दागी नेताओं पर आजीवन बैन चाहता है EC, केंद्र 6 साल के पक्ष में

दागी नेताओं पर आजीवन बैन को लेकर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार में ठन गई है. सुप्रीम कोर्ट में आज चुनाव आयोग ने दागी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की पैरवी की.

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चुनाव आयोग चुनाव आयोग

राहुल विश्वकर्मा / अनुषा सोनी

  • नई दिल्ली,
  • 01 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 11:56 PM IST

दागी नेताओं पर आजीवन बैन को लेकर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार में ठन गई है. सुप्रीम कोर्ट में आज चुनाव आयोग ने दागी नेताओं पर जहां आजीवन प्रतिबंध लगाने की पैरवी की, वहीं केंद्र ने इसे एक तरह से खारिज कर दिया. एक याचिका पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दोषी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की.

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सरकार का तर्क, 6 साल की सजा पर्याप्त

वहीं केंद्र सरकार ने इस मामले में चुनाव आयोग से अलग राय रखते हुए कहा कि दागी नेताओं पर मौजूदा 6 साल के बैन का प्रावधान पर्याप्त है. इसमें बदलाव की फिलहाल कोई जरूरत नहीं है. इससे पहले भी चुनाव आयोग ने एक हलफनामे में दागी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध का समर्थन किया था. 

सुझावों पर केंद्र कर रही विचार

सरकार के प्रतिनिधि एडिशनल सॉलीसिटर जनरल आत्माराम नडकर्णी ने कहा कि दागी नेताओं पर 6 साल का बैन ठीक है. यह सजा दोषी नेता के लिए पर्याप्त है. सजा देने का उद्देश्य इससे पूरा होता है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि चुनाव आयोग और लॉ कमीशन के सुझावों पर केंद्र सरकार विचार कर रही है.

नेताओं को कम सजा क्यों?

इस मामले में कई याचिका डाली गई है, जिसमें मुख्य याचिका भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की है. केस में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका में ऐसे मामलों में बैन आजीवन है. ऐसे में नेताओं पर सिर्फ 6 साल का प्रतिबंध पूरी तरह से मनमानी और असंगत है.

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फास्ट ट्रैक कोर्ट की पैरवी

सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं के मामले की गंभीरता को देखते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट की बात की. कोर्ट ने इसमें लगने वाले वक्त और पैसे समेत कई जानकारियां मांगी है. केंद्र ने भी नेताओं पर आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट का समर्थन किया. कोर्ट का सरकार से सीधा सवाल था कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दाखिल होने वाले मुकदमों को जल्द निपटाने का आपके पास क्या प्लान है. इस पर सरकार का कहना था कि वो राजनीति में अपराधीकरण को कम करने के उपाय कर रही है. सरकार के इस जवाब से कोर्ट शायद बहुत संतुष्ट नहीं था. लिहाजा जस्टिस चेल्लमेश्वर ने कहा कि दागी नेताओं यानी जनप्रतिनिधियों के मामले सामान्य कोर्ट के मुकाबले फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाये जाएं ताकि सामान्य कोर्ट पर मुकदमों का बोझ कम हो. साथ ही इनके भ्रष्टाचार और भ्रष्ट आचरण के मामलों का निपटारा भी जल्दी हो जाए. 

6 सप्ताह में ड्राफ्ट प्लान कोर्ट को सौंपे

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि छह हफ्ते में वो अपना ड्राफ्ट प्लान कोर्ट को सौंपे जिसमें फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या और समय की जानकारी भी रहे, ताकि किसी भी दागी जनप्रतिनिधि के खिलाफ दाखिल मुकदमे का निपटारा साल भर के भीतर हो जाए.

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कोर्ट ने सरकार से ये भी पूछा कि पिछले तीन सालों में कितने जनप्रतिनिधियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे दर्ज हुए हैं. इतना ही नहीं, कितनों को सजा हुई और कितने बरी हुए. बरी हुए तो इसके पीछे कारण क्या था.  सरकार सिर्फ इतना ही बता पाई कि 2014 में 1581 सांसदों और विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे दर्ज हुए थे. लेकिन कोर्ट ने कहा कि जो सवाल पूछे गये हैं उनके तफ्सील जवाब सरकार छह हफ्ते में दाखिल करे.

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