सरकार का ऐलान- 2021 तक रेल के माध्यम से पूरे भारत से जुड़ जाएगा कश्मीर

कश्मीर अगले साल दिसंबर तक रेलवे नेटवर्क के माध्यम से पूरे भारत से जुड़ जाएगा, क्योंकि केंद्र सरकार ने दुनिया के सबसे बड़े रेलवे पुल को पूरा करने के लिए एक नई समय सीमा तय की है.

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चेनाब पुल चेनाब पुल

aajtak.in

  • श्रीनगर,
  • 09 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 9:24 AM IST

  • 111 किलोमीटर के इलाके को जोड़ेगा यह पुल
  • एफिल टॉवर से 35 मीटर ज्यादा ऊंचा होगा

कश्मीर अगले साल दिसंबर तक रेलवे नेटवर्क के माध्यम से पूरे भारत से जुड़ जाएगा, क्योंकि केंद्र सरकार ने दुनिया के सबसे बड़े रेलवे पुल को पूरा करने के लिए नई समय सीमा तय की है. इस रेलवे लाइन की ऊंचाई एफिल टॉवर से 35 मीटर ज्यादा होने की उम्मीद है. एफिल टावर 273 मीटर ऊंचा है.

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कोंकण रेलवे ने कहा कि यह प्रोजेक्ट भारतीय रेलवे के स्वतंत्र इतिहास के बाद की सबसे चुनौतीपूर्ण कार्यों में से एक था. कोंकण रेलवे के चेयरमैन संजय गुप्ता ने बताया, 'रेलवे के 150 साल के लंबे इतिहास में यह सबसे चुनौतीपूर्ण काम है. दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल को कश्मीर के बाकी हिस्सों से रेल लाइन से जोड़ने का काम दिसंबर 2021 तक पूरा हो जाएगा.'

गुप्ता ने कहा, 'पुल का निर्माण आजादी के बाद के कश्मीर रेल लिंक परियोजना का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा है और एक बार पूरा हो जाने पर यह इंजीनियरिंग का चमत्कार साबित होगा.'

उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर अर्धचंद्र आकार के इस बड़े ढांचे के निर्माण में 5,462 टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है, जो नदी के तल से 359 मीटर ऊपर होगा.

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यह पुल 260 किमी प्रति घंटे तक की हवा की गति का सामना कर सकने में सक्षम है. जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर बना 1.315 किलोमीटर लंबा यह पुल बक्कल (कटरा) और कौड़ी (श्रीनगर) को जोड़ेगा.

यह पुल कटरा और बनिहाल के बीच 111 किलोमीटर के इलाके को जोड़ेगा, जो उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना का हिस्सा है.

निर्माण कार्य पूरा होने के बाद यह पुल बेईपैन नदी पर बने चीन के शुईबाई रेलवे पुल (275 मीटर) का रिकॉर्ड तोड़ेगा.

गुप्ता ने कहा कि उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना कश्मीर घाटी को भारतीय रेलवे नेटवर्क द्वारा भारत के दूसरे हिस्सों से जुड़ने के लिए एक वैकल्पिक ट्रैक प्रदान करने के लिए आवश्यक है.

उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर में निर्बाध और परेशानी मुक्त कनेक्टिविटी प्रदान करने के उद्देश्य से इस परियोजना को 2002 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था.

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