'बीवी मांगे मोर': हिंदू मैरिज एक्ट पर अंतर्विरोध

'बीवी मांगे मोर' ये जुमला है देश में बन रहे उस कानून के लिए, जो अगर लागू हो गया, तो कई सारी पेचिदगियां बढ़ जाएगीं. शादी की शर्तों से लेकर तलाक तक तमाम पहलू पेचीदा हो जाएंगे. बात हो रही है हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन की, जिस पर कैबिनेट भी कोई फैसला नहीं ले सकी.

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आज तक ब्‍यूरो

  • नई दिल्‍ली,
  • 01 मई 2013,
  • अपडेटेड 11:43 AM IST

'बीवी मांगे मोर' ये जुमला है देश में बन रहे उस कानून के लिए, जो अगर लागू हो गया, तो कई सारी पेचिदगियां बढ़ जाएगीं. शादी की शर्तों से लेकर तलाक तक तमाम पहलू पेचीदा हो जाएंगे. बात हो रही है हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन की, जिस पर कैबिनेट भी कोई फैसला नहीं ले सकी. यानी नए प्रावधान को लेकर सरकार में भी अंतर्विरोध है, तो फिर सरकार इस संशोधन पर क्यों तुली हुई है.

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सरकार के बीच नहीं बन रही आम सहमति
इस बहस की शुरुआत तो देश के कानून मंत्रालय ने किया था, मगर इस पर आम सहमति सरकार के बीच ही नहीं बन रही. मसला है शादी टूटने के बाद महिलाओं के हक की. देश के कानून मंत्री चाहते हैं तलाक के बाद महिलाओं को पति के साथ उसकी पुश्तैनी जायदाद में भी हिस्सा मिले. लेकिन इस सिफारिश पर अंतर्विरोध अंदर और बाहर जारी है.

तलाक के बाद पत्नियों को पति के पुश्तैनी हक दिलाने के सवाल पर कैबिनेट की बैठक बुलाई गई थी. बैठक में कानून मंत्री ने अपना पक्ष रखा. चर्चा शुरू हुई तो गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, कमलनाथ यहां तक कि कृष्णा तीरथ जैसे कई मंत्रियो ने इसका विरोध किया.

कहीं खतरे में ना पड़ जाए परिवार का वजूद?
कैबिनेट के अंतर्विरोध को चिंदबरम ने भले ही सधे हुए लहजे में बयां कर दिया. लेकिन बात इतनी सहज है नहीं. हिंदू मैरिज ऐक्ट में संशोधन के बहाने कानून मंत्री भले ही महिलाओं को ज्यादा हक दिलाने की वकालत करते हों, लेकिन कैबिनेट के कई सदस्यों को डर है कि कही इस प्रावधान से परिवार का वजूद ही खतरे में नहीं पड़ जाए.

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कैबिनेट के मंत्रियो की तरह कई तरह की आशंकाए प्रदर्शन कर रहे लोगों की तख्तियों से भी जाहिर है. संशोधन का विरोध कर रहे सेव द फेमिली फाउंडेशन की नजर में नया कानून पत्नी-पत्नी और परिवार नुकसान पहुंचाने वाला है.

राज्‍यसभा में अटका बिल
हिंदू मैरेज एक्ट में संशोधन के मसले पर आपत्तियां इसका खाका तैयार करने के बाद से ही उठ रही हैं. खासतौर पर पति के पुश्तैनी जायदाद पर पत्नी के हक को लेकर. ये बिल हालांकि लोकसभा में पिछले साल ही पास हो चुका है. लेकिन राज्यसभा में ये कानून बीच बहस में फंस गया. सांसदों की राय पर राज्यसभा ने इसे स्टैंडिग कमेटी को भेज दिया.

बिल पर बनी संसद की स्थाई समिति ने कहा कि पति की पुश्तैनी जायदाद में महिलाओं को हिस्सा मिलना चाहिए. प्रधानमंत्री की अगुवाई में कैबिनेट की बैठक उसी सिफारिश पर विचार करने के लिए बुलाई गई थी. लेकिन आम राय नहीं बन सकी. संशोधन पर कैबिनट की बैठक बेनतीजा खत्म हो गई. आमराय नहीं बनने के बाद इसे जीओएम यानी मंत्रियों के समूह को भेज दिया गया है.

मामले पर दो मंत्रालय आमने-सामने
हिंदू मैरिज एक्ट में प्रस्तावित संशोधन लोकसभा में पास हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में अटकने के बाद इस पर विचार के लिए कैबिनेट के पास भेजा गया. लेकिन यहां भी सहमति नहीं बनी. अब ये बिल मंत्रियों के समूह के पास जाएगा. इससे पहले ही इसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है. विवाद है इस कानून के बनने के बाद शादी और परिवार के ढांचे को होने वाले नुकसान को लेकर.

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बहस के मुद्दे कई तमाम है, मगर हर सवाल पर जवाब अलग-अलग. यही असहमति बनी बिल को लेकर अगर कैबिनेट की बैठक बेनतीजा खत्म होने की वजह. कानून मंत्रालय की दलील है कि तलाक के बाद पत्नी को पति के शादी या शादी से पहले अर्जित की गई जायदाद में हिस्सा मिलना चाहिए. इसके साथ पत्नी को पति के पुश्तैनी जायदाद में भी हिस्सा मिलना चाहिए.

