गजल: साज और आवाज का बदलता दौर

नए दौर के कुछ गजल गायक नए-नए प्रयोग कर रहे हैं. उनका लक्ष्य गजलों को कुछ इस रूप में प्रस्तुत करना है जो युवा श्रोताओं को मोह सकें और गजलों का वह सुहावना दौर फिर शुरू हो सके.

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मोईना हलीम

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  • 05 अक्टूबर 2015,
  • अपडेटेड 5:12 PM IST

गायिका श्रुति पाठक मुंबई के हॉर्ड रॉक कैफे में हाथ में माइक्रोफोन पकड़कर मंच पर खड़ी हैं. ऊपर एरिक फ्लैपटन, बोनो, जिम मॉरिसन और मडोना के ढेरों पोस्टर लटक रहे हैं. उनके साथ गिटार पर ग्लेन फर्नांडिज और आकाशदीप गोगोई, ड्रम पर नवाज हुसैन, कीबोर्ड पर एंड्रयू फेराओ और सारंगी पर शाहरुख खान मौजूद हैं. यह दृश्य संगीत के आम कार्यक्रमों से अलग नहीं है, सिवा इसके कि श्रुति यहां गजल गाने के लिए आई हैं. ज्यों ही वे जगजीत सिंह की गजलें गाने की घोषणा करती हैं, प्रशंसक खुशी से अपने फोन हवा में लहराने लगते हैं.

अब देश की राजधानी की बात करते हैं. गायिका रश्मि अग्रवाल का गजल गायकी का अपना अलग अंदाज है. गजलों की मलिका बेगम अख्तर की शागिर्द शांति हीरानंद की छत्रछाया में गजल गायिकी की बारीकियां सीखने वाली रश्मि जैज की मधुर धुनों पर गजल के लक्रजों को पिरोने के लिए तैयार हैं. फिराक गोरखपुरी की रचना रात भी, नींद भी, कहानी भी एलेक्स फर्नांडिज के खूबसूरत जैज संगीत पर आधारित है. इसकी धुन नोरा जोंस के संगीत की याद दिलाती है. दूसरी तरफ तौसीफ अख्तर की नई विधा “गजलव” में गजल और केल्टिक लोकसंगीत का मिश्रण है. आशीष झा, मानस कुमार और संजोय दास जैसे भारतीय संगीतकारों के साथ जगजीत सिंह के शागिर्द अख्तर वेल्स के मशहूर गायक ग्वेनेथ ग्लिन और हार्प वादक जॉर्जिया रुथ को अपना जोड़ीदार मानते हैं. अख्तर कहते हैं, “दोनों ही शैलियां रोमांटिक कविता पर आधारित हैं, इसलिए उनमें काफी समानताएं हैं.”

साज में बदलाव
यह देखते हुए कि गजलों का दौर उतार पर है, ये तीनों कलाकार अपने संगीत को नए जमाने के हिसाब से बदल रहे हैं. जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने 1970 के दशक में पश्चिमी वाद्ययंत्रों के इस्तेमाल के साथ अपनी गायकी को सहज और आसान बनाकर गजलों को तब लोकप्रिय बना दिया था, जब वह लुप्त होने के कगार पर थी.
सिनेमा में गजलों पर पश्चिमी संगीत का प्रभाव भले रहा हो, लेकिन यह जगजीत सिंह ही थे, जिन्हें गजल गायकी में पश्चिमी वाद्ययंत्रों के इस्तेमाल का श्रेय दिया जाता है. वे जिन वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल करते थे, उनमें सैक्सोफोन, बास और गिटार शामिल होते थे. उसके बाद से गजल के कई अवतार देखने को मिले हैं, जिनमें हरिहरन का उर्दू ब्लूज और अब अख्तर का गजलव भी शामिल है. अक्चतर के ताजा एल्बम इश्क करो में भी गजलों के साथ पश्चिमी संगीत का खूबसूरत तालमेल दिखाई देता है. रश्मि अग्रवाल भी गजल गायकी में प्रयोग करना पसंद करती हैं. उनके पहले के प्रयोगों में जहां कथक नृत्यांगना विभा लाल के साथ जुगलबंदी हुआ करती थी और सूफी और भक्त कवियों की रचनाएं ली जाती थीं, वहीं अब वे जैज और पारंपरिक गजल संगीत के मिश्रण पर काम कर रही हैं. वे कहती हैं, “मिसाल के लिए वो हमसफर था के गाने में मैं एक शेर गाती हूं और फिर एलेक्स पियानो पर बिल्कुल वैसा ही जैज संगीत बजाते हैं, जिससे सुर और संगीत का लाजवाब तालमेल बन जाता है.” जैज़ संगीतकारों की टोली को जेड फैक्टर कहा जाता है. अख्तर ने अपनी गजलव विधा के साथ कुछ ऐसा ही कमाल कर दिखाया है. उनके कार्यक्रम ब्रिटेन और भारत के कई शहरों में हो चुके हैं. उनका पहला एल्बम सितंबर 2015 में पूरी दुनिया में रिलीज किया गया.

