Mahabharat 26 May Update: युद्ध से पहले अर्जुन को मिला दिव्यास्त्र, भीम की हुई हनुमान से मुलाकात

महाभारत के युद्ध से पहले अर्जुन को दिव्यास्त्र की प्राप्ति हो गई है. वहीं भीम की भी महाबली हनुमान से मुलाकात हुई है. जानिए क्या हुआ है मंगलवार के एपिसोड में...

Advertisement
महाभारत में अर्जुन महाभारत में अर्जुन

साधना कुमार

  • मुंबई,
  • 27 मई 2020,
  • अपडेटेड 10:05 AM IST

दुर्योधन ने गंधर्वों की राजकुमारी के साथ दुर्व्यवहार किया जिसके चलते गंधर्वों की पंचायत दुर्योधन के आखेट में पहुंचकर उसे बंदी बनाकर मृत्यु दंड देती है. लेकिन अपने भ्राताश्री युधिष्ठिर की आज्ञानुसार अर्जुन और भीम वहां पहुंच जाते हैं और दुर्योधन को गंधर्वों से मुक्त करा लेते हैं.

ये देख कर्ण और दुशाशन की नज़रें झुक जाती हैं.

दुर्योधन का क्रोध

Advertisement

गुस्से से बौखलाया दुर्योधन अपने सेनापति को बुलाता है और पांडवों से सहायता मांगने पर उससे युद्ध लड़ता है. दोनों के बीच घमासान तलवारबाज़ी होती है और सेनापति वीरगति को प्राप्त होता है. उसके उपरांत दुर्योधन अपने आप पर भी तलवार से वार करता है लेकिन कर्ण आकर उसे बचा लेता है. जब दुर्योधन कहता है कि अर्जुन और भीम के आने से वो अपमानित हुआ है तब कर्ण उसे समझाता है कि उन्होंने प्रजा होने के नाते अपने राजा के प्रति कर्तव्य निभाया है अपने राजा की जान बचाकर. ये सुनकर दुर्योधन का क्रोध शांत होता है.

वहां भीष्म और द्रोणाचार्य, धृतराष्ट्र के पास आते हैं और गंधर्वों द्वारा दुर्योधन को बंदी बना लेने वाली सूचना देकर हस्तिनापुर के भविष्य के विषय में बात करते हैं. तभी वहां दुर्योधन, दुशाशन और कर्ण भी आ जाते हैं. जब द्रोणाचार्य ये कहते हैं कि दुर्योधन बंदी बन जाने पर कर्ण वहां से भाग निकला तो ये सुनकर कर्ण सूर्य की सौगंध खाकर कहता है कि," यदि ये महाराज का कक्ष ना होता और आप आचार्य ना होते तो मैं आपको एक सांस लेने के लिए भी जीवित ना रहने देता." इसपर द्रोणाचार्य कर्ण पर क्रोधित होते हैं, और भीष्म उन्हें शांत करते हुए दुर्योधन को सच बताते हैं कि अगर अर्जुन और भीम सही समय पर नहीं आये होते तो हस्तिनापुर का चिराग बुझ चुका होता. भीष्म पितामह दुर्योधन से ये भी कहते हैं कि अर्जुन की तूणीर और भीम के गदा का आभार व्यक्त करते हुए उन्हें मनाकर वन से वापस ले आओ लेकिन दुर्योधन उनकी नहीं सुनता.

Advertisement

श्री कृष्ण ने पांडवों को दी भविष्य की जानकारी

श्री कृष्ण पांडवों से मिलने उनकी कुटिया में आते हैं जहां अर्जुन द्रौपदी के अपमान को याद कर दुखी हो रहा है. श्री कृष्ण अर्जुन का मार्गदर्शन करते हुए कहते हैं कि केवल युधिष्ठिर को नहीं बल्कि सभी पांडवों को प्राश्चित करना चाहिए क्योंकि जब युधिष्ठिर मर्यादा का उल्लंघन कर द्रौपदी को दांव पर लगा रहे थे तब किसी ने उनका विरोध नहीं किया. इसलिए अपमान के विष को पीना ही सभी पांडवों के लिए प्राश्चित है. तभी अर्जुन कृष्ण को बताता है कि उसने कर्ण को मृत्यु दंड देने की प्रतिज्ञा ली है. इस पर कृष्ण अर्जुन को भविष्य के बारे में ना सोचते हुए वर्तमान के बारे में सोचने को कहते हैं.

