ट्रेलर देखकर के बहुत सारे लोगों ने अंदाजा लगा लिया होगा कि आखिरकार यह फिल्म किस तरीके की बनी होगी जिसकी वजह से शायद एक खास तरह का तबका ही इस फिल्म को देखने के लिए आए क्योंकि इस फिल्म में कोई सुपरस्टार या बड़ी स्टारकास्ट नहीं है.फिल्म की एडिटिंग काफी कमजोर है और साथ ही साथ स्क्रीन प्ले और बेहतर किया जा सकता था. जिसने ट्रेलर देखकर के मन बनाया होगा कि फिल्म देखनी है वही इस फिल्म को देख सकेगा बशर्ते कि वह एडल्ट हो क्योंकि यह एक ए सर्टिफिकेट के साथ रिलीज हुई फिल्म है.

बॉक्स ऑफिस
फिल्म का बजट बहुत ज्यादा नहीं है जिसकी वजह से अगर इसके सेटेलाइट और शुरुआती दिनों की कमाई ढंग से हो जाए तो मेकर्स को चिंता करने की जरूरत नहीं होगी क्योंकि यह फिल्म खास तरीके की जनता ही देखने जाएगी. वैसे फिल्म के मेकर्स भी इसकी बहुत बड़ी रिलीज नहीं कर रहे हैं बल्कि 200 से 300 स्क्रीन पर रिलीज करने की तैयारी है.

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