सबरीमाला पर SC के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन, मान्यताओं पर जोर

मंदिर में अयप्पा के दर्शन करने के योग्य हैं जिनकी उम्र 10 वर्ष से कम और 50 वर्ष से ज्यादा है. 10 से 50 वर्ष के बीच की उम्र वाली महिलाओं को ऋतुगामी कहा गया है जिसका अर्थ ऐसी महिलाओं से हैं जो शारीरिक तौर पर मां बन सकती हैं.

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अयप्पा के उपासक (तस्वीर: रामकिंकर) अयप्पा के उपासक (तस्वीर: रामकिंकर)

परमीता शर्मा / राम किंकर सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 15 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 2:51 AM IST

केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी आयु-वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की इजाज़त मिलने का सबसे ज्यादा विरोध महिलाएं ही कर रही हैं. इसके पीछे सालों की परंपरा और मान्यता है, जिसके तहत वही महिलाएं सबरीमाला मंदिर में अयप्पा के दर्शन करने के योग्य हैं जिनकी उम्र 10 वर्ष से कम और 50 वर्ष से ज्यादा है.

10 से 50 वर्ष के बीच की उम्र वाली महिलाओं को ऋतुगामी कहा गया है जिसका अर्थ ऐसी महिलाओं से हैं जो शारीरिक तौर पर मां बन सकती हैं. वो अयप्पा के दर्शन के योग्य नहीं मानी जातीं. ऐसी महिलाओं को मंदिर में दर्शन के अयोग्य मानने के पीछे पुराना विश्वास और परंपरा है जो प्राचीन है. दरअसल सबरीमाला के श्रद्धालुओं की मान्यता है कि अय्प्पा भगवान ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जंगलों में जाकर बस गए थे, यही वजह है कि 10 से 50 वर्ष की महिलाओं का प्रवेश यहां वर्जित है.

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अयप्पा के दर्शन की योग्यता क्या है

अयप्पा के श्रद्धालु विनोद का कहना है कि 41 दिन के व्रत को करने वाला ही अयप्पा का सच्चा उपासक माना जाता है और असल में यही दर्शन के योग्य भी माने जाते हैं. मंदिर में किसी भी धर्म-जाति या फिर वर्ग से ताल्लुक रखने वाले लोग जा सकते हैं पर शर्त ये है कि वो प्राचीन मान्यताओं पर खरे उतर रहे हों. 16 नवंबर से 14 जनवरी के दौरान जब मंदिर खुलता है उस वक्त दर्शन करने और व्रत रखने की केरल में विशेष मान्यता है.

बच्चे का जन्म भी अशुभ है

अयप्पा ब्रहमचर्य का पालन करने वाले साधू-संत थे. लिहाजा व्रत करने वाला शख्स नॉनवेज से दूर रहता है, शेव नहीं करता, अगर साधक के घर में बच्चे की पैदाइश हो जाए तो 16 दिनों तक घर को अशुद्ध मानते हुए उसमें प्रवेश नहीं करता. किसी की मौत होने पर भी घर में प्रवेश नहीं करता. सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरोध प्रदर्शन में शामिल श्रद्धालु विजय का कहना है कि हम आदेश की खिलाफ नहीं हैं बल्कि प्राचीन विश्वास और परंपरा की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं और फैसले पर रिव्यू की मांग कर रहे हैं.

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