Modi@4: आधार पर लट्टू हुई सरकार, जनता लगाती रही प्राइवेसी की गुहार

नरेंद्र मोदी ने 2014 में 8 अप्रैल को बेंगलुरु में हुई चुनावी सभा के दौरान कहा था, 'मैंने आधार पर राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल उठाए, कोई जवाब नहीं मिला. यह राजनैतिक नौटंकी है.'

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सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2018,
  • अपडेटेड 10:23 AM IST

2014 में केंद्र की राजनीति में एंट्री से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की आधार कार्ड योजना के सबसे बड़े आलोचक थे. आम चुनाव के समय प्रचार के दौरान उन्होंने आधार को निराधार और यूपीए सरकार की राजनैतिक नौटंकी करार दिया था, लेकिन सत्ता में आते ही मोदी की सोच बदल गई और वो आधार के इस कदर दीवाने हुए कि इसे हर योजना के लिए अनिवार्य करते जा रहे हैं.

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नरेंद्र मोदी ने 2014 में 8 अप्रैल को बेंगलुरु में हुई चुनावी सभा के दौरान कहा था, 'मैंने आधार पर राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल उठाए, कोई जवाब नहीं मिला. यह राजनैतिक नौटंकी है.' इसके कुछ ही दिन बाद प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही उन्होंने आधार को अपना लिया और सभी के लिए अनिवार्य घोषित कर दिया.

5 महीने में 7 योजना

सत्ता में आने के शुरुआती 5 महीनों के अंदर सरकार की 7 बड़ी योजनाओं को आधार से जोड़ भी दिया गया. इसमें सरकारी कर्मचारियों की हाजिरी, कैदियों को आधार जारी करने का फैसला, पासपोर्ट, सिम कार्ड, पीएफ, जीवित रहने का प्रमाण, एलपीजी सब्सिडी के लिए बैंक खातों में सीधे नकद हस्तांतरण (डीबीटीएल), प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत खुले बैंक खातों को आधार से जोड़ना और डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट शामिल है.

इसकी अनिवार्यता को लेकर आम लोगों में लगातार संशय का माहौल बना रहा और लोगों में हड़बड़ी भी दिखी. आधार कार्ड बनवाने को लेकर हो रही दिक्कतों के बीच 121 करोड़ से ज्यादा आधार जेनरेट किए जा चुके हैं.

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आधार को लेकर मची उहाफोह के बीच सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि यह स्वैच्छिक होगा, न कि अनिवार्य. साथ ही यह भी कहा कि आधार योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटारा होने तक किसी को भी आधार न होने के कारण योजना के लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.

हालांकि इस आदेश के बाद सरकार ने आधार को कानूनी बना दिया, लेकिन इसको लेकर समय-सीमा बार-बार बढ़ाई जाती रही. दूसरी ओर, आम लोगों को बगैर आधार के जरूरी मदद नहीं दिए जाने की खबरें भी आईं.

बार-बार बढ़ती रही समयसीमा

फिलहाल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के इतर कल्याणकारी योजनाओं (पीडीएस, मनरेगा और पेंशन जैसी योजना) को आधार से लिंक करने की समय सीमा तीन महीने के लिए बढ़ाते हुए 30 जून तय कर दी है. इससे पहले यह समय सीमा 31 मार्च, 2018 थी.

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आधार की अनिवार्यता और वैधानिकता को चुनौती देने वाली ढेरों याचिकाओं पर करीब साढ़े चार महीने तक लंबी सुनवाई के बाद इस महीने की 10 तारीख को बहस पूरी की. इस दौरान 38 दिनों तक इसकी सुनवाई की गई. अब सबकी नजर कोर्ट के अंतिम फैसले पर टिकी है.

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फेस ऑथेंटिकेशन नया फीचर

आधार से जुड़ी जानकारी और सूचनाओं के लीक होने के डर और आलोचना के अलावा बुजुर्ग लोगों की समस्या को देखते हुए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइडीएआई) ने इसी साल जनवरी में ऐलान किया कि सभी अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के साथ-साथ अब चेहरे की पहचान के लिए फेस ऑथेंटिकेशन फीचर को भी शामिल किया जाएगा.

चेहरे की पहचान वाला फीचर फिंगरप्रिंट, आइरिश या ओटीपी में से किसी एक के साथ होगा. साथ ही यूआईडीएआई ने आधार की गोपनीयता बनाए रखने के लिए ओटीपी की तरह 16 अंकों की वर्चुअल आईडी देने की शुरुआत की है. यह सुविधा मार्च से शुरू हो गई और जून से अनिवार्य हो जाएगी. इसके बाद अब कोई भी एजेंसी वर्चुअल आईडी स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकेगी.

यूआईडीएआई एक ओर आधार की सुरक्षा को चाक-चौबंद बताता है तो दूसरी ओर इसकी सुरक्षा को लेकर नए फीचर एड भी कर रहा है.

लीक का दावा और पत्रकार पर FIR

दिल्ली पुलिस ने 2018 की शुरुआत में 3 जनवरी को 'द ट्रिब्यून' की एक पत्रकार रचना खेरा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई क्योंकि उन्होंने अपनी रिपोर्ट के जरिए बायोमेट्रिक पहचान दस्तावेज 'आधार' को लेकर दावा किया था कि 'एजेंट' की मदद से महज 500 रुपये में ही किसी भी व्यक्ति के बारे में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को दी गई सारी जानकारी हासिल की जा सकती हैं. हालांकि यूआईडीएआई ने इन दावों से सिरे से खारिज कर दिया.

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यह तो महज एक उदाहरण है. देश के कई जगहों से फर्जी आधार कार्ड होने की खबरें आई. यहां तक की बांग्लादेशियों समेत कई विदेशियों के पास से अवैध आधार कार्ड तक बरामद किए गए, खासकर पड़ोसी देशों से आए नागरिकों के पास से.

आधार नहीं तो राशन नहीं

दूसरी ओर, सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता के कारण कुछ लोगों को जान भी गंवानी पड़ी. पिछले साल सितंबर में झारखंड के सिमडेगा में आधार कार्ड नहीं होने के कारण कोयली देवी को राशन नहीं मिला जिससे उसकी 10 साल की बेटी संतोषी 4 दिन तक भूख से तड़पने के कारण अकाल मौत के मुंह में समा गई. देश के पिछड़े इलाकों में ऐसे कई लोगों को आधार नहीं होने के कारण खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

मार्च में आधार कार्ड नहीं होने के कारण झारखंड में करीब 12 लाख राशन कार्ड रद्द कर दिए गए. बाद में इस पर केंद्र ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी कि कितने राशन कार्ड आधार नहीं होने से रद्द किए गए. केंद्र सरकार आधार को व्यवस्थित करने को कोशिशों में जुटी रही तो इसके दुरुपयोग की खबरें भी आती रहीं.

नरेंद्र मोदी को सत्ता में आए 4 साल हो गए हैं और आधार कार्ड को लेकर जितनी चर्चा उसकी जनक कांग्रेस के कार्यकाल में नहीं हुई थी उतनी मोदी सरकार के काल में हुई. इसके समर्थक इसके पक्ष में लगातार दलीलें पेश करते रहे तो आलोचक इसे देश के सवा सौ करोड़ नागरिकों की निजता पर अतिक्रमण करार देते रहे.

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आधार की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट को अब फैसला करना है. फैसला चाहे जो हो, इसके जरिए निचले स्तर पर खाद्यान्न वितरण के अलावा अन्य मूलभूत सुविधाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार में कमी आई है, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जिन्हें आधार नहीं होने के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

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