महफिल पर असर
गजल की पारंपरिक शैली की महफिलों का चलन तेजी से कम होता जा रहा है, यह बात नए दौर के गजल गायकों को खाए जा रही है. मशहूर गजल गायक तलत अजीज कहते हैं कि उनके संगीत कार्यक्रम काफी व्यस्त होते हैं, लेकिन ये कार्यक्रम उत्तर प्रदेश, गोवा, गुवाहाटी या कालीकट के छोटे शहरों में ही आयोजित होते हैं.
दिल्ली में एक कार्यक्रम के बारे में रश्मि काफी निराशा के साथ कहती हैं कि इस शहर में हालांकि अब भी गजलों के शौकीनों की संख्या अच्छी-खासी है, लेकिन महफिलों का पुराना रिवाज घटता जा रहा है. उनकी गुरु शांति हीरानंदजी का भी ऐसा मानना है. वे कहती हैं, “अब पहले वाला जमाना नहीं रहा. मेरा विश्वास है कि गजल को जब पारंपरिक शैली में गाया जाता है, तभी लफ्जों के सही मायने निकल पाते हैं और गजल की खूबसूरती उभरती है, लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि गजल गायकी को जिंदा रखने के लिए बदलाव जरूरी हैं.” शायद यही वजह है कि श्रुति पाठक की कोशिश को सराहा जा रहा है.

गजलर की उनकी अवधारणा में सिर्फ जुगलबंदी के लिए पश्चिमी वाद्ययंत्रों को शामिल करना भर नहीं है, बल्कि उनकी यह कोशिश पारंपरिक महफिलों के दौर की वापसी की भी उम्मीद जगाती है. हार्ड कैफेमें उनकी संगीत सभाएं भले ही नियमित रूप से न होती हों लेकिन यूट्यूब का उनका शो लोकप्रिय है. शो के सेट पर वे पारंपरिक कालीनों और मसनदों की जगह आधुनिक साज-सज्जा को तरजीह देती हैं, जिसमें खूबसूरत फर्नीचर और विंटेज फ्रेमों का इस्तेमाल होता है. पृष्ठभूमि में एक ग्रामोफोन और झाडफ़ानूस होता है. मर जावां और शुभारंभ जैसे गानों से मशहूर श्रुति कहती हैं, “गजलर मेरी जिंदगी में तब आया जब मैं पार्श्व गायन से हटकर कुछ अलग करना चाहती थी.” उनका मानना है कि गजल में नए जमाने का संगीत पिरोकर ही उसे युवाओं के लिए रुचिकर बनाया जा सकता है. दिल्ली के नासेर हरवानी अपनी महफिल में गजल शुरू करने से पहले उसके राग के बारे में बताते हैं. स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व लोकसभा सांसद अंसर हरवानी के बेटे और जावेद अख्तर के ममेरे भाई नासेर अक्सर शेर का अंग्रेजी में अनुवाद कर देते हैं, जिससे श्रोताओं को गजल आसानी से समझ आ जाती है और वे उनके इस अंदाज को सराहते हैं.

मुहब्बत के अलावा भी

रश्मि का मानना है कि पश्चिमी संगीत का इस्तेमाल करने के अलावा जगजीत सिंह ने गजलों को इसलिए भी लोकप्रिय बना दिया था कि वे हमेशा सरल और आसानी से समझ में आने वाली गजलों का चुनाव करते थे. वे कहती हैं कि जगजीत सिंह के कारण ही बेगम अख्तर और मेहदी हसन के युग के बाद '70 और '80 के दशक में गजलों ने बड़ी संख्या में लोगों को मुग्ध करना शुरू किया था. श्रुति कहती हैं, “ज्यादातर युवा सोचते हैं कि गजल उदासी भरी होती हैं, जिनमें खोई हुई मुहब्बत का दर्द बयान किया जाता है. लेकिन आप इस विधा की गहराई में जाएं तो पाएंगे कि इसमें और भी बहुत कुछ है.” निदा फाजली, वसीम बरेलवी, अहमद फराज, परवीन शाकिर जैसे समसामयिक शायरों ने सामाजिक विषयों पर भी कलम चलाई है और बदलते वक्त के दुख-दर्द और खुशियों के अलावा देशप्रेम को भी व्यक्त किया है.

