UN की बैठक में बोले एमजे अकबर, भारत में सभी धर्म के लोगों को एकसमान अधिकार

इस कानून का विरोध करने वाले एक समूह के लोगों का मानना है कि इस कानून में इस्लाम मानने वालों को अलग क्यों रखा गया है? जबकि भारत के संविधान में किसी तरह के धार्मिक भेदभाव को स्वीकार नहीं किया गया है.

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एमजे अकबर, राज्यसभा सांसद एमजे अकबर, राज्यसभा सांसद

मंजीत नेगी

  • नई दिल्ली,
  • 29 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 6:19 PM IST

  • भारत में किसी भी पंथ से ज्यादा लोकतंत्र प्रभावी
  • मुस्लिमों की आबादी के मामले में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश

भारत में पिछले ढाई महीने से नागरिकता कानून के विरोध में देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन चल रहा है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि यह कानून नागरिकता देने के लिए है, किसी की नागरिकता लेने के लिए नहीं. इस बीच जेनेवा में ह्यूमन राइट्स काउंसिल की बैठक में भी भारत ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष मजबूती से रखा है. सम्मेलन में हिस्सा ले रहे राज्यसभा सांसद मोबाशेर जावेद अख्तर (एमजे अकबर) ने सीएए को लेकर स्थिति स्पष्ट किया है. उन्होंने कहा कि भारत की सबसे विशेष चीज वहां की विविधता वाली संस्कृति और संविधान द्वारा दिया गया समानता का अधिकार है. वहां किसी भी पंथ से ज्यादा लोकतंत्र प्रभावी है.

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एमजे अकबर ने अपने संबोधन की समाप्ति में महात्मा गांधी के हवाले से कहा, 'हिंदू और मुस्लिम सब एक हैं. सबको ईