हैदराबाद के पश्चिमी उपनगर चिल्कुर में स्थित बालाजी मंदिर छात्र हलकों में 'वीजा वेंकटेश्वर' के तौर पर मशहूर है—माना जाता है कि इस मंदिर में सिर झुकाओ और मन्नत मांगो तो ग्रेजुएट अध्ययन के लिए अमेरिकी वीजा मिलना लगभग पक्का है. 3 जुलाई की उमस भरी दोपहर में अपनी चिरपरिचित धवल सफेद पैंट-शर्ट और साथ ही हरा स्कार्फ धारण किए के. चंद्रशेखर राव ने मंदिर में पूजा-अर्चना की और यहां की कार-पार्किग में एक पौधा रोपा. लेकिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री को वीजा से ज्यादा कुछ चाहिएः समृद्धि का पासपोर्ट, हरा-भरा और सोने की तरह जगमगाता ('बंगारू') तेलंगाना. केसीआर ने नसीहत देते हुए कहा, ''यह महायज्ञ है. हरेक निर्वाचन क्षेत्र को अगले चार साल में 40,00,000 पौधे रोपने चाहिए.'' यह उस 'तेलंगाना हरिता हरम' का हिस्सा है, जिसे हिंदुस्तान में वृक्षारोपण का सबसे बड़ा कार्यक्रम कहकर प्रचारित किया जा रहा है.
हरित अभियान अकेला नहीं है. भारत के सबसे नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता संभाले केसीआर को तेरह महीने हो चुके हैं और उन्होंने तेलंगाना के विकास को तेज रफ्तार देने के लिए भारी-भरकम योजनाओं का ताबड़तोड़ पिटारा खोल दिया है. तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सरकार की सिरमौर योजनाएं हैं—राज्य के सभी घरों में पेयजल के नलों का जाल बिछाने की तेलंगाना पेयजल आपूर्ति परियोजना और सिंचाई के स्रोतों का इंतजाम करने के लिए स्थानीय झीलों—यानी राज्य की 47,000 में से कम-से-कम दो-तिहाई झीलों—को दुरुस्त करने के लिए मिशन काकतिया.
उद्योगों पर भी जोर दिया जा रहा है. 23 जुलाई को केसीआर ने खुद राज्य में 1,500 करोड़ रु. के निवेश से तकरीबन 4,000 नौकरियों का सृजन करने वाले उद्योग लगाने के लिए 17 कंपनियों को स्वीकृति पत्र सौंपे. इससे महज 12 दिन पहले ही उन्होंने ऐलान किया था कि सरकार सभी औद्योगिक परियोजनाओं को ऑनलाइन आवेदन करने के 15 दिन में सिंगल-विंडो मंजूरी दे देगी.
सत्ता में आने के पहले साल के भीतर ही केसीआर ने साबित कर दिया था कि वे अपने इरादों के पक्के हैं. नया राज्य बनने के छह माह के भीतर उन्होंने आंध्र प्रदेश की बिजली कंपनियों सहित निजी कंपनियों से बिजली खरीदने का फैसला किया, ताकि खेतों को रोज छह घंटे लगातार बिजली दे सकें. केसीआर का अगला लक्ष्य इसे बढ़ाकर मार्च 2016 से लगातार नौ घंटे बिजली देना और 2018 से सभी क्षेत्रों को चौबीसों घंटे बिजली देना है.
मुख्यमंत्री ने तमाम अहम फैसले लेकर अपनी सत्ता की असरदार छाप छोड़ी है. अलबत्ता इसका दूसरा पहलू यह है कि हर काम में उनके खुद अपना हाथ डालने की वजह से कुछ मामलों में बेहद देरी हो रही हैरू सरकार-संचालित सभी 10 विश्वविद्यालयों का कोई मुखिया नहीं है, क्योंकि यूनिवर्सिटी विधेयक का मसौदा मुख्यमंत्री की मंजूरी का इंतजार कर रहा है. गरीबों को 'केजी से पीजी तक' मुफ्त शिक्षा देने की एक बड़ी सरकारी योजना पर अभी काम ही चल रहा है.
अपने मंत्रियों और पार्टीजनों पर तो उनका खासा वश है, लेकिन विपक्ष कोई मौका नहीं छोड़ रहा. तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एन. उत्तम रेड्डी कहते हैं, ''चौतरफा निराशा फैली है, फिर चाहे वे किसान हों या खेतिहर मजदूर, छात्र हों या महिलाएं, स्वयं-सहायता समूह या बेरोजगार. केसीआर ने बतौर नेता खुद को विकसित नहीं किया ताकि दूसरे सियासी दलों और धड़ों को साथ लेकर चल सकें.'' हैदराबाद की मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सोशल एक्सक्लूजन ऐंड इंक्लूजन पॉलिसी के डायरेक्टर कांचा इलैया कहते हैं, ''उनकी कुछ प्राथमिकताएं लोकतांत्रिक नहीं, सनक भरी और सामंती हैं. केसीआर की दिलचस्पी अपनी पार्टी का सियासी जनाधार बढ़ाने में ज्यादा दिखाई देती है.''
मुख्यमंत्री इससे बेपरवाह हैं. मुद्दों पर ध्यान नहीं देने की शिकायत लेकर आने वाली हरेक मंडली से वे कहते हैं, ''वादे रातोरात पूरे नहीं होते और सरकार तो बेशक नहीं ही कर सकती. जिस तरह हमने तेलंगाना हासिल किया, उसी तरह ये वादे भी पूरे करेंगे.'' शायद यही वजह है कि उनके बेटे और पंचायती राज तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के.टी. रामराव को छोड़कर उनके किसी भी मंत्रिमंडलीय साथी ने अपने विभाग की प्रगति रिपोर्ट पेश नहीं की, बावजूद इसके कि पिछले साल सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में थोड़े-थोड़े समय में समीक्षा करने का फैसला लिया गया था. हो सकता है, मंत्रीगण मन ही मन खुश होकर अपने आप से बुदबुदाते हों: बस नेता के पीछे चलते रहो.
अमरनाथ के. मेनन