जवाबी आलोचनाएं
म्यूजिक डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और सितारवादक तुषार भाटिया का मानना है कि भले ही जगजीत सिंह की पश्चिमी संगीत में गहरी रुचि रही, बॉलीवुड से उनके करीबी रिश्ते रहे और समसामयिक मुद्दों को आवाज दी हो, लेकिन उन्होंने गजलों की रूह को कभी हल्का नहीं होने दिया. अजीज का मानना है कि गजल की “रुह और मिजाज” को खत्म करना अन्याय होगा. गजल के साथ हो रहे प्रयोगों के बारे में वे कहते हैं, “जिस तरह कोई खूबसूरत लड़की कोई भी कपड़ा पहन सकती है, जब तक कि वह उसकी सुंदरता को बढ़ाता हो, गजलों के साथ भी कुछ ऐसा ही है. आधुनिक संगीत का यह गिलाफ गजल पर सुंदर लगना चाहिए, न कि उसे बदरंग करने वाला होना चाहिए. 2003 में मैंने गजलों के साथ ब्लूज को मिलाया था. मैं हर किसी को ऐसा करने की सलाह नहीं दूंगा, जो अपने क्षेत्र से बाहर जाकर कोई प्रयोग करे. यह कुछ-कुछ वैसा ही है कि आप ग्रेजुएशन किए बिना ही मास्टर्स की डिग्री लेने की कोशिश करें.” अख्तर कहते हैं, “यह सिर्फ जुगलबंदी के तौर पर वाद्ययंत्र का इस्तेमाल करना भर नहीं है. नदीम-श्रवण के साथ सहायक के तौर पर काम करने पर मुझे पश्चिमी संगीत की जानकारी मिली. मैंने रिकॉर्डिंग का अंतरराष्ट्रीय तरीका भी सीखा. इसी अनुभव के कारण मैं गजलों के साथ नए प्रयोग करने की हिम्मत कर सका और संगीतकारों को समझा सका कि मुझे क्या चाहिए.”

रश्मि अग्रवाल जानती हैं कि शुद्धतावादी लोग जैज संगीतकारों के साथ प्रयोगों को पसंद नहीं करेंगे, लेकिन वे अपनी कोशिश को आगे ले जाने के लिए दृढ़ हैं. उन्हें उम्मीद है कि 2 नवंबर को दिल्ली में श्रोता मंच पर उनके कार्यक्रम को जरूर पसंद करेंगे. वे कहती हैं, “जब आप कुछ नया रचते हैं तो आपको बने-बनाए नियमों को तोडऩा पड़ता है, वरना आप कुछ नया नहीं बना पाएंगे.” अख्तर चेतावनी देते  हैं, “शुद्धतावादियों को पीछे देखने के लिए बहुत कुछ है. लेकिन अगली पीढ़ी को वहीं तक रुकने की जरूरत नहीं है. आप नए प्रयोगों को स्वीकार नहीं करेंगे और चीजों को नए नजरिए से देखने के लिए तैयार नहीं होंगे तो आपको खत्म हो जाने के लिए तैयार रहना होगा.” गायक और नाटककार रीता गांगुली की राय इससे मिलती-जुलती है. वे अपनी उस्ताद बेगम अख्तर की मिसाल देते हुए कहती हैं, “उन्होंने भी अपने जमाने में गजल को आधुनिक रूप दिया था. मैं समझती हूं कि जब तक गजल के अर्थ और उसकी खूबसूरती का कत्ल नहीं किया जाता, तब तक इस बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.” नासेर कहते हैं, “गजल दिल से निकली हुई बात होती है और इसे दिल से गाएं तो लोग जरूर सराहते हैं. वाद्ययंत्र चाहे हिंदुस्तानी हों या पश्चिमी, गजल की लोकप्रियता बनी रहेगी.” उन्होंने कई पेचीदा समझे जाने वाले गजलों को बड़ी खूबसूरती के साथ पेश किया है.

भाटिया बेगम अख्तर के उस रिकॉर्ड को याद करते हैं, जिसमें क्लेरिनेट के साथ हारमोनियम का भी इस्तेमाल किया गया था, जिसे उन दिनों पश्चिमी वाद्ययंत्र समझा जाता था. उनके मुताबिक गजलों के साथ नए-नए प्रयोग करना कोई अनहोनी चीज नहीं है. वे कहते हैं, “जब पहली बार गजल को संगीत के साथ पेश किया गया था तो यह बिल्कुल नई बात थी. लेकिन लोगों ने इसे हाथोहाथ लिया.” कुछ भी हो, नए जमाने के ये गायक गजल को नई शक्ल देने के लिए नई उम्मीदों से लबरेज हैं.

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