बसपा की राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता रद्द करने की याचिका चुनाव आयोग पहुंच चुकी है. याचिका के मुताबिक बसपा राष्ट्रीय दल की मान्यता बनाए रखने की शर्तें पूरी नहीं करती. इसी आधार पर मायावती की पार्टी से राष्ट्रीय दल का दर्जा वापस लेने की मांग की गई है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील हरिशंकर जैन ने इस मामले पर चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया है. आयोग में दाखिल जैन की याचिका के मुताबिक किसी भी दल को राष्ट्रीय दल की मान्यता तभी मिलती है, जब कम से कम चार राज्यों में लोकसभा या विधान सभा चुनाव में डाले गए वैध मतों में से कम से कम 6 फीसदी हासिल किया हो. राष्ट्रीय दल की मान्यता के लिए अर्जी तभी दी जा सकती है, जब उस पार्टी के टिकट पर पिछले विधानभा चुनाव में कम से कम चार सदस्य जीत कर आए भी हों. पिछले लोकसभा चुनाव में सदन की कुल सीटों में से 2 फीसदी सीटें जीती हों, वो भी कम से कम तीन राज्यों में.
लोकसभा चुनाव में भी मायावती की झोली रही खाली
याचिका में BSP के राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता वापस लेने के पीछे ये दलील भी दी गई है कि कि दो साल पहले हुए पिछले लोकसभा चुनाव में
पार्टी ने 503 सीटों पर चुनाव लड़कर मह 4.3% वोट हासिल किए, पर सीट एक भी नही जीत सकी. वहीं 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में
403 सीटों पर लड़कर 25.95% वोट और 80 सीटें हासिल कीं.
कई राज्यों में एक भी सीट नहीं जीत पाई बसपा
2015 के बिहार विधानसभा में सभी 243 सीटों पर लड़ कर 2.1% वोट लिए पर सीट के नाम पर जीरो. छत्तीसगढ़ में 90 सीटों पर 4.27% वोट
और 1 सीट हासिल की. दिल्ली विधान सभा में 1.3% वोट, हिमाचल में 1.7% वोट, जम्मू कश्मीर में 1.41 फीसदी, पंजाब में 4.28%, महाराष्ट्र
में 2.3% वोट हासिल तो किए पर एक भी सीट नहीं मिली.
आंकड़ों के जंजाल में फंसा बसपा का हाथी
इन रिकॉर्ड और आंकड़ों को देखते हुए चुनाव आयोग के चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968 के तहत बहुजन समाज पार्टी को
राष्ट्रीय दल के रूप में बने रहने को चुनौती दी गई है. आयोग ने याचिका स्वीकार तो कर ली है. कायदे से इस पर पहले तो BSP को नोटिस
जारी कर जवाब मांगा जाएगा. फिर याचिकाकर्ता को बसपा के जवाब पर प्रत्युत्तर देना होगा. इसके बाद आयोग उचित समझेगा तो दोनों पक्षों को
सुनवाई के लिए तलब करेगा. आंकड़ों के जंजाल में फिलहाल तो बसपा का हाथी फंसता दिख रहा है.
संजय शर्मा / रोहित गुप्ता