वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में इन 5 वजहों से देखने को मिलेगी मोदी और ट्रंप में टक्कर

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए काफी अहम है. इसकी वजह है कि इसमें दुनिया भर के 60 देशों के प्रमुख और 350 नेताओं के अलावा 3000 से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ और व्यापारी पहुंच रहे हैं.

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मोदी और ट्रंप मोदी और ट्रंप

भारत सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 22 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 7:43 PM IST

स्विट्जरलैंड के दावोस में 23 से 26 जनवरी तक वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 48वीं बैठक होने जा रही है. यह बैठक दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लिए काफी अहम है. इसकी वजह है कि इसमें दुनिया भर के 60 देशों के प्रमुख और 350 नेताओं के अलावा 3000 से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ और व्यापारी पहुंच रहे हैं.

भारतीय पीएम मोदी सबसे बड़े प्रतिनिधिमंडल के साथ इस कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. इसमें 6 केंद्रीय मंत्री, 100 सीईओ और कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं. मोदी के साथ वित्त मंत्री अरूण जेटली, रेल मंत्री पीयूष गोयल और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान भाग ले सकते हैं. इसके अलावा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू तथा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस भी इस बैठक में निवेशकों को लुभाने पहुंचेंगे.

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दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका और विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने की जुगत में लगे भारत के लिए यह मौका काफी अहम है. भारत पिछले साल इस बैठक में नहीं था तो डोनाल्ड ट्रंप भी पिछले साल इसकी बैठक से कुछ समय पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने की वजह से इसमें नहीं पहुंचे थे. इस साल दोनों देशों के नेताओं के सामने निवेशकों और व्यापारियों को लुभाने की चुनौती होगी. आइए जानते हैं कि निवेशकों को लुभाने में किसका पलड़ा रहेगा भारी.

'मेक इन इंडिया' बनाम 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निवेशकों को लुभाने के लिए 'मेक इन इंडिया' का नारा दिया है. इसमें वह विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश कर, यहीं उत्पादन करने का न्योता दे रहे हैं. वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी अमेरिका को फिर से महान बनाने की अपील 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' नाम से कर रहे हैं. इसके तहत वह 'अमेरिकी बिजनेस, अमेरिकी उद्योग और अमेरिकी कर्मचारियों' का नारा दे रहे हैं. ट्रंप पिछले राष्ट्रपति बराक ओबामा पर आरोप लगाते रहे हैं कि उनके कार्यकाल में अमेरिका में चीन समेत दूसरे देशों के नागरिकों को नौकरी मिली और अमेरिका में बेरोजगारी फैली.

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आर्थिक सुधार बनाम आर्थिक संकट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में दिवालियापन पर कानून लाने, नोटबंदी करने, जीएसटी लागू करने और एफडीआई में ढील देने जैसे आर्थिक सुधार लागू किए हैं तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था इस समय मंदी से जूझ रही है. विकास दर भारत में भी धीमी हुई है, पर सरकारी अर्थशास्त्रियों और वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि आर्थिक सुधारों की वजह से ऐसा हो रहा है और इसके दूरगामी परिणाम अर्थव्यवस्था को मजबूत करेंगे. वहीं, अमेरिका में ताजा घटनाक्रम में अमेरिकी सीनेट के खर्च का विधेयक खारिज करने के बाद वहां पांच साल में पहली बार अमेरिकी सरकार का कामकाज ठप पड़ गया है. संघीय सरकार के लाखों कर्मचारी सोमवार से काम पर नहीं आ रहे हैं.

दुनिया को अलग संदेश देते दोनों नेता

भारत और अमेरिका के राष्ट्रप्रमुख व्यापक विरोध के बाद सत्ता में आए थे. इसके बाद भारतीय पीएम मोदी ने भले ही देश में विरोधों की अनदेखी की हो, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने रिश्ते सुधारने का काम किया है. यहां तक कि उन्होंने पाकिस्तान और चीन के साथ भी संबंध सुधारने की कोशिश की. चीन के साथ ही अमेरिका जैसी बड़ी आर्थिक शक्तियों और निवेशकों को लुभाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है. वहीं, अमेरिका को पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने और येरूशलम को इजरायल की राजधानी मानने जैसे कदमों पर अपने ही मित्र देशों का तीखा विरोध झेलना पड़ा है. मोदी अपनी वैश्विक छवि को लेकर सजग हैं तो ट्रंप इसकी परवाह करते नजर नहीं आते.

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राष्ट्रीय नीतियां भी बनेंगी अहम कारक

ट्रंप अपने देश में बेरोजगारी बढ़ने के लिए दूसरे देश के नागरिकों को जिम्मेदार ठहराते आए हैं. वह दूसरे देशों के सस्ते श्रम के मुकाबले 'अमेरिकी कामगारों' का नारा बुलंद कर रहे हैं. उनकी H1B वीजा नीति को भी विदेशी निवेश को आकर्षित करने में बाधा माना जाता है. ट्रंप अक्सर ओबामा प्रशासन पर आरोप लगाते रहे हैं कि अमेरिका के वैश्विक ताकतों के साथ 'एकतरफा और अनुचित संबंध' रहे हैं. वहीं, मोदी भारत में लचीले श्रम कानूनों के साथ ही सस्ते श्रम और निवेश करने की सीमा बढ़ाने का तर्क देकर निवेशकों को आसानी से लुभा सकते हैं.

निवेश और व्यापार का बेहतर माहौल

अमेरिका का आर्थिक संकट बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामने चिंता की वजह है तो दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की घरेलू नीतियां भी निवेशकों के मोहभंग का कारण बन सकती हैं. लेकिन, दूसरी ओर भारतीय अर्थव्यवस्था को मूडीज, एस एंड पी और आईएमएफ की अच्छी रेटिंग मिली है. विश्व बैंक ने भारत की 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' की रैंकिंग में भी सुधार किया है. यह सब निवेशकों को लुभाने में अहम रोल निभाएगा.

अंत में, इस सम्मेलन की महत्ता इसलिए भी समझी जा सकती है कि इस बार इसमें जी-7 अर्थव्यवस्थाओं के नेता बड़ी मात्रा में हिस्सा ले रहे हैं. इनमें इटली के पीएम पाओलो जेनितिलोनी, यूरोपियन कमीशन के प्रेसीडेंट ज्यां क्लॉड जंकर, ब्रिटिश पीएम थेरेसा मे, फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुल मैक्रोन, कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शामिल हैं.

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