इनके दरवाजे सभी धर्म और जाति के लोगों के लिए खुले होते हैं. इस लिहाज से यहां के मठ किसी सरकारी संस्था की तरह काम करते हैं. जो मुद्दे किसी भी राजनैतिक दल के घोषणा-पत्र का हिस्सा हो सकते हैं, वे सभी काम मठ सौ साल से करते आ रहे हैं.
गरीबों को भोजन, बच्चों को शिक्षा, गरीब घर की लड़कियों की शादी, इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज तथा अन्य शिक्षण संस्थान सब कुछ मठों के तहत चलता है. लिहाजा, जानकारों के मुताबिक, राज्य की बड़ी आबादी (कुछ लोगों के मुताबिक 85 फीसदी तक) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी मठ से जुड़ी हुई है.
राज्य के सभी 30 जिलों में मठों का जाल फैला हुआ है. जातीय समीकरण के लिहाज से मठों का अपना प्रभुत्व और दबदबा है जो राजनैतिक दलों को उनकी ओर आकर्षित करता है. राज्य में सबसे अधिक दबदबे वाले लिंगायत समुदाय की संख्या 18 फीसदी है.
इस समुदाय का मुख्य मठ सिद्धगंगा बेंगलूरू से लगभग 80 किलोमीटर दूर तुमकुर में है. इस मठ को भाजपा समर्थक माना जाता है. इसके प्रमुख शिवकुमार स्वामी 110 साल के हो चुके हैं और बीमार हैं. मठ का सारा काम अब सिद्धलिंगा स्वामी देखते हैं. वे कहते हैं, 'राज्य' में हमारे मठों की संख्या 400 से अधिक है.
मठ किसी राजनैतिक दल का न तो विरोध करता है, न ही समर्थन. हम सामाजिक सरोकार से जुड़े काम को पूरी लगन के साथ करते हैं और सभी का सहयोग हमें मिलता है.'' न मठ किसी राजनैतिक दल का समर्थन नहीं करता है तो फिर सिद्धगंगा मठ को भाजपा का समर्थक क्यों कहा जाता है?
सिद्धलिंगा स्वामी का जवाब है, ''शायद भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बी.एस. येदियुरप्पा के लिंगायत समुदाय से होने की वजह से ऐसा है. लेकिन हमारे मठ में अन्य दलों और अन्य समुदाय के नेता भी आते हैं. हम राजनैतिक रूप से निरपेक्ष हैं.''
जनसंख्या के लिहाज से कर्नाटक की दूसरी प्रभावी जाति वोक्कालिग्गा है. इसकी आबादी 12 फीसदी है. इस समुदाय का प्रमुख मठ आदि चुनचनगिरी है. इसे जनता दल (सेकूलर) समर्थक मठ माना जाता है.
एचडी देवेगौड़ा वोक्कालिग्गा समुदाय के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. मठ का प्रभाव दक्षिण कर्नाटक में अपेक्षाकृत अधिक है. यह राज्य का वही इलाका है जहां 1985 के बाद से जेडीएस के सबसे अधिक विधायक जीतते हैं.
राज्य में वोक्कालिग्गा समुदाय के 150 मठ हैं, जिनमें ज्यादातर दक्षिण कर्नाटक में हैं. मठ के दर्जनों शिक्षण संस्थान हैं. हालांकि मठ में किसी भी जाति या धर्म के बच्चों के लिए कोई प्रतिबंध नहीं है लेकिन सबसे अधिक बच्चे वोक्कालिग्गा समुदाय से ही हैं.
मठ के स्वामी निर्मलानंद इस बात से तो इनकार करते हैं कि, मठ जेडीएस समर्थक है लेकिन मठ के लोग परोक्ष रूप से यह स्वीकार करते हैं कि, ''वोक्कालिग्गा समुदाय समाज के हर क्षेत्र में चाहे वह राजनीति ही क्यों न हो आगे बढ़े, यह मठ चाहता है.''
मठ के प्रमुख स्वामी निर्मलानंद कहते हैं, ''मठ को किसी राजनैतिक पार्टी का समर्थक बताना ठीक नहीं है. ऐसा होता तो भाजपा, कांग्रेस और दूसरे दलों के नेता क्यों आते. हमसे जो भी श्रद्धा से मिलना चाहता है, सभी के लिए हमारे दरवाजे खुले हैं.''
तीसरा प्रमुख मठ कुरबा समुदाय से जुड़ा हुआ है. 80 से अधिक मठ इस समुदाय से जुड़े हैं. मुख्य मठ दावणगेरे में श्रीगैरे मठ है. मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरामैया इसी समुदाय से आते हैं. राज्य में कुरबा आबादी 8 फीसदी है.
इसके अलावा सुत्तुर मठ-मैसूरू, आस्था मठ-उडुपी, मुरुसविरा मठ-हुबली, कमापरी मठ-चिकमंगलुर वगैरह प्रमुख हैं. इन मठों से एससी-एसटी समुदाय के लोग जुड़े हुए हैं. हर राजनैतिक दल के नेता इन मठों का समर्थन पाने की जुगत में हैं.
पूरी भाजपा इस बार आदि चुनचनगिरी मठ (वोक्कालिग्गा) को साधने की कोशिश में इसलिए लगी है क्योंकि मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने भाजपा समर्थक माने जाने वाले तुमकुर मठ में अपनी पैठ बना ली है. मुख्यमंत्री ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने की पहल शुरू कर दी है.
इससे लिंगायत समुदाय या कम से कम मठ का झुकाव सिद्धरामैया की तरफ होता दिख रहा है. सिद्धलिंगा स्वामी कहते हैं, ''मुझे पता है कि मुख्यमंत्री ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने की बात की है. ऐसा होता है तो निश्चित रूप से अल्पसंख्यक धर्म के लोगों को जो संवैधानिक और कानूनी लाभ मिलता है वह लिंगायत समुदाय को भी मिलेगा. मठ समुदाय के कल्याण के लिए ही काम कर रहा है, कोई इसमें मदद करता है तो उसका धन्यवाद.''
दरअसल, सिद्धरामैया ने आगामी चुनाव में भाजपा को शिकस्त देने के लिए ही लिंगायत को धर्म का दर्जा देने का शिगूफे बहुत पहले ही छोड़ दिया था. हाल ही में इंडिया टुडे ग्राउंड में जाकर कर्नाटक की सियासी जमीन टटोलने की कोशिश की तो उस वक्त तक भाजपा इस मुद्दे पर कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी सिवा इसके कि ऐसा करना संभव नहीं है.
भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा ने उस वक्त कहा था ''कांग्रेस ने सिर्फ सियासी बयानबाजी की है. महज लिंगायत ही नहीं अन्य समुदाय के लोगों का भी भाजपा को समर्थन है. लोग कांग्रेस की साजिश में फंसने वाले नहीं हैं.'' दूसरी ओर, मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने कहा था, ''राज्य में जितने भी मठ हैं उन सब का समर्थन कांग्रेस को है. लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने के मुद्दे पर येदियुरप्पा चुप्पी साधे क्यों बैठे हैं?''
मठ के स्वामी भले यह दावा करें कि वे राजनैतिक रूप से निष्पक्ष हैं लेकिन हकीकत यह है कि कर्नाटक में न तो मठ के बिना सियासत है, न सियासत के बिना मठ. राज्य के मुद्दों से लेकर, प्रत्याशियों के चयन तक में मठ प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल हैं. सत्ता मिलने के बाद मंत्रिमंडल तक में मठों की पैठ है.
मठ के लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक, हर दल के नेता मठ के स्वामी को पार्टी के हर फैसले की तत्काल जानकारी देते हैं.मसलन, टिकट बंटबारे में किस समुदाय के लोगों को कितनी टिकट मिली, जिन लोगों की पैरवी मठ ने की थी उनमें कितनों को टिकट दिया गया, वगैरह. इसके बाद ही मठ यह फैसला करता है कि किस दल को वोट देने का परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से संदेश अनुयायियों को दिया जाए.
मठों की तरफ से किसी भी दल या प्रत्याशी को समर्थन देने के इशारे हैं मजेदार
भाजपा को समर्थन देने के लिए भक्तों को प्रवचन या दर्शन देते वक्त स्वामी अपने हाथ की उंगलियों को पुष्प आकार में रखते हैं. या फिर हाथ में कोई पुष्प लेकर विराजमान होते हैं या दर्शन के बाद जाने से पहले श्रद्धालुओं पर फूल फेंकते हैं.
कांग्रेस को समर्थन देना है तो स्वामी हाथ ऊपर उठाकर रखते हैं. जेडीएस को वोट करने के लिए कहना है तो स्वामी अपना अंगवस्त्रम (तौलिया-गमछा) को बाएं कंधे पर रखते हैं. जेडीएस नेता देवेगौड़ा अपने बाएं कंधे पर अंगवस्त्रम रखते हैं. बहरहाल, मठों की अहमियत से हर पार्टी के नेता आजकल आशीर्वाद पाने को लालायित हैं.
कुल मिलाकर लिंगायत को धर्म का दर्जा देने की सिफारिस के बाद कांग्रेस की स्थिति मजबूत होती दिख रही है. अब देखना ये है कि भाजपा इसका जवाब कैसे देती है.
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संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर