पाकिस्तान के साथ रिश्तों को 'सदाबहार' बताना बीजिंग के उच्चाधिकारियों को खासा पसंद है. मगर हाल के हफ्तों में अच्छे मौसम की भविष्यवाणी तूफान के आने में बदल गई, जो आम तौर पर कम ही होता है. इस्लामाबाद में चीनी दूतावास ने 8 दिसंबर को एक सार्वजनिक चेतावनी जारी की. इसमें कहा गया ''आतंकवादी पाकिस्तान में चीनी संगठनों और लोगों को निशाना बनाते हुए सिलसिलेवार हमलों का मंसूबा बना रहे हैं.'' इस चेतावनी को चीनी मीडिया में भी खूब जगह मिली. शंघाई के विशेषज्ञों को कहना पड़ा कि ये हमले पाकिस्तान में चीनी निवेश को खतरे में डाल सकते हैं.
बीजिंग के दो एशियाई कूटनीतिकों के मुताबिक, इसका एक पहलू यह भी है कि 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत चल रही परियोजनाओं की हिफाजत और दूसरे इंतजामों को लेकर चीन की बेचैनी बढ़ रही है. इस गलियारे में सड़कों और बिजली परियोजनाओं का नेटवर्क खड़ा किया जा रहा है, जो कश्गर से अरब सागर में ग्वादर बंदरगाह तक जाता है और पाक अधिकृत कश्मीर से भी गुजरता है.
मई में क्वेटा में दो चीनी नौजवानों को अगवा करके उनकी हत्या कर दी गई थी. पाकिस्तान ने उन पर दक्षिण कोरियाई मिशनरियों के लिए गैरकानूनी धर्मोपदेश का आरोप लगाया था. लेकिन चीनी मीडिया में इसकी कुछ खास कवरेज नहीं हुई थी.
बीजिंग के लिए बड़ी चिंता की बात वे मतभेद हैं जो सीपीईसी की कई परियोजनाओं को लेकर पैदा हो गए हैं. सबसे पहले पाकिस्तान ने सीपीईसी की एक योजना बैठक से कुछ दिन पहले बीजिंग को परेशान करते हुए ऐलान किया कि उसने 14 अरब डॉलर की डायमर भाषा पनबिजली परियोजना को उसके हितों के खिलाफ जाने वाली चीन की 'सख्त' वित्तीय शर्तों की वजह से वापस ले ली है.
फिर पाकिस्तान के अखबार डॉन ने खबर छापी कि रिवॉल्विंग फंड बनाने को लेकर 'सरकार के साथ मतभेदों' की वजह से एक चीनी कंपनी ने 2 अरब डॉलर की लाहौर-मटियारी ट्रांसमिशन लाइन का काम तकरीबन रोक दिया है. अखबार ने यह भी दावा किया कि नवंबर की योजना बैठक में बीजिंग ने बता दिया है कि भ्रष्टाचार को लेकर पैदा हुई चिंताओं की वजह से तीन बड़ी सड़क परियोजनाओं में भी पैसा लगाना बंद कर दिया जाएगा. हालांकि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लु कांग ने 11 दिसंबर को कहा, ''हम सराहना करते हैं कि पाकिस्तान परियोजना और चीनी नागरिकों की सुरक्षा दोनों को अहमियत दे रहा है.''
बीजिंग के कुछ अध्येताओं की राय यह है कि सीपीईसी का लंबे वक्त के लिए व्यावहारिक होना तब तक पसोपेश में ही रहेगा जब तक इसे वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) परियोजना के तहत दूसरी क्षेत्रीय परियोजनाओं के साथ नहीं जोड़ा जाता. कुछ अफसरों का कहना है कि इसके लिए भारत को भी साथ लाने की जरूरत होगी, जो इलाके का सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन ओबीओआर की मुखालफत कर रहा है क्योंकि यह सबसे अहम गलियारे पीओके में भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है.
दिलचस्प बात यह है कि भारत में चीन के राजदूत लुओ झाओहुइ ने पिछले महीने अपनी उस पेशकश को फिर जिंदा किया जिसमें भारत की चिंताओं को स्वीकारते हुए सीपीईसी का नाम बदलने की बात कही गई थी. हालांकि इसकी तस्दीक चीनी मंत्रालय ने नहीं की.
भारतीय अधिकारी मानते हैं कि पाकिस्तानी संवेदनशीलता के आगे चीन के समर्पण को देखते हुए चीन के सीपीईसी का नाम बदलने या जैसा कि लुओ ने कहा, जम्मू और कश्मीर के लिए एक वैकल्पिक गलियारा बनाने की संभावना बहुत कम है. अलबत्ता यह अब भी साफ नहीं है कि 'सदाबहार' रिश्ते पर तूफानी बादलों के घिर आने से इस समीकरण में कोई बदलाव आएगा या नहीं.
अनंत कृष्णन / संध्या द्विवेदी