बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के संस्थापक कांशीराम के बगैर पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती इस वक्त अपने राजनैतिक जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रही हैं. लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न जीतने वाली बीएसपी इसके बाद हुए महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में भी हाथी नहीं दौड़ा सकी. पिछले 25 साल में पहली बार बीएसपी के राष्ट्रीय पार्टी के तमगे पर गंभीर संकट मंडरा रहा है. इससे निबटने के लिए मायावती ने एक बार फिर पार्टी की मरम्मत का रास्ता अख्तियार किया है.
कभी मायावती के सबसे विश्वस्त करीबियों में शुमार जुगल किशोर बीएसपी के सबसे ताकतवर जोनल कोऑर्डिनेटर थे. लेकिन लोकसभा चुनाव में जैसे ही बीएसपी के दलित वोटबैंक में कुछ दरार दिखी, किशोर पर मायावती की नजरें टेढ़ी हो गईं. चूंकि पार्टी से निकाले जाने पर जुगल किशोर की राज्यसभा सदस्यता बरकरार रहती, इसलिए 3 जनवरी को मायावती ने अपने इस बागी सांसद से सभी संगठनात्मक दायित्व वापस ले लिए. जुगल किशोर कहते हैं, ''मायावती दलित की नहीं, दौलत की बेटी हैं. बीएसपी में विधानसभा चुनाव के टिकट के लिए 50 लाख से दो करोड़ रुपए तक वसूले जाते हैं. मुझे इसका विरोध करने की सजा मिली. ''
जुगल किशोर के बागी तेवर देखकर बीएसपी ने अपने दो सबसे कद्दावर नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्य और नसीमुद्दीन सिद्दीकी को 'डैमेज कंट्रोल' के लिए आगे कर दिया. मौर्य आरोप लगाते हैं, ''जुगल किशोर के नंबर दो के व्यवसाय में एनआरएचएम घोटाले के आरोपी बाबू सिंह कुशवाहा का पैसा लगा हुआ है. जांच से बचने के लिए वे बीजेपी में जा सकते हैं. '' बहरहाल, इन सबके बीच मायावती पार्टी के भीतर बड़े बदलावों की भूमिका तैयार करने में व्यस्त हैं.
दलित नेताओं से भी किनारा
मायावती इस वक्त अपना पूरा ध्यान पार्टी को ऐसे लोगों से दूर करने में लगा रही हैं, जो आने वाले समय में संगठन के भीतर परेशानी खड़ी कर सकते हैं. चाहे वे दलित ही क्यों न हों. इसी क्रम में 2 जनवरी को कानपुर में बीएसपी की मंडलीय बैठक में प्रभावशाली जोनल कोऑर्डिनेटर रहे आसकरन शंखवार को पार्टी निर्देशों का पालन न करने के आरोप में बाहर कर दिया गया. इतना ही नहीं, जोनल कोऑर्डिनेटर पी.सी.गौतम, कानपुर के जिलाध्यक्ष जयनारायण कुरील, पूर्व एमएलसी श्रीनाथ एडवोकेट जैसे प्रभावशाली दलित नेताओं से भी मायावती किनारा कर चुकी हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. अजित कुमार कहते हैं, 'लोकसभा चुनाव के बाद लगातार जनाधार खो रही बीएसपी के नेताओं में खलबली है.
अब वे दूसरे दलों में अपना राजनैतिक भविष्य तलाश रहे हैं. '' इस खतरे को भांपकर मायावती सभी जोनल कोऑर्डिनेटरों से सीधे संवाद कर नेताओं की गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटा रही हैं. सभी जोनल कोऑर्डिनेटरों को भी अपने क्षेत्रों में नजर रखने को कहा गया है. हर महीने की मंडलीय समीक्षा बैठकों में दूसरी पार्टी से संपर्क रखने वाले नेताओं का नाम लेकर उन्हें निकालने का ऐलान किया जाता है. पार्टी के एक जोनल कोऑर्डिनेटर बताते हैं, ''सरेआम नाम लेकर नेताओं को बाहर निकालने का ऐलान करने के पीछे रणनीति यह है कि दूसरी पार्टी भी इन्हें गुपचुप शामिल करने से बचे. ''
बाहरी नेताओं से परहेज
लगातार खराब प्रदर्शन के कारण बीएसपी में अपना राजनैतिक भविष्य उज्ज्वल न देखने वाले नेताओं ने सपा और बीजेपी से गलबाहियां शुरू कर दी हैं. पश्चिमी यूपी की सैनी बिरादरी पर प्रभाव रखने वाले पूर्व विधान परिषद सदस्य और बीएसपी नेता हरपाल सैनी के तार भी सपा से जुड़ चुके हैं. सैफई महोत्सव के दौरान सैनी कई बार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ देखे गए. लोकसभा चुनाव से पहले मायावती ने सैनी को राष्ट्रीय लोकदल से तोड़कर बीएसपी में शामिल किया था. लोकसभा चुनाव के बाद बीएसपी को सबसे बड़ा झ्टका तब लगा, जब पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्र की भतीजी दिव्या मिश्र ने बीजेपी का दामन थाम लिया. मायावती सरकार में दिव्या को यूपी राज्य समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष बनाया गया था.
