केंद्र सरकार ने शुक्रवार को बड़ी कार्रवाई करते हुए आतंकवादी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट(जेकेएलफ) पर बैन लगा दिया. यासीन मलिक के नेतृत्व वाला ये संगठन राज्य में आजादी का नारा लगाने वाला पहला संगठन था. उसने शुरू में बीजेपी के एक नेता को निशाना बनाया था जो कश्मीरी पंडित थे.
हिंसक कृत्यों और 1988 से आतंकवाद प्रभावित राज्य में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के कारण जेकेएलफ पर शुक्रवार को प्रतिबंध लगा दिया था. सुरक्षा के एक अधिकारी ने बताया कि आजादी का नारा लगाते हुए इस समूह ने कश्मीरी पंडितों, सरकारी कर्मचारियों और आम शांतिप्रिय कश्मीरी लोगों को निशाना बनाया.
अधिकारी ने कहा कि जेकेएलएफ ने पहली बार 14 सितंबर 1989 को एक कश्मीरी पंडित को निशाना बनाया और उसने बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष पंडित टीकालाल तापलू की हत्या कर दी. इस संगठन ने तीन सरकारी इमारतों में विस्फोट भी किया, जिसमें एक अगस्त 1988 को श्रीनगर के टेलीग्राफ कार्यालय में किया विस्फोट शामिल है.
जेकेएलएफ के सदस्यों ने 17 अगस्त 1989 को श्रीनगर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के स्थानीय नेता मोहम्मद यूसुफ हलवाई की हत्या कर दी. उसने सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश एन के गंजू की भी चार अक्टूबर 1989 को गोली मारकर हत्या कर दी, जिन्होंने जेकेएलएफ नेता मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई थी.
अधिकारी ने बताया कि समूह ने तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का आठ दिसंबर 1989 को उस समय श्रीनगर में अपहरण कर लिया था जब वह अस्पताल से घर लौट रही थीं.
वायुसेना अधिकारियों की हत्या में था शामिल
जेल में बंद जेकेएलएफ के पांच आतंकवादियों को छोड़ने पर पांच दिन बाद 13 दिसंबर को सईद को रिहा किया गया. संगठन द्वारा 25 जनवरी 1990 को वायुसेना के चार अधिकारियों की उस समय हत्या कर दी गई, जब वे श्रीनगर के नाटीपोरा में अपने परिवारों के साथ बस स्टैंड पर खड़े थे.
अन्य एक अधिकारी ने बताया कि वायुसेना के कर्मियों के परिवारों के 12 सदस्य भी हमले में घायल हो गए थे. उनमें से दो की बाद में मौत हो गई थी. जम्मू टाडा अदालत में मुख्य आरोपी यासीन मलिक और छह अन्य के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था.
अधिकारी ने बताया कि मलिक ने खुद को सुनवाई से बचाने के लिए सभी पैंतरे अपनाए और मामले को श्रीनगर स्थानांतरित करने के लिए 2008 में याचिका भी दायर की जिसे खारिज कर दिया गया था. इसके बाद उसने रिट याचिका के जरिए जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय का रुख किया. कई कारणों के चलते मार्च 2019 तक सुनवाई पूरी नहीं हो सकी.
केंद्रीय गृह मंत्रालय और जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने हालांकि मामले को लगातार आगे बढ़ाया और 13 मार्च 2019 को उच्च न्यायालय ने श्रीनगर में मुकदमे को स्थानांतरित करने की मलिक की याचिका को खारिज कर दिया. अधिकारी ने बताया कि जम्मू में जल्द फिर सुनवाई शुरू होने की संभावना है.
जेकेएलएफ अब भी जम्मू-कश्मीर में पत्थबाजी को बढ़ावा दे रहा है, धनशोधन में लिप्त है, अलगाववादी समूहों को वित्तीय और साजो-सामान की सहायता प्रदान करता है तथा आतंकवादी गतिविधियों का महिमामंडन करता है. यासीन मलिक अभी जम्मू की एक जेल में बंद है.
aajtak.in