वे ये भी बताते हैं कि युद्ध का होना निश्चित है इसीलिए अर्जुन को युद्ध के लिए दिव्यास्त्र इकट्ठा करने और महादेव को प्रसन्न करने को कहते हैं. तभी वहां द्रौपदी आती है और कृष्ण को रोते हुए अपने साथ हुए हर अपमान के बारे में बताती है. ये सुनकर कृष्ण द्रौपदी से कहते हैं कि, "जिन लोगों ने तुम्हारा अपमान किया है सखी, उन सबकी पत्नियां उनके पतियों के शवों पर विलाप करेंगी." साथ ही वो ये भी कहते हैं कि द्रोपदी ने अपने पुत्र को काम्पिल्य नगरी भेजकर बहुत अच्छा किया और अब वो भी सुभद्रा को अपने साथ द्वारका ले जाएंगे ताकि आने वाले युद्ध को ध्यान में रखकर उसके पुत्र अभिमन्यु का पालन पोषण हो सके.

Advertisement

तभी वहां युधिष्ठिर भी आते हैं और जिन्हें श्री कृष्ण भविष्य में होने वाले युद्ध की चेतावनी देते हुए कहते हैं कि,"ये युद्ध इतना साधारण नहीं होगा, सामने की सेना में अपने-अपने रथों पर खड़े होंगे गंगाधर भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वथामा, कर्ण, रुक्मी और जैधृत जैसे महान योद्धा, और स्वयं दुर्योधन भी. योद्धाओं की इस भीड़ में दो तो तुम्हारे गुरु हैं और भीष्म के बाणों का उत्तर आधुनिक संसार मे किसी के पास नहीं है, इसलिए दिव्य अस्त्रों की खोज में निकलो." साथ ही कृष्ण अर्जुन को ये भी बताते हैं कि देव इंद्र के पास सारे दिव्यास्त्र रखे हुए हैं और अर्जुन के अतिरिक्त वो दिव्य अस्त्र किसी को नहीं देंगे. विजय को पाने के लिए दिव्य अस्त्रों का होना ज़रूरी है.

वहां हस्तिनापुर में दुर्योधन भी अपनी तैयारी में लगा है. क्योंकि उसे पता चल गया है कि अर्जुन दिव्यास्त्र को पाने के लिए इंद्र की तपस्या कर रहा है.

अर्जुन को दिव्यास्त्र की प्राप्ति

वन में अर्जुन एक वृक्ष के नीचे बैठकर ॐ का जाप करता है. तभी वहां इंद्र देव प्रकट हो जाते हैं और अर्जुन उन्हें प्रणाम करता है. इंद्र अर्जुन से पूछते हैं कि इस तपोवन में शस्त्रों की क्या आवश्यकता है, तो अर्जुन कहता है कि शस्त्र तो क्षत्रिय की आत्मा होते हैं और आत्मा के बिना तपस्या संभव नहीं. अर्जुन के तर्कों से प्रसन्न होकर देव इंद्रा उसे कहते हैं कि दिव्यास्त्र को पाने के पहले महादेव को प्रसन्न करना होगा और उनसे पाशुपतास्त्र मांगो. महादेव की कृपा के उपरांत ही अर्जुन के लिए स्वर्ग के द्वार खुलेंगे. क्योंकि दिव्यास्त्र के लिए स्वर्ग की यात्रा करनी पड़ती है.

