अयोध्या में राम मंदिर को लेकर पांच अगस्त को भूमिपूजन होने जा रहा है. इसके लिए जोरशोर से तैयारियां की जा रही हैं. भूमिपूजन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है. हालांकि राम मंदिर आंदोलन में जान गंवाने वाले जिन लोगों के परिजनों को भूमिपूजन का बुलावा नहीं मिला है, वो बेहद निराश हैं. राम मंदिर आंदोलन में जान गंवाने वाले कोठारी बंधुओं के परिजनों का भी यही हाल है.
अयोध्या में कारसेवा के दौरान राम कुमार कोठारी और उनके भाई शरद कुमार कोठारी की जान चली गई थी. अब 30 साल बाद 5 अगस्त को राम मंदिर के लिए भूमिपूजन किया जा रहा है, तो कोठारी बंधुओं के परिजन निराश हैं. उनको भूमिपूजन में शामिल होने का न्योता नहीं मिला है.
कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी ने कहा, 'मेरे भाइयों की शहादत के बाद स्वामी राम सुखदाख ने हमको बुलाया था और कहा था कि मेरे भाइयों की कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी. हिंदू समाज हमेशा उनको याद रखेगा. मुझको विश्वास है कि हमको भी भूमिपूजन में शामिल होने के लिए बुलाया जाएगा. मेरे मां-पिता को आश्चर्य होता है कि उनके बेटों को न्याय मिलना चाहिए.'
पूर्णिमा कोठारी ने कहा, 'राम कुमार कोठारी और शरद कुमार कोठारी की शहादत को 30 साल हो गए, लेकिन हम उस घटना को कभी नहीं भूल सकते. अगर मुझको भूमिपूजन का न्योता मिलता है, तो मैं दुनिया की सबसे खुश किस्मत इंसान होऊंगी.'
बहन ने सुनाई कोठारी बंधुओं के अंतिम पल की कहानी
पूर्णिमा कोठारी ने अपने भाइयों की अंतिम यात्रा की यादों को भी साझा किया. उन्होंने कहा, 'मैं उस पल को नहीं भूल सकती, जब 22 अक्टूबर 1992 को मेरे भाई घर से अयोध्या के लिए निकले थे. उसी साल 16 दिसंबर को मेरी शादी होने वाली थी. उस दिन रात डेढ़ बजे वाराणसी के लिए ट्रेन रवाना होती है, लेकिन उनको पता चलता है कि उनको स्टेशन पर पुलिस गिरफ्तार कर लेगी. तभी मेरे भाई समेत 80 लोग वाराणसी स्टेशन से पहले ही ट्रेन से उतर जाते हैं और अयोध्या की ओर पैदल ही चल देते हैं.'
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उन्होंने बताया, 'अयोध्या पहुंचने में उनको 7 दिन का वक्त लग जाता है. उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी और राज्य जेल से कम न थी. सभी लोग यह बात कहते हैं कि मेरे भाई बहादुर और दयालु थे. वो तमाम बाधाओं को पार करते हुए 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंच गए थे.'
पूर्णिमा कोठारी ने कहा, 'मेरे भाइयों ने गुंबद में सबसे पहले झंडा लहराया था. जब अशोक सिंघल घायल हो गए थे, तब उन्होंने अपना धैर्य खो दिया था और सेवा करने के लिए आगे कदम बढ़ाया था. मेरे पास जो तस्वीरें हैं, उनमें मेरे भाई सबसे आगे लड़ाई लड़ते दिख रहे हैं.'
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मनोज्ञा लोइवाल