Exclusive: कट्टरता, साम्प्रदायिक द्वेष रोकने के लिए मोदी सरकार का ब्लू प्रिंट

सूत्रों ने बताया कि प्रत्येक राज्य में उच्च सुरक्षा वाली जेल बनाने की जरूरत जताई गई है. ऐसा करने से जेलों को कट्टरता, वसूली रैकेट, साज़िश के केंद्र, आतंकियों-अपराधियों से संपर्क की जगह बनने से रोका जा सकेगा. 

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पीएम मोदी (फोटो- PIB) पीएम मोदी (फोटो- PIB)

अभि‍षेक भल्ला

  • नई दिल्ली,
  • 05 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 5:41 PM IST

  • आतंकी नेटवर्क्स में मुस्लिम युवाओं की नगण्य भागीदारी
  • वेब आधारित चैनल जिस पर धार्मिक नेताओं की आवाज़ सुनाई दे
  • जेल में अतिवादी तत्वों की गतिवधियों का अध्ययन
  • सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा से लड़ाई की जरूरत

ये सारी बातें उस ब्लू प्रिंट का हिस्सा है, जो मोदी सरकार ने कट्टरता और साम्प्रदायिक द्वेष से लड़ने के लिए रणनीतिक प्लान के तहत बनाया है.

इंडिया टुडे की पहुंच उस नोट की जानकारियों तक है, जिस नोट पर भविष्य की रणनीतियों का उल्लेख है. सूत्रों के मुताबिक ये रणनीतियां बढ़ते साम्प्रदायिक विभाजन से निपटने के लिए है. जिसका इस्तेमाल खास तौर पर मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए किया जा रहा है.

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नोट में कहा गया है, ‘देश में मुस्लिमों की बड़ी आबादी के बावजूद अंतरराष्ट्रीय आतंकी मंचों पर भारतीय मुस्लिमों की भागीदारी नगण्य होने का पर्याप्त प्रचार किया जाना चाहिए. जिससे कट्टरवादिता को पनपने से पहले ही रोका जा सके. इसी समुदाय से मुख्यधारा वाली ताकतों को देश के किसी भी कोने में कट्टरवादिता की कोई भी घटना से निपटने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

सूत्रों के मुताबिक दुनिया को यह बताने के लिए मुहिम चलाने की जरूरत है कि भारतीय मुसलमानों का बड़े पैमाने पर ISIS या अन्य ग्लोबल टेरर ग्रुप्स की ओर झुकाव नहीं हुआ.

रणऩीतिक नोट के अनुसार देश भर में जेलों के अंदर कट्टरपंथी तत्वों की गतिविधियों को लेकर गहराई से अध्ययन की ज़रूरत है. ताकि जेलों में कट्टरता को फैलने से रोका जा सके.

नोट में कहा गया है, "जेलों के अंदर प्रतिभाओं की पहचान की जानी चाहिए. साथ ही धार्मिक उपदेशकों की ओर से जेलों में कट्टरवादिता विरोधी कार्यक्रमों के तहत प्रवचन कराए जाने चाहिए.”

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सूत्रों ने बताया कि प्रत्येक राज्य में उच्च सुरक्षा वाली जेल बनाने की जरूरत जताई गई है. ऐसा करने से जेलों को कट्टरता, वसूली रैकेट, साज़िश के केंद्र, आतंकियों-अपराधियों से संपर्क की जगह बनने से रोका जा सकेगा.

यह भी प्रस्ताव है कि इंटरनेट पर धार्मिक नेताओं का एक गैर-आधिकारिक चैनल होना चाहिए जो मुस्लिम युवाओं को सही सलाह और मार्गदर्शन दें जिससे कि वो अतार्किक जानकारी और उकसाने वाले वीडियो से भ्रमित ना हों.

गृह मंत्रालय, इंटेलिजेंस ब्यूरो, राज्य पुलिस बलों और कुछ मामलों में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की ओर से फीडबैक दिए जाने की ज़रूरत है. साथ ही इन निश्चित उपायों को अमल में लाने के लिए उनका हिस्सा बनने की आवश्यकता है.

प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि सारे राज्यों में पुलिस को सभी जोड़ने वाली शक्तियों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है. वहीं विभाजनकारी तत्वों को अलग-थलग करने के लिए पुलिस कदम उठाए. इसके लिए सभी स्तर पर पुलिस मशीनरी की क्षमताओं को ऊंचा करना होगा.

साम्प्रदायिक मुद्दों से निपटने के लिए समुदाय के सदस्यों के साथ पुलिस थाना स्तर पर समन्वय बैठकों की पंरपरा को बढ़ावा देने की ज़रूरत है. इसके लिए अच्छे तत्वों को प्रोत्साहन और बुरे तत्वों से सख्ती से पेश आऩा चाहिए.

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रणनीतिक प्लान के मुताबिक अहम जानकारी तक पहुंच बनाने के लिए पुलिसकर्मियों को प्रदर्शनकारियों या आंदोलनकारियों की ओर से चलाए जाने वाले सोशल मीडिया ग्रुप्स का सदस्य बनना चाहिए. योजना कहती है, समर्पित टीमों की ओर से फ़िक्र किए जाने वाले मामलों को सोशल मीडिया से खंगालने और उनका विश्लेषण किए जाने की आवश्यकता है.

नोट कहता है कि मॉब लिंचिंग से जुड़े मामलों में अफवाहों के सोशल मीडिया पर फैलने से रोकने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को ऐसे मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के प्रतिनिधियों के साथ उठाना चाहिए. सोशल मीडिया से आपत्तिजनक सामग्री को स्वत: हटाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल की संभावनाओं का पता लगाना चाहिए.

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