मलाल यूसुफजई को दुनिया का सलाम

मलाला यूसुफजई नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति हैं. उनको पुरस्कार मिलना तालिबान के मुंह पर तमाचे के समान है.

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अशफाक यूसुफजई

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  • 14 अक्टूबर 2014,
  • अपडेटेड 3:31 PM IST

मलाला यूसुफजई को 2014 का नोबल शांति पुरस्कार की खबर सुनकर आम पाकिस्तानी और खासकर उनके गृह शहर स्वात के लोगों की खुशियों का ठिकाना नहीं है. वहां लोगों खासकर स्कूली लड़कियों ने मिठाइयां बांटीं और इसे उन लोगों के लिए खास खुशखबरी बताया, जो तालिबान आतंकियों के शिकार बने हैं.

स्वात जिले में 2009 से लेकर 2010 तक तालिबान का गैर-कानूनी कब्जा था और उस दौरान लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई पर पाबंदी लगा दी गई थी. उनकी दलील थी कि इस्लाम में औरतों को शिक्षा हासिल करने की इजाजत नहीं है और जो लोग अपनी बेटियों-बहनों को स्कूल में भेज रहे हैं, वे काफिर हैं, उन्हें मौत के बाद जन्नत नसीब नहीं होगी. उसी दौरान, तब 8वीं में पढ़ रही मलाला यूसुफजई ने बीबीसी उर्दू सेवा के लिए स्तंभ लिखना शुरू किया. अपने स्तंभों में मलाला लड़कियों की पढ़ाई की अहमियत बताया करती थीं और सभी लोगों से तालिबान के हुक्मनामों को दरकिनार कर अपनी बहन-बेटियों को स्कूल भेजने की वकालत करती थीं. इससे तालिबान के लड़ाके नाराज हो गए और अक्तूबर 2012 को मलाला जब घर जाने के लिए स्कूल वैन में सवार हो रही थीं, उनके सिर में गोली मार दी गई. इसके बाद वे बड़ी हिम्मत और दुनियाभर की मदद से मौत के मुंह से बाहर आईं लेकिन उनका हौसला और जज्बा और मजबूत हो गया.

मलाला साधारण परिवार से हैं. उनके पिता जियाउद्दीन यूसुफजई एक एनजीओ और निजी स्कूल चलाया करते थे. इसी स्कूल में मलाला हमले के पहले पढ़ा करती थी. हमले के बाद मलाला को ब्रिटेन ले जाया गया, जहां उनके सिर का कामयाब ऑपरेशन हुआ. अब वे इंग्लैंड में ही रहती हैं. उनके पिता जियाउद्दीन यूसुफजई को भी ब्रिटेन में पाकिस्तानी उच्चायोग में नौकरी दी गई क्योंकि घर लौटने के लिए माहौल साजगार नहीं था. उसके बाद से मलाला को उनकी शिक्षा की मुहिम के लिए कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार मिले. लेकिन शुक्रवार को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने की खबर मलाला के देशवासियों और खासकर स्वात घाटी के लोगों के लिए बेपनाह खुशी लेकर आया. स्वात कस्बे में ही मलाला का जन्म 1997 में हुआ था.

स्वात में उनके स्कूल की दोस्त मुश्तरी बीबी ने कहा, “मलाला यूसुफजई को नोबल शांति पुरस्कार की खबर से स्वात के लोग काफी खुश हैं.” वे कहती हैं कि इतने बड़े अंतरराष्ट्रीय सम्मान की खबर तालिबान के लिए भले मायूसी का सबब हो लेकिन आम लोग काफी खुश हैं. उनका यह भी कहना है कि इस खबर से स्वात में पढ़ाई-लिखाई में लोगों को दिलचस्पी और बढ़ेगी और मां-बाप अपनी बेटियों को बेखौफ होकर स्कूल भेजेंगे, जहां तालिबान ने 2007 से 2009 के अपने गैर-कानूनी कब्जे के दौरान 250 स्कूल तोड़ दिए थे. वे कहती हैं, “अब खौफ भाग गया. मलाला ने हमें पढ़ाई-लिखाई का विरोध करने वालों के सामने खुलकर खड़े होने की हिम्मत दे दी है. मलाला दुनिया के गरीब देशों में लड़कियों के लिए एक मिसाल बन गई हैं और उनकी मिसाल लड़कियों को पढ़ाई-लिखाई के लिए हिम्मत जुटा देगी.”

मलाला स्वात की लड़कियों के लिए पहले ही प्रेरणा की ताकत बन गई थीं और अब इस पुरस्कार ने साबित कर दिया कि वे असली नायक हैं. एक स्कूल शिक्षिका जावेरिया बेगम ने कहा कि मलाल बड़ी हिम्मतवाली लड़की है क्योंकि वह तालिबान के खिलाफ चट्टान की तरह खड़ी हुई और उस दौर में लड़कियों की पढ़ाई की अलख जगाई जब तालिबान लोगों के कत्ल में में व्यस्त थे. बेगम के मुताबिक, तालिबान के दौर में मलाला के लड़कियों की पढ़ाई के लिए लड़ाई को पहचान मिलना एक स्वागत योग्य मौका है और इसका असर इस देश में औरतों की पढ़ाई-लिखाई के मामले में में दूर तलक जाएगा.

मलाला का स्वात इलाके में खासकर औरतों और लड़कियों के दिल में काफी ऊंची जगह है. स्वात में तीसरी क्लास में पढऩे वाली शमीम बेगम बताती है कि स्कूल में सभी मलाला को नोबेल पुरस्कार की खबर सुनकर उछल पड़े. वह कहती है, “हम खुश हैं और चाहते हैं कि मलाला अपनी लड़ाई जारी रखें. यह पुरस्कार उन तालिबान लड़ाकों के लिए अच्छा सबक है जिन्होंने उन्हें गोली मारी थी.”

मलाला की स्कूल की दोस्त रुखसार शाह कहती है, “मैं इस मौके पर उन्हें सलाम करना चाहती हूं. उन्होंने पूरे कौम का मान बढ़ाया है.”  पाकिस्तान तहरीक इंसाफ के चेयरमैन इमरान खान ने मलाला को इस मौके पर बधाई दी. उन्होंने ट्वीट किया, “मलाला के नोबेल पुरस्कार से पाकिस्तानी होने के नाते गौरवान्वित हूं, खासकर तालीम के मकसद के लिए जो हमारी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए.”
2013 में नामजद होने के बावजूद मलाला को पुरस्कार नहीं मिला तो तालिबान ने खुशी जाहिर की थी लेकिन इस बार अंतरराष्ट्रीय बिरादरी खुश है तो तालिबान मातम मना रहे होंगे.

 (पत्रकार अशफाक यूसुफजई पाकिस्तान के पेशावर में रहते हैं)

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