कांग्रेस के बागी कलिखो पुल बने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री

शुक्रवार रात को कलिखो पुल ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वह अरुणाचल प्रदेश के आठवें मुख्यमंत्री बने हैं. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में यथास्थिति का फैसला वापिस ले लिया था. इसके बाद राज्य में सरकार गठन का रास्ता साफ हो गया था.

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कलिखो पुल बने अरुणाचल के सीएम कलिखो पुल बने अरुणाचल के सीएम

स्‍वपनल सोनल

  • नई दिल्ली,
  • 19 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 10:37 AM IST

कलिखो पुल अरुणाचल प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं. सुप्रीम कोर्ट की ओर से अरुणाचल प्रदेश में सरकार गठन की मंजूरी के बाद शुक्रवार को कांग्रेस से असंतुष्ट चल रहे कलिखो पुल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. कलिखो पुल को राज्यपाल जेपी राजखोवा ने  पद और गोपनियता की शपथ दिलाई. बीते करीब एक महीने से राज्य में सियासी अस्थिरता का माहौल था. शपथ ग्रहण के बाद कलिखो पुल ने कहा कि सहयोगियों से चर्चा के बाद मंत्रिमंडल विस्तार पर फैसला किया जाएगा.

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जानें कौन हैं कलिखो...

गौरतलब है कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में यथास्थिति का फैसला वापिस ले लिया. जबकि इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को अरुणाचल प्रदेश से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश की थी. सोमवार को कांग्रेस के असंतुष्ट कलिखो पुल के नेतृत्व में 31 विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात की थी और राज्य में अगली सरकार बनाने का दावा पेश किया था. उनके साथ कांग्रेस के 19 बागी विधायक और बीजेपी के 11 विधायक और दो निर्दलीय सदस्य शामिल थे.

पहले भी ली गई है रात में शपथ
अरुणाचल प्रदेश के इतिहास में इससे पहले मई 2011 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता जारबोम गामलिन ने रात में ही राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी. दरअसल, तब हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मुख्यमंत्री दोरजी खांडू का निधन हो गया था और ऐसे में आनन-फानन में गामलिन को नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाना जरूरी हो गया था. नए मुख्यमंत्री के लिए तब 6 नाम प्रस्तावित किए गए थे, जिनमें से गामलिन के नाम पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रात लगभग 9 बजे अपनी सहमति दी थी.

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राज्य में बीते साल शुरू हुआ राजनीतिक संकट
बता दें कि राज्य में संवैधानिक संकट की शुरुआत बीते साल तब हुई जब 60 सदस्यों वाली अरुणाचल विधानसभा में तब की कांग्रेस सरकार के 47 विधायकों में से 21 (इनमें दो निर्दलीय) विधायकों ने अपनी ही पार्टी और मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी. मामला नबम तुकी और उनके कट्टर प्रतिद्वंदी कलिखो पुल के बीच है. पुल चाहते थे कि तुकी की जगह उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाए. इसके बाद 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया.

राजनीतिक अस्थि‍रता के बीच 15 दिसंबर को कांग्रेस ने दावा किया था कि पूर्व विधानसभा स्पीकर नबम रेबिया ने 14 विधायकों को अयोग्य करार दिया था. पार्टी बागियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस पूरे घटनाक्रम के बीच कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राज्यपाल जेपी राजखोवा 'बीजेपी के एजेंट' की तरह काम कर रहे हैं.

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