उत्तराखंड के रास्ते अब हो सकेगी कैलाश मानसरोवर की यात्रा, पूरा हुआ पीएम मोदी का सपना

17 हजार से ज्यादा फीट की ऊंचाई पर 80 किलोमीटर लम्बी यह सड़क कैलाश मानसरोवर को जोड़ने वाले लिपुलेख तक जाएगी. इस रोड का काम कई सालों से चल रहा था लेकिन ऊंचे पहाड़ और मुश्किल हालात से इसमें काफी दिक्कतें आ रही थी.

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कैलाश मानसरोवर जाने का रास्ता हुआ आसान (फोटो-आजतक) कैलाश मानसरोवर जाने का रास्ता हुआ आसान (फोटो-आजतक)

मंजीत नेगी

  • नई दिल्ली,
  • 08 मई 2020,
  • अपडेटेड 10:41 PM IST

  • 90 किलोमीटर सड़क यात्रा कर पहुंचेंगे कैलाश मानसरोवर
  • उत्तराखंड के रास्ते कैलाश मानसरोवर की यात्रा पीएम का सपना

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से कैलाश मानसरोवर की यात्रा में आज एक नया अध्याय जुड़ गया. अब उत्तराखंड के पारंपरिक लिपुलेख सीमा तक की सड़क बन जाने के बाद तीर्थयात्री सड़क मार्ग से कैलाश मानसरोवर के दर्शन करके एक-दो दिन में ही भारत लौट सकेंगे. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को पिथौरागढ़ धारचूला से लिपुलेख को जोड़ने वाली सड़क का वीडियो कांफ्रेंस के जरिए उद्घाटन किया. इस मौके पर सीडीएस जनरल बिपिन रावत सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे और बीआरओ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह मौजूद थे.

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17 हजार से ज्यादा फीट की ऊंचाई पर 80 किलोमीटर लम्बी यह रोड कैलाश मानसरोवर को जोड़ने वाले लिपुलेख तक जाएगी. इस रोड का काम कई सालों से चल रहा था लेकिन ऊंचे पहाड़ और मुश्किल हालात से इसमें काफी दिक्कतें आ रही थी. अभी तक कैलाश मानसरोवर जाने में 3 हफ्ते से ज्यादा का वक्त लगता है जबकि लिपुलेख के रास्ते अब मात्र 90 किलोमीटर की सड़क यात्रा कर कैलाश मानसरोवर पहुंचा जा सकेगा.

'आजतक' को मिली खास जानकारी के मुताबिक ऊंचे पहाड़ों पर सड़क बनाने के इस काम में वायुसेना के एमआई-17 और 26 हेलीकॉप्टरों का भी इस्तेमाल किया गया है. पीएमओ के अधिकारी खुद इस परियोजना पर नजर रख रहे थे. पहाड़ काटने के लिए ऑस्ट्रेलिया से विशेष अत्याधुनिक मशीनें मंगवाई गई थी. इन मशीनों की मदद से करीब तीन माह के अंदर 35 किलोमीटर से अधिक दूरी तक पहाड़ काटा जा सका.

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उत्तराखंड के पारंपरिक रास्ते से अब आसान होगी कैलाश मानसरोवर यात्रा

घटियाबगढ़ से लेकर लिपुलेख तक करीब 75.54 किलोमीटर रोड का काम बीआरओ कर रहा है. लिपुलेख की तरफ 62 किलोमीटर तक रोड का काम पूरा हो चुका है. घटियाबगढ़ से आगे की तरफ पहाड़ काटकर सड़क बनाने में ऊंचे पहाड़ होने के वजह से बहुत मुश्किलें आई.

जाहिर है मोदी सरकार के एजेंडे में कैलाश मानसरोवर की यात्रियों की सुविधा का मुद्दा हमेशा से अहम रहा है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे सिक्किम में नाथुला मार्ग खोलने का आग्रह किया था, जिसे उन्होंने मान लिया था. लिपुलेख दर्रे के पार चीन में सीमा से मानसरोवर की दूरी महज 72 किलोमीटर है और सीमा से वहां चीन ने शानदार सड़क पहले ही बना रखी है.

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मोदी सरकार की योजना धारचुला में पर्यटक आधार शिविर को विकसित करने की थी, जहां से तीर्थयात्री एक दिन में ही मानसरोवर के दर्शन करके भारत लौट सकें.

साल 2015 में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि अप्रैल 2017 में वे पिथौरागढ़ के नए रास्ते से पीएम मोदी को कैलाश मानसरोवर ले जाना चाहते हैं. ऐसे में बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) दिन-रात काम करके कैलाश मानसरोवर के इस नए रास्ते को बनाने में जुटा रहा. इस सड़क के बन जाने से कैलाश मानसरोवर जाने वाले यात्रियों की संख्या में इजाफा होने की उम्मीद है.

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वर्तमान में लिपुलेख दर्रे के दुर्गम मार्ग से पैदल यात्रा पर जाने वाले यात्रियों को करीब एक से डेढ़ लाख रुपए प्रति यात्री खर्च होता है. सुविधाओं के अभाव में यात्रियों को काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है. दूसरा इस यात्रा में 15-16 दिन का समय लगता है.

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