अक्षय कुमार की बॉस इज नॉट राइट, एक्शन के अलावा हर चीज का पाणी निकल गया

फिल्‍म बॉस की फाइट ही राइट है, बाकी सब रॉन्ग है. फिल्म के गाने, इमोशन और रोमैंस कमजोर कहानी की ब्रेड के बीच में ठूंसे गए अधपके आलू और मसालों की ओवरडोज की तरह हैं. कमजोर कहानी और घालमेल के फेर में बॉस का पाणी निकल गया.

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सौरभ द्विवेदी

  • नई दिल्‍ली,
  • 15 अक्टूबर 2013,
  • अपडेटेड 10:04 AM IST

फिल्म: बॉस
डायरेक्टर: एंथनी डिसूजा
एक्टर: अक्षय कुमार, रोनित रॉय, मिथुन चक्रवर्ती, शिव पंडित, अदिति राव हैदरी, डैनी डेंगजेप्पा, जॉनी लीवर, परीक्षित साहनी, प्रभु देवा (गेस्ट अपीयरेंस) योयो हनी सिंह (गेस्ट अपीयरेंस) सोनाक्षी सिन्हा (गेस्ट अपीयरेंस)
ड्यूरेशन: 143 मिनट
पांच में से दो स्टार
'बॉस' एक मलयाली फिल्‍म 'पोकरी राजा' पर आधारित है.

पिछले दिनों इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में अक्षय कुमार ने कहा था कि आजकल पब्लिक स्मार्ट हो गई है. सिर्फ सुपर स्टार के सहारे बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल नहीं की जा सकती. हमारे प्यारे खिलाड़ी कुमार ने सही कहा और इसलिए मैं भी सही सही ही कहूंगा. वैसे भी अपणे को क्या है. अपणे को बस पिक्चर देखके पब्लिक को सही सही बताणे का है. तो फिल्म बॉस का वर्डिक्ट ये है कि इसकी फाइट ही राइट है, बाकी सब रॉन्ग है. फिल्म के गाने, इमोशन और रोमैंस कमजोर कहानी की ब्रेड के बीच में ठूंसे गए अधपके आलू और मसालों की ओवरडोज की तरह हैं. कमजोर कहानी और घालमेल के फेर में बॉस का पाणी निकल गया.

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फिल्म कहानी है बॉस (अक्षय कुमार) की, जिसे उसके सत्यवादी पिता सत्यकांत शास्त्री (मिथुन चक्रवर्ती) ने घर से निकाल दिया. वजह, बालक को अपने पिता का अपमान बर्दाश्त नहीं. घर से निकले बॉस को पनाह दी प्रकट रूप से ट्रांसपोर्ट और परोक्ष रूप से कॉन्ट्रैक्ट तुड़ाई का काम करने वाले बिग बॉस (डैनी) ने. वो बन गए छोरे के कुरुक्षेत्र बेस्ड ताऊ. शास्त्री जी का एक और बेटा है शिव (शिव पंडित). जिसे हो जाता है अपनी कॉलेज दोस्त अंकिता (अदिति राव हैदरी) से प्यार. मगर अंकिता की शादी उसके क्रूर पुलिस अधिकारी भाई आयुष्मान माथुर (रोनित रॉय) ने प्रमोशन की खातिर मंत्री प्रधान (गोविंद नामदेव) के लफूझन्ना टाइप छोरे से तय कर रखी है. बस यहीं से क्लैश ऑफ इंटरेस्ट शुरू हो जाता है. एक तरफ है अपने पिता की आंखों में फिर से खुद के लिए प्यार देखने को आतुर बॉस तो दूसरी तरफ है एसीपी आयुष्मान.नतीजा तो आपको पता ही होगा क्योंकि बॉस इज राइट और उसे बस पाणी निकालने का है.

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फिल्म की कहानी बाप-बेटे के एंगल पर सबसे ज्यादा फोकस करती है. मगर अक्षय और मिथुन के बीच का एक भी सीन ऐसा नहीं, जिससे हम पापा से प्यार करने वाले लोग प्रभावित या भावुक हो सकें. शिव और अदिति का रोमैंस भी फिल्म में जबरन झगड़ा पैदा करने के लिए डाला गया है. शिव की एक्टिंग कुछ ठीक ठाक है और अदिति को देखकर लगता है कि उनसे बस बीच पर बिकनी सीन और कुछ कमजोर पलों की पटकथा रखने को ही कहा गया था.

मिथुन चक्रवर्ती को अपनी दूसरी इनिंग में हमने गुरु जैसी फिल्मों में बुढ़ापे को, सिद्धांतों को गरिमा बख्शते देखा है. यहां उनके करने को ज्यादा कुछ था ही नहीं. चुनिंदा फिल्में करने की बात करने वाले एक और वेटरन एक्टर डैनी ने यह फिल्म क्यों की. यह वही जानें. आखिर बिग बॉस बनने का ऐसा भी क्या फितूर सवार था उन पर. बाकी साइड रोल में बस बॉस के साइड किक बने और घड़ी घड़ी हिचकी मारते संजय मिश्रा कुछ हंसा पाते हैं. जॉनी लीवर बॉस के मामा इंस्पेक्टर जोरावर के रोल में अपने पुराने जलवी की परछाईं भर लगते हैं. फिल्म जिन दो लोगों के कंधों पर टिकी है. अक्षय और रोनित, उन्होंने वही किया, जिसकी उम्मीद थी.

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अक्षय ने शानदार फाइट की. चेज सीन किए और जोर जोर से डायलॉग बोले. हंसाने में वह उतने कामयाब नहीं रहे. हां फाइट के दौरान डैशिंग खूब लगे. रोनित राय उस कठोरता को बरकरार रख पाए, जिसकी उनके किरदार से उम्मीद की जा सकती थी.

फिल्म के अंत में कुरुक्षेत्र के मैदान की लड़ाई महाभारत के मिथक के साथ भद्दा मजाक साबित होती है. उसके पहले भी कई पब्लिक की जेब पर भारी प्रहसन खेले गए हैं. फिल्म कुछ आगे बढ़ती है और सीन गाने की गुंजाइश तलाशने का काम पूरा कर किनारे हो जाते हैं. गाना झेलने के बाद फिर कुछ आगे और फिर वही लोहालाट अत्याचार. ऐसे में हम न छोड़ें में प्रभु देवा की आमद या फिर यो यो हनी सिंह का हरियाणवी रैप भी फिल्म को घसीट नहीं पाता है.

डायरेक्टर डिसूजा ने इससे पहले एक और महाअझेल चाट फिल्म ब्लू बनाई थी. उसके बाद वह गुमनामी में गुनगुना रहे थे. मगर बकौल अक्षय ये जरूरी तो नहीं कि किसी की फिल्म फ्लॉप रही हो, तो वह डायरेक्टर बुरा हो. अब हम आपको बता रहे हैं अक्की, इनसे न हो पाएगा.

बॉस का यह हरियाणवी रूप हमारे अक्षय कुमार को हरा गया. ये मैं बार बार हमारे इसलिए कह रहा हूं क्योंकि खान भाइयों की तरह अक्की की भी एक बड़ी फैन फॉलोइंग है, जो उनकी फिल्मों को जबरदस्त ओपनिंग की गारंटी देती है. मगर उसके बाद तो कहानी ही बॉस होती है. एक्टिंग भी जरूरी है. मगर इन सबका पाणी निकला और जो बहा तो बस बहता ही रह गया.

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अगर मारधाड़ के शौकीन हैं, तो बॉस देख सकते हैं. वर्ना जेब गीली करने का क्या फायदा.

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