प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद देश की केंद्रीय राजनीति में पकौड़ों की चर्चा है. मोदी ने हाल ही में अपने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि पकौड़े बेचकर रोज 200 रुपये कमाने वालों को भी नौकरीशुदा लोगों में गिना जा सकता है. कांग्रेसी नेताओं ने इस बयान को निशाने पर लिया था. अब बीजेपी ने मोदी के इस बयान को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है.
सोमवार को बीजेपी अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अमित शाह ने अपने पहले भाषण में मोदी के इसी बयान के इर्द-गिर्द अपनी बात रखी. दरअसल, इस बयान के बाद मोदी तमाम विपक्षी नेताओं के निशाने पर आ गए थे और अमित शाह और बीजेपी मोदी के इसी बयान के बचाव में उतर आए हैं.
हंगामा क्यों है बरपा?
दरअसल कांग्रेस और बीजेपी ने लोकसभा चुनावों से पहले वादा किया था कि अगर उनकी सरकार आई तो हर साल करोड़ों रोजगार पैदा किए जाएंगे. कांग्रेस को तो सरकार बनाने का मौका नहीं मिला, पर बीजेपी सरकार में है तो लोग उसी से हिसाब मांग रहे हैं. तब पीएम पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने 2013 में आगरा की एक रैली में कहा था कि उनकी सरकार हर साल एक करोड़ लोगों को रोजगार देगी. अब केंद्र सरकार बने करीब चार पूरे होने को हैं, इसलिए विपक्षी पार्टियां इसी सवाल को लेकर बीजेपी पर हमलावर हैं.
70 लाख रोजगार और 'पकौड़ा स्वरोजगार'
हाल ही में दो अर्थशास्त्रियों पलक घोष और सौम्य कांति घोष ने EPFO, ESIC, NPS और GPF में पंजीकरण के आंकड़ों के आधार पर दावा किया था कि 2017-18 में संगठित क्षेत्र के 70 लाख और असंगठित क्षेत्र में 80 लाख रोजगार सृजित होंगे. इसके बाद से केंद्र सरकार इन आंकड़ों का हवाला देकर अपना वादा पूरा करने का दावा कर रही है. हालांकि, इन आंकड़ों और इन दोनों अर्थशास्त्रियों के इन्हें हासिल करने पर विवाद हो रहा है. इसी के आसपास पीएम मोदी ने अपने एक टीवी इंटरव्यू में इन्हीं आंकड़ों के हवाले से 70 लाख रोजगार का हवाला दिया था और कहा था कि सड़क किनारे पकौड़े बेचने वाले पंजीकृत रोजगार की सूची में नहीं आते, पर वे भी पैसे कमा रहे हैं और परिवार पाल रहे हैं.
आंकड़ों पर उठे थे सवाल
ऊपर बताए गए दो अर्थशास्त्रियों के 70 लाख के रोजगार के आंकड़ों पर दूसरे अर्थशास्त्रियों ने सवाल उठाए थे. इनमें जयराम रमेश, प्रवीण चक्रवर्ती पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम आदि शामिल थे. चिदंबरम ने एक लेख में कहा था कि 150 लाख रोजगार पैदा होने से आने वाले दिनों में देश में रोजगार की समस्या नहीं रह जाएगी. चिदंबरम ने कहा था कि चीन की जीडीपी भारत से पांच गुना बड़ी है और वह भी साल में 150 लाख रोजगार ही दे पाती है तो भारत में इतने रोजगार का आंकड़ा संदेहास्पद है. जयराम रमेश और प्रवीण चक्रवर्ती ने कहा था कि EPFO में पंजीकरण का मतलब एक असंगठित रोजगार का संगठित क्षेत्र में आना होता है, न कि नया रोजगार बनना.
'भीख मांगने का रोजगार' से चिदंबरम निशाने पर
चिदंबरम ने मोदी के पकौड़े वाले रोजगार के बयान के बाद ट्वीट किया था, 'प्रधानमंत्री ने कहा कि पकौड़ा बेचना भी रोजगार है. उस तर्क से तो भीख मांगना भी रोजगार है. चलिए जीने के लिए भीख मांगने को मजबूर गरीबों या विकलांगों को भी नौकरीशुदा मान लेते हैं.' बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सोमवार को चिदंबरम के इस बयान पर कहा कि पकौड़ा बनाना कोई शर्म की बात नहीं है. उन्होंने कहा कि पकौड़ा बनाना नहीं बल्कि, पकौड़े बनाने वाले की तुलना भिखारी के साथ करना शर्म की बात है. शाह ने कहा कि जैसे एक चाय बेचने वाला देश का प्रधानमंत्री बना है, वैसे पकौड़े वाले का बेटा भी आगे जाकर कुछ बन सकता है.
पहले 'चायवाला' पीएम पर हुआ था विवाद
इससे पहले भी एक कांग्रेसी नेता के मोदी को 'चाय बेचने लायक' बताने वाले बयान को मोदी और बीजेपी ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था. 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी को बीजेपी की ओर से पीएम पद का उम्मीदवार बनाया गया था. इसके बाद जनवरी 2014 में कांग्रेस के अधिवेशन में मणिशंकर अय्यर ने कहा था, 'मोदी का पीएम बनना मुमकिन नहीं है, पर वह चाहें तो कांग्रेस अधिवेशन में आकर चाय बेच सकते हैं.' इस मामले को भी बीजेपी और मोदी ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और तब से मोदी लगभग सभी जनसभाओं में कहते थे कि लोकतंत्र कुछ परिवारों तक सिमट गया है और कुछ लोग यह नहीं चाहते हैं कि चाय बेचने वाला (वह खुद) देश का पीएम बने. मोदी 2013 से ही अपनी रैलियों में कहते थे, 'अगर देश बेचने वाला (कांग्रेसी नेता) पीएम बन सकता है तो चाय बेचने वाला क्यों नहीं?'
चाय के बाद बन सकती है 'पकौड़ा रणनीति'
मणिशंकर अय्यर के चायवाले बयान पर हुए विवाद के बाद बीजेपी ने इसका खूब माइलेज लिया था. लोकसभा चुनावों में 'चाय पर चर्चा' जैसे कई कार्यक्रम शुरू किए थे. कई शहरों पर 1 रुपये की मोदी चाय बेची जा रही थी. इस बार बीजेपी के निशाने पर पी. चिदंबरम हैं. लोकसभा चुनावों और आठ राज्यों के विधानसभा चुनावों में ज्यादा समय नहीं बचा है. हो सकता है कि आने वाले दिनों में बीजेपी की चुनावी रणनीति में चाय के बाद पकौड़े भी शामिल हो जाएं.
भारत सिंह