चंबल नदी के पानी के बंटवारे को लेकर मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच तलवारें खिंच गई है. विवाद की जड़ नदी के पानी का बंटवारा है. मध्य प्रदेश का आरोप है कि लबालब भरे होने के बावजूद राजस्थान गांधी सागर बांध से उसके हिस्से का पानी नहीं छोड़ रहा है जिसके कारण चंबल अंचल के किसानों की फसलें सूख रही हैं. लेकिन राजस्थान इस आरोप को मानने को तैयार नहीं है.
उसका कहना है कि मध्य प्रदेश ने इसके पहले किसी भी मंच पर इस मुद्दे को नहीं उठाया है. वैसे हकीकत ये है कि मध्य प्रदेश सरकार की ढिलाई का नतीजा अंचल के किसानों को भुगतना पड़ रहा है. मुरैना जिले के होलापुरा गांव के किसान 40 वर्षीय पंचम सिंह कहते हैं, ''नहर में पानी की कमी के चलते गेहूं की फसल हर साल प्रभावित होती है. ''
साठ के दशक में हुए एक समझौते के मुताबिक मध्य प्रदेश और राजस्थान को चंबल नदी पर बने बांधों का 50-50 फीसदी पानी मिलना चाहिए. लेकिन मध्य प्रदेश को पूरा पानी कभी मिला ही नहीं. पिछले साल जब प्रदेश को 45 प्रतिशत पानी मिल गया था तब चंबल अंचल में रबी फसल का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था.
पानी के बंटवारे को लेकर गत साल दिसंबर में दोनों राज्यों के अधिकारियों की बैठक हुई लेकिन इसमें भी विवाद नहीं सुलझ. चंबल क्षेत्र के जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता एन.पी. कोरी बताते हैं, ''जब से चंबल नहर प्रणाली बनी है, तब से हमें पूरा पानी नहीं मिला है. राजस्थान ने धौलपुर के पास चंबल नदी में एक वॉटर लिफ्टिंग प्लांट भी लगा लिया है जिससे नदी का जलस्तर कम हो रहा है. ''
मध्य प्रदेश के अधिकारियों का आरोप है कि कम पानी मिलने के कारण चंबल नहर प्रणाली का पूरा दोहन नहीं हो पा रहा है. नहर के अंतिम मुहाने तक पहुंच पाने के लिहाज से भी पानी पर्याप्त नहीं है. कोरी कहते हैं, ''गांधी सागर बांध में फिलहाल सिंचाई के लिए करीब 2.42 मिलियन एकड़ फीट (एमएफ) पानी उपलब्ध है, जिसमें से मप्र का हिस्से 1.21 एमएएफ है जिससे चंबल के करीब 3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई हो सकती है. लेकिन हमें सिर्फ0.70 एमएएफ पानी ही दिया जा रहा है. ''
मध्य प्रदेश के जल संसाधन मंत्री जयंत मलैया भी आरोप को दोहराते हुए कहते हैं, ''मध्य प्रदेश को रोजाना करीब 3900 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. मामले का हल निकालने के लिए दोनों राज्यों के बीच पानी परियोजनाओं व समझौतों की फिर से समीक्षा की जाएगी. विवाद का हल फिर भी नहीं निकलता है तो इस मामले को केंद्रीय जल संसाधन विभाग के सामने उठाया जाएगा. ''
दरअसल चंबल क्षेत्र के लिए मध्य प्रदेश के जल संसाधन विभाग ने करोड़ों रू. खर्च करके चंबल अंचल में नहरों का जाल बिछाया है ताकि किसानों को पानी उपलब्ध हो सके और फसल भी भरपूर हो सके. लेकिन ये नहरें सूखी पड़ी रहती हैं. बावजूद इसके कि चंबल नदी के कैचमेंट क्षेत्र में मध्य प्रदेश का योगदान 70 फीसदी है, जबकि राजस्थान का योगदान मात्र 30 फीसदी.
जब भी दो राज्यों के बीच नदी के पानी का बंटवारा होता है तो कैचमैंट क्षेत्र में योगदान का खास ध्यान रखा जाता है. लेकिन ज्यादा योगदान के बावजूद मध्य प्रदेश नुकसान में है. हालांकि राजस्थान के जल संसाधन मंत्री हेमाराम चौधरी यह बात मानने को भी तैयार नहीं हैं कि चंबल नदी के पानी के बटवारे को लेकर मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच कोई विवाद भी है. वे कहते हैं, ''मध्य प्रदेश के साथ कोई अन्याय नहीं हो रहा. हम उन्हें पूरा पानी दे रहे हैं. दिसंबर महीने में दिल्ली की उच्च स्तरीय बैठक हुई थी उसमें भी मध्य प्रदेश ने ऐसा कोई मामला नहीं उठाया. 16 जनवरी को हुई बैठक में भी ये मुद्दा सामने नहीं आया. '' पिछले साल हुई अच्छी बरसात के कारण गांधी सागर बांध में इतना पानी है कि उससे इस साल भी अच्छे से सिंचाई हो सकती है. लेकिन यह तभी संभव हैै जब मध्य प्रदेश को उसके हिस्से का पूरा पानी मिल जाए.
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