परशुराम जयंती: जानें भगवान परशुराम से जुड़ीं रोचक बातें

जिस समय इनका अवतार हुआ था उस समय पृथ्वी पर क्षत्रिय राजाओं का बाहुल्य हो गया था . उन्ही में से एक राजा ने उनके पिता जमदग्नि का वध कर दिया था, जिससे क्रुद्ध होकर इन्होंने 21 बार दुष्टों राजाओं से पृथ्वी को मुक्त किया.

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परशुराम जयंती 2018 परशुराम जयंती 2018

प्रज्ञा बाजपेयी

  • नई दिल्ली,
  • 18 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 12:10 PM IST

भगवान परशुराम जी का जन्म अक्षय तृतीया पर हुआ था इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है. परशुराम जी की गणना दशावतारों में होती है. परशुराम जयंती पर विशेष जानकारी दे रहे हैं श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी के न्यास परिषद सदस्य पंडित प्रसाद दीक्षित-

भगवान परशुराम स्वयं भगवान विष्णु के अंशावतार हैं. वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था. अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है. इस तिथि को प्रदोष व्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल ही है. इस बार 18 अप्रैल 2018 को परशुराम जयंती मनाई जा रही है.

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ऐसे नाम पड़ा था परशुराम

भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि के पुत्र थे. पुत्रोत्पत्ति के निमित्त इनकी माता तथा विश्वामित्र जी की माता को प्रसाद मिला था जो देव शास्त्र द्वारा आपस में बदल गया था . इससे रेणुका का पुत्र परशुराम जी ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे जबकि विश्वामित्र जी क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होकर भी ब्रह्मर्षि हो गए . जिस समय इनका अवतार हुआ था उस समय पृथ्वी पर क्षत्रिय राजाओं का बाहुल्य हो गया था . उन्ही में से एक राजा ने उनके पिता जमदग्नि का वध कर दिया था, जिससे क्रुद्ध होकर इन्होंने 21 बार दुष्टों राजाओं से पृथ्वी को मुक्त किया. भगवान शिव के दिए हुए परशु अर्थात फरसे को धारण करने के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा.

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पिता की आज्ञा का मान रखने के लिए परशुराम को अपनी ही माता का वध करना पड़ा था. पिता से ही वरदान मांगकर उन्होंने अपनी माता को पुन: जीवित करा लिया.

आज के दिन व्रती नित्य- कर्म से निवृत्त हो प्रातः स्नान करके सूर्यास्त तक मौन रहे और स्नान करके भगवान परशुराम की मूर्ति का षोडशोपचार पूजन करें तथा रात्रि जागरण कर इस व्रत में श्री राम-मंत्र का जप करना  सर्वश्रेष्ठ होता है . ऐसा करने से पुण्य का भागी बना जा सकता है.

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