पंडित जसराज का आज जन्मदिन है. वह देश ही नहीं दुनिया के सर्वाधिक प्रतिष्ठित शास्त्रीय गायकों में से एक हैं. उनका जन्म 28 जनवरी, 1930 को हरियाणा के फतेहाबाद जिले के पीली मंदोरी में हुआ था. वह एक संगीतज्ञ परिवार में पैदा हुए थे. जब छोटे थे तभी अपने परिवार के साथ हैदराबाद चले गए. कहते हैं जब जसराज काफी छोटे थे तभी उनके पिता पंडित मोतीराम का निधन हो गया. दुखद तो यह कि पंडित मोतीराम का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अलि खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था.
इसके चलते पंडित जसराज का लालन-पालन उनके अग्रज संगीत महामहोपाध्याय पं. मणिराम के द्वारा हुआ. उन्हीं की छत्रछाया में पं. जसराज ने संगीत की शिक्षा ली. बालक जसराज तबला वादक के रूप में बड़े भाई के साथ संगीत समारोहों व कार्यक्रमों में जाने लगे. पर उस समय दौर में तबला वादकों को सारंगी वादकों से छोटा माना जाता था. कहते हैं इस तरह के दोयम दर्जे के व्यवहार से नाखुश होकर पंडित जसराज ने चौदह साल की उम्र में तबला बजाना बंद कर दिया, और एक प्रतिज्ञा ली कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद हासिल नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएंगे.
खुद पंडित जसराज के शब्दों में हुआ यह था कि '1945 में लाहौर में कुमार गंधर्व के साथ एक कार्यक्रम में मैं तबले पर संगत कर रहा था. कार्यक्रम के अगले दिन कुमार गंधर्व ने उन्हें बुरी तरह से डांट दिया कि, 'जसराज तुम मरा हुआ चमड़ा पीटते हो, तुम्हे रागदारी के बारे में कुछ नहीं पता.' उस दिन के बाद से मैंने तबले को कभी हाथ नहीं लगाया और तबला वादक की जगह गायकी ने ले ली. इंदौर का होलकर घराना काफी प्रसिद्ध रहा है. उस्ताद अमीर खां, पंडित कुमार गंधर्व, लता मंगेशकर, किशोर कुमार सहित इतनी हस्तियां यहां से हैं. कई बार लगता है कि कहां मैं हरियाणा में पैदा हो गया. ईश्वर इंदौर में ही जन्म दे देता तो इन सभी की सोहबत मिलती..
इसके बाद तो इतिहास है. पंडित जसराज ने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला तथा आगरा के स्वामी वल्लभदास से संगीत विशारद प्राप्त किया. पं. जसराज की आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है. उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की 'ख़याल' शैली की विशिष्टता है. उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की. भारतीय शास्त्रीय संगीत में यह उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है. उन्होंने 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी ईजाद की. इस संगीत शैली में एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं. पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया.
उनके गाए गीतों के अलबम पूरी दुनिया के संगीतप्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं. भारत सरकार ने भी पंडित जसराज की संगीत सेवाओं के लिए उन्हें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री से सम्मानित किया है. इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड, लता मंगेशकर पुरस्कार, महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार भी मिल चुका है. उन्होंने कुछ फिल्मों के लिए भी अपनी संगीत सेवाएं दीं, पर शास्त्रीय संगीत में उन्होंने जो मुकाम छुआ है, उसको देखते हुए उसकी चर्चा गौण है. साहित्य आजतक और उसके पाठकों की ओर से पंडित जसराज को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं.
मोहित पारीक / aajtak.in