इसी तरह भदोही से बीएसपी के पूर्व सांसद गोरखनाथ पांडेय, कानपुर के पूर्व विधायक राम आसरे अग्निहोत्री और पूर्व विधायक भगवान पाठक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. इस बीच मायावती सोच-समझकर अपनी राजनैतिक गोटियां चल रही हैं. फिलहाल उन्होंने किसी बाहरी नेता को पार्टी में शामिल करने की हड़बड़ी नहीं दिखाई है. 2017 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटीं मायावती ने 70 फीसदी से अधिक सीटों पर बीएसपी के संभावित उम्मीदवार घोषित कर बाहरी नेताओं को तवज्जो न देने का संकेत दे दिया है. उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में मुरादाबाद से चुनाव हारने वाले हाजी याकूब कुरैशी को मेरठ दक्षिण विधानसभा सीट का प्रत्याशी घोषित कर पार्टी के पूर्व सांसद शाहिद अखलाक को बाहर निकालने से बने माहौल को संभालने की कोशिश भी की है. मौर्य कहते हैं, ''बीएसपी में कुछ अवांछित और गलत तत्व आ गए थे. इनके जाने से पार्टी को और मजबूती मिली है. ''
संगठन में निरंतर नए प्रयोग
पार्टी की नई व्यवस्था के तहत अब मंडल स्तर पर कोऑर्डिनेटर और जोन स्तर पर इंचार्ज होंगे. एक-एक जोन में कई इंचार्ज होंगे, लेकिन उनके पास तय मंडल की ही जिम्मेदारी होगी. इससे पदाधिकारी सीधे तौर पर जवाबदेह बनाए गए हैं. जोन इंचार्ज की तैनाती में मायावती ने पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताया है. पूर्वी जिलों में पूर्व वित्त मंत्री लालजी वर्मा का कद बढ़ाते हुए उन्हें गोरखपुर-बस्ती और फैजाबाद-देवीपाटन जोन का इंचार्ज बनाया गया है. पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज, आर.के. चौधरी, एमएलसी तिलकचंद अहिरवार, डॉ. राम प्रकाश कुरील, एमएलसी सुनील कुमार चित्तौड़ और नसीमुद्दीन सिद्दीकी को जोन इंचार्ज बनाकर चुनावी मिशन के लिए एजेंडा साफ कर दिया है. मायावती ने जोन और मंडल कमेटियों से ब्राह्मणों और ऊंची जातियों को दूर ही रखा है.
'डीएम' फॉर्मूले की जुगलबंदी
लोकसभा चुनाव में दलित मतदाताओं का एक हिस्सा बीजेपी की ओर खिसका तो सितंबर में हुए विधानसभा उपचुनावों में सपा ने भी दलितों को अपनी ओर खींचकर बीएसपी के कान खड़े कर दिए. आधार वोट बैंक पर दोतरफा हमले से निबटने के लिए मायावती ने दलित-मुस्लिम फॉर्मूले को आगे कर दिया है. 'बामसेफ' और 'डीएस-4' से जुड़े मिशनरी कार्यकर्ताओं वीर सिंह और राजाराम को राज्यसभा भेजकर मायावती अपना दलित एजेंडा जाहिर कर चुकी हैं. मुसलमानों की नाराजगी को दूर करने के लिए नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पश्चिमी यूपी की कमान सौंपी गई है. लोकसभा चुनाव तक इस हैसियत में रहे पार्टी के पूर्व जोनल कोऑर्डिनेटर मुनकाद अली को दिल्ली अटैच किया गया है. सिद्दीकी पश्चिमी यूपी में कैंप कर बीएसपी के विधानसभा चुनाव प्रभारियों की घोषणा कर रहे हैं. उन्हें विधान परिषद का टिकट भी दिया गया है. वे कहते हैं, ''सपा की भेदभाव भरी नीति से मुसलमानों समेत सभी वर्ग के लोग तकलीफ में हैं. इसे केवल बहन जी की सरकार ही दूर कर सकती है. ''
बहरहाल मायावती गुपचुप अपने मिशन में जुटी हैं. लेकिन उनके राजनैतिक कौशल का असली इम्तिहान तो दो वर्ष बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ही होगा.
आशीष मिश्र