योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा है कि 2013 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अध्यादेश फाड़ते वक्त सही शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया था. अहलूवालिया ने कहा कि बावजूद इसके तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस्तीफा न देकर सही काम किया था.
समाचार एजेंसी आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में अहलूवालिया ने कहा कि अगर राहुल गांधी मनमोहन कैबिनेट के सदस्य होते तो दूसरी बात होती, लेकिन वे एक पार्टी के उपाध्यक्ष थे." बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग रख दिया है.
'पार्टी के अंदर असहमति में कुछ भी गलत नहीं'
बता दें कि 2013 में राहुल गांधी ने दोषी सांसद के मुद्दे पर एक अध्यादेश को फाड़ दिया था. योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने अपने नई किताब बैकस्टेज : 'द स्टोरी ऑफ इंडियाज हाई ग्रोथ इयर्स' में इस घटना का विस्तार से उल्लेख किया है.
इस मुद्दे पर मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा, "आपको एहसास होना चाहिए कि लोकतंत्र में एक पार्टी के अंदर असहमति होने में कुछ ही गलत नहीं है. मुझे लगता है कि कि एक ऐसी पार्टी को चलाने में बहुत योग्यता की जरूरत नहीं है, जहां हर किसी के विचार केवल पार्टी के नेतृत्व की सोच से मेल खाते हों."
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राहुल ने बकवास चीजें कही, कठोर शब्द इस्तेमाल किया
पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह के सहयोगी अहलूवालिया ने कहा कि यह लोकतांत्रिक असंतोष का एक उदाहरण है (पार्टी के अंदर), मेरे विचार में इसमें कुछ भी गलत नहीं है. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि राहुल गांधी ने खुद कहा है कि हो सकता है कि जो शब्द उन्होंने इस्तेमाल किया है वो बहुत सही नहीं थे. मुझे लगता है कि उन्होंने पूरी तरह से बकवास चीजें कहीं? कठोर शब्द. लेकिन जो असल बात है वो ये कि अगर वो खुद वहां गए होते और कहते कि जो ऐसी चीजें हुई हैं उस पर मुझे शक है...मुझे लगता है कि तब कुछ भी गलत नहीं हुआ होता. लोकतंत्र इसी का नाम है. लोगों को खुलकर अपने विचार जाहिर करने चाहिए, और यदि आप उनसे असहमत हैं तो आप उस पर चर्चा करनी चाहिए, और उनलोगों ने वहीं किया."
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में दागी जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने के खिलाफ फैसला दिया था. इस फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने अध्यादेश जारी किया था. उस समय इसके खिलाफ जाते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था, "यह पूरी तरह बकवास है, जिसे फाड़कर फेंक देना चाहिए." इस घटनाक्रम से यूपीए सरकार की किरकिरी हुई थी.
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मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि उनके भाई ने डॉ. सिंह के इस्तीफे की वकालत करने के लिए एक लेख लिखा था. उन्होंने कहा कि उस लेख को उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री को दिखाया था.
क्या मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए था?
पूरी घटना का जिक्र करते हुए अहलूवालिया ने कहा, "मैंने जो पहला काम किया, वह उस लेख को प्रधानमंत्री के संज्ञान में ले जाना था, क्योंकि मैं चाहता था कि वह पहले इस बारे में मुझसे सुनें. उन्होंने इसे चुपचाप पढ़ा और शुरू में कोई टिप्पणी नहीं की. फिर उन्होंने अचानक मुझसे पूछा कि क्या मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए? कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस्तीफा देना सही होगा. मुझे विश्वास था कि मैंने उन्हें सही सलाह दी है."
मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने तीन दशकों तक भारत के आर्थिक नीति निर्माता के रूप में काम किया है. उन्होंने अपनी किताब में संप्रग सरकार की सफलताओं और विफलताओं का जिक्र किया है.
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