इसपर महिला एंव बाल विकास मंत्रालय की दलील है कि पति की पुश्तैनी जायदाद से उस प्रॉपर्टी को अलग रखा जाए, जो शादी से पहले खरीदी गई हो.
प्रभावित होगा परिवार का ढांचा
लेकिन सवाल सिर्फ पुश्तैनी जायदाद की परिभाषा का ही नहीं, कई और पेचिदगियों का भी है. इससे सबसे पहले प्रभावित होगा परिवार का ढांचा, जबकि तलाक का मसला सीधे तौर पर पति-पत्नी के बीच का है. जानकारों की दलील है, कि पति-पत्नी के विवाद में अगर पुश्तैनी जायदाद कई हिस्सों में बंटती है, तो मां-बाप जीते जी अपनी प्रॉपर्टी बच्चों के नाम नहीं करेंगे.

नए प्रावधान का दूसरा खतरा है तलाक की घटनाओं में बढ़ोत्तरी का. जानकारों की नजर में अब तक आपसी विवाद तलाक की वजह बनते रहे हैं, लेकिन नए कानून के बाद पूरे जायदाद में हिस्सेदारी बड़ी वजह बन सकती है. ऐसी राय सरकार के अंदर ही कई लोगों की है. इसे लेकर विपक्ष के तेवर भी समर्थन में नहीं दिख रहे. इनकी नजर में इस कानून के जरिए सरकार लोगों को असल मुद्दे से भटकाने की कोशिश में है.

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विरोधियों को सरकार की मंशा पर शक
बिल का विरोध करने वालों को दलील है, कि सरकार की मंशा अगर साफ होती, तो वो तलाक की शर्तों को और सख्त कर सकती थी. हालात के मुताबिक महिलाओं को मुआवजे की राशि बढ़ाने की सिफारिश कर सकती थी. हिंदू मैरिज एक्ट में अब तक जो प्रावधान था उसके मुताबिक तलाक के बाद पत्नी को पति संपत्ति में आधा हिस्सा मिलता है. इसके अलावा गुजर बसर के लिए नकद मुआवजे का प्रावधान है. इसमें पुश्तैनी जायदाद को जोड़कर कौन सा समाधान निकालना चाहती है सरकार.

जो कानून मंत्रालय इस बिल की वकालत कर रहा है, उसे भी पता है, पुश्तैनी जायदाद पर हक को लेकर अलग कानून है. पिता के बाद पुश्तैनी जायदाद पर बेटे बेटियों का होता है. ऐसे में बहुओं की हिस्सेदारी से जायदाद की जंग में एक नया पेच और जुड़ जाएगा. बिल का आखिरी मसौदा तैयार करने से पहले सरकार को इस पहलू को भी नजर में रखना होगा.

हिन्‍दू मैरिज एक्‍ट है क्‍या?
शादियों को कानूनी शर्त में बांधन के लिए हिंदू मैरेज एक्ट बना था. ये बात आजादी के 8 साल बाद 1955 की है. तब से लेकर इस एक्ट में कई तमाम संशोधन हुए- लेकिन इसे लेकर सरकार का ऐसा अंतर्विरोध शायद ही सामने आया. इस बार तो सरकार की कोशिश की आलोचना हर तरफ हो रही है. विपक्ष तो विपक्ष सामाजिक संगठन भी सरकार की मंशा का विरोध कर रहे हैं.

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हमारी परंपरा में कहावत तो ये है कि शादियां स्वर्ग मे तय होती हैं. इसे निबाहने के लिए 7 फेरों के 7 वचन ही काफी हैं. लेकिन बदलते जमाने की ये सहजता कई पेचिदगियों से भर चुकी है. इन्हीं पेचिदगियों से बचने के लिए लिए संविधान में हिंदू मैरिज एक्ट का प्रवाधान किया गया था. शादियों को टूटने से बचाने और इसे कानूनी शर्तों में बांधने के लिए 1955 में हिंदु मैरिज एक्ट बनाया गया. मगर टूटते बिखरते रिश्तों का आलम आज ये है, कि कोर्ट को भी एक्ट को लचीला बनाना पड़ा.

अगर किसी भी शादी को बचाने की कोई गुंजाइश नहीं बची हो, रिश्ता तोड़ने पर पति-पत्नी दोनों सहमत हों, तो 6 महीने की ‘कूलिंग पीरियड’ से पहले भी तलाक दिया जा सकता है. देश की ऊंची अदालत ने ये फैसला तो एक निजी मामले में दिय़ा था. लेकिन ये फैसला इशारा करता है, रिश्तों की घुटन से मुक्ति पाने की छटपटाहट वक्त के साथ कितनी बढ़ती गई है. इसी के साथ हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधनों भी किए जाते रहे हैं.

मसलन, मूल कानून में लड़कों के लिए शादी की उम्र 18 साल और लड़कियों की 15 साल थी, जिसे आगे चलकर 21 साल और 18 साल किया गया. पहले हिंदू रीति रिवाजों से हुई शादी को मान्य माना जाता था, आगे चलकर इसमें कानूनी पंजीकरण का प्रवाधान किया गया. तलाक की शर्तों में भी बदलाव किया जाता रहा. तलाक के बाद बीवियों को मुआवजे का ख्याल रखा गया. लेकिन अब तक किसी भी संशोधन को लेकर खास हो हल्ला नहीं हुआ. लेकिन इस बार प्रावधान कुछ और है और इसके बाद बनने वाले कानून को लेकर भी आशंकाएं भी बड़ी है.

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