Advertisement

वहां हस्तिनापुर में दुर्योधन एक राक्षस को बुलाता है और उसे लालच देकर अर्जुन वध करने को कहता है. दुर्योधन की आज्ञा लेकर वो राक्षस वन में आता है महादेव की तपस्या में लीन अर्जुन का वध करने. जंगली सुअर का रूप लेकर वो राक्षस अर्जुन पर आक्रमण करता है लेकिन अर्जुन उसके मार गिरता है. तभी वो देखता है कि उस सुअर के शरीर मे उसके बाण के अलावा एक और बाण है, तभी वहां एक शिकारी आता है जो कहता है वो जंगली सुअर उसका शिकार है. तभी अर्जुन उस शिकारी को अपना परिचय देता है, लेकिन शिकारी अर्जुन को अभिमानी कहता है. अर्जुन को गुस्सा आता है और वो अपने बाणों की तरफ लपकता है कि तभी वो शिकारी अर्जुन के चारों तरफ बाण चला देता है. ये देख अर्जुन पहचान जाता है कि शिकारी के रूप में कोई और नहीं बल्कि खुद महादेव हैं. महादेव के आगे हाथ जोड़कर वो उनके दर्शन करता है और वर में पाशुपतास्त्र मांगता है. महादेव अर्जुन को पाशुपतास्त्र देकर स्वर्ग की ओर प्रस्थान करने को कहते हैं.

महादेव का आशीर्वाद पा लेनेके बाद अर्जुन इंद्रदेव का आशीर्वाद लेने स्वर्ग की ओर निकल पड़ा जहां उसे दिव्यास्त्रों के साथ साथ एक श्राप भी मिलेगा.

Advertisement

कर्ण विजययात्रा कर हस्तिनापुर आता है कर्ण धृतराष्ट्र को प्रणाम करते हुए जीते हुए मुकुट उनके चरणों मे चढ़ता है. इसपर धृतराष्ट्र भीष्म से कहते हैं आज कर्ण ने आपके प्रश्नों का उत्तर दे दिया है. लेकिन भीष्म अब भी दुर्योधन को पांडवो के साथ संधी करने को कहते हैं. ये सुनकर दुर्योधन अपना क्रोध जताते हुए कहता है कि उसके लिए कर्ण ही उसका दिव्यास्त्र है.

शकुनि-दुर्योधन का नया पांसा

शकुनि और दुर्योधन ऋषि दुर्वासा और बाकी ऋषियों की सेवा खुशामत में लगे हैं और उन्हें भोज कई रहे हैं. उनकी सेवा कर-करके दुर्योधन थक गया और शकुनि मामा से कहता है कि इन्हें जल्द से जल्द निकालें, लेकिन शकुनि दुर्योधन को समझाता है. तभी ऋषि दुर्वासा क्रोधित होकर भोज से उठ जाते हैं लेकिन शकुनि बात संभालते हुए और उनसे पीछा छुड़ाने के लिए वो बात को पांडवों की तरफ घुमा देता है. वहां से ऋषि दुर्वासा पांडवों के पास आने लिए प्रस्थान करते हैं.

यहां द्रोपदी युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव को खाना परोस रही है और अपने साथ हुए उस अपमान को याद कर क्रोध का घूंट पी रही है. युधिष्ठिर द्रोपदी को अपना क्रोध शांत करने को कहते हैं लेकिन भीम ये सुनकर वहां से उठकर चला जाता है क्योंकि उसके अंदर क्रोध की अग्नि अब भी देहक रही है. साथ ही नकुल और सहदेव भी वहां से चले जाते हैं. अपने भाइयों को खाने से उठकर जाता देख युधिष्ठिर भी खाने को प्रणाम कर वहां से उठकर चले जाते हैं.

