एक-सी समस्या, एक-सी मांग, विरोध का तरीका भी एक जैसा लेकिन हश्र अलग-अलग. खंडवा जिले के घोघलगांव में जलसत्याग्रह के 17वें दिन प्रदेश सरकार ने प्रदर्शनकारियों के आगे घुटने टेक दिए, लेकिन हरदा जिले के खरदना गांव में प्रदर्शन के 15वें दिन सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया.
खंडवा और हरदा जिलों के बांध प्रभावितों का जलसत्याग्रह पूरे देश में सुर्खियों में रहा. नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के धरना-प्रदर्शनों के आदी हो चुके शासन-प्रशासन को जरा भी अंदाजा नहीं था कि इस बार आंदोलनकारी भारी पड़ेंगे. ओंकारेश्वर बांध की डूब से प्रभावित परिवारों के 51 सत्याग्रहियों ने 25 अगस्त को घोघलगांव में पानी में खड़े रहकर प्रदर्शन शुरू किया था. पहले हफ्ते इसे तवज्जो नहीं मिली. लेकिन जब सत्याग्रहियों की तबीयत बिगडऩे लगी, जिसकी मीडिया और सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर तीव्र प्रतिक्रिया हुई तो सरकार की नींद टूटी.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बांध के जलस्तर को घटाकर 189 मीटर तक करने और जमीन के बदले जमीन की मांग को नब्बे दिन में पूरा करने की घोषणा की. एनबीए के आलोक अग्रवाल इसे आंदोलन के चौबीस साल के इतिहास में महत्वपूर्ण सफलता बताते हैं क्योंकि इस बार सरकार ने बिना शर्त मागें मानी हैं. मगर प्रदर्शनकारियों की जीत और अपनी हार सरकार को नागवार गुजरी. इसका असर हरदा के आंदोलन पर पड़ा. यहां इंदिरा सागर बांध के डूब प्रभावित लोग जलस्तर को 260 मीटर से कम करने और जमीन के बदले जमीन की मांग कर रहे थे. लेकिन सरकार के इरादे बदल चुके थे. प्रशासन ने यहां धारा 144 लगा दी और आंदोलन के पंद्रहवें दिन, 12 सितंबर की सुबह सत्याग्रहियों को पानी से जबरन बाहर निकालकर गिरफ्तार कर लिया गया.
इसके बाद राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और विपक्ष के नेता अजय सिंह ने इस कार्रवाई को अलोकतांत्रिक और किसान विरोधी बताया तो प्रदेश के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने सफाई दी, ''पुलिस ने सत्याग्रहियों के जीवन की रक्षा के लिए यह कदम उठाया है. '' उन्होंने कांग्रेस को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा, ''कांग्रेस को प्रदेश का विकास रास नहीं आ रहा है.''
अब ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर बांध के डूब प्रभावितों के लिए अलग-अलग मापदंडों को लेकर सवाल उठ रहे हैं. अग्रवाल कहते हैं, ''दोनों बांधों को लेकर एक-सी पुनर्वास नीति है तो क्रियान्वयन अलग क्यों? '' दरअसल ओंकारेश्वर बांध के प्रभावितों को लेकर एनबीए की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में पुनर्वास नीति के मुताबिक जमीन के बदले जमीन का विकल्प देने की बात कही थी.
अदालत ने इंदिरा सागर बांध को लेकर लगाई गई याचिका पर भी वही आदेश लागू करने को कहा था. अग्रवाल जबलपुर हाइकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहते हैं, ''बिना पूर्ण पुनर्वास के बांध में 260 मीटर से ज्यादा पानी न भरे जाने के हाइकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी यथावत रखा है.'' लेकिन उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के मुताबिक ''इंदिरा सागर का मामला सेटल हो चुका हैं और उसमें जल स्तर को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है.'' इधर मुख्यमंत्री ने शासन के लैंड बैंक से जमीन के बदले जमीन देने की घोषणा से अधिकारी असमंजस में हैं. एक अधिकारी सवाल उठाते हैं, ''जमीन है कहां? जो है वह या तो बंजर है या उस पर अतिक्रमण है.''
आंदोलन की आग को ठंडी करने के लिए फिलहाल सरकार ने घोषणाओं का पानी तो डाला है लेकिन ठोस और विश्वसनीय कदम के बगैर यह चिंगारी देर-सवेर भड़क सकती है. क्या सरकार पुनर्वास के लिए सम्यक नीति बना पाएगी?
जय नागड़ा