Advertisement

कहानी चावल के एक दाने की

दुर्योधन ने ये सोंचकर दुर्वासा का रुख पांडवों की तरफ किया की वन में पांडव दुर्वासा की सेवा नहीं कर पाएंगे और क्रोध में आकर दुर्वासा उन्हें श्राप दे देंगे. इस से अनजान पांडव अपने ही अपमान की ज्वाला में जल रहे हैं. तभी दुर्वासा ऋषियों के साथ वहां आ जाते हैं और बताते हैं कि वे हस्तिनापुर से आ रहे हैं जहां दुर्योधन ने उनकी खूब सेवा की है. उन्हीं के कहने पर वो यहां पांडवों को आशीर्वाद देने आए हैं. इतना कहकर उन्होंने युधिष्ठिर को अपने और ऋषियों के लिए भोजन प्रबन्द करने को कहा और स्नान पर चले गए.

युधिष्ठिर-नकुल और सहदेव आकर द्रोपदी को दुर्वासा और उनके ऋषियों के आने का समाचार देते है साथ ही कहते हैं कि स्नान के बाद वो यहां भोजन भी करेंगे. ये सुनकर द्रोपदी झट से खाने के बर्तनों को देखती है जिसका खाना पूरा समाप्त हो गया है सिर्फ एक चावल का दान बचा है. ये देख द्रोपदी श्री कृष्ण को याद करती हैं और श्री कृष्ण वहां पहुंच जाते हैं और कहते हैं उन्हें बहुत तेज़ भूख लगी है. तो हाथ एक चावल का बर्तन लिए द्रोपदी कृष्ण को देते हुए कहती है कि चावल का एक ही दान है जिसे आधा आप खा लीजिये और आधा संसार को खिला दीजिये.

Advertisement

वहां दुर्वासा और उनके शिष्य भी स्नान कर पांडवों के पास आने के लिए कदम बढ़ाते हैं. यहां कृष्ण चावल का एक दान खाकर अपनी भूख मिटाते हैं और वहां दुर्वासा और उनके शिष्यों के भी पेट भर जाता है. इस से पहले की पांडव उन्हें बुलाने आये वो वहां से चले जाते हैं. यहां कृष्ण भरपेट कहकर तृप्त हो गए और युधिष्ठिर भीम के बारे में पूछा. तब द्रोपदी बताती है कि भीम बड़े क्रोध में निकले हैं और अब तक नहीं लौटे हैं.

ये रिश्ता फेम रोहन मेहरा ने लॉकडाउन में किया सफर, 6 महीने बाद पहुंचे घर

टीवी एक्ट्रेस के सुसाइड से दुखी करण कुंद्रा, बोले- मेंटल हेल्थ पर बात करने की जरूरत

जब भीम मिले हनुमान से

भीम क्रोध में वन की राह पकड़े आगे की ओर चलते जाते हैं तभी उन्हें रास्ते में एक बूढ़ा वानर दिखता है. भीम उनसे अपनी पूंछ हटाने का आग्रह करते हैं, लेकिन वो वानर राम का नाम लेकर विश्राम करने की बात कहता है. इसपर भीम को और भी क्रोध आता है और वो खुद ही उस वानर की पूंछ हटाने लगता है. भीम बहुत कोशिश करता है और अंत मे उसे विश्वास हो जाता है कि ये कोई साधारण वानर नहीं है. हाथ जोड़कर वो उस वानर के पास आकर प्रणाम करता है और उनसे परिचय पूछता है. तब हनुमान अपने असली रूप में दर्शन देते हैं और भीम शिक्षा देते हैं कि, " निर्बल और वृद्ध का आदर करना चाहिए और कभी कभी जो आंखें देखती हैं वो सत्य नहीं होता, जैसे आज तुमने देखा की एक वृद्ध वानर ने तुमको चुनौती दी और तुमने मान ली. आगे भविष्य में ना जाने किस राह पर किस रूप में कौन मिल जाए." ये सुनकर उनसे क्षमा मांगते हुए अपनी कुटिया में चलने को कहते हैं लेकिन हनुमान अपना आशीर्वाद देकर वहां से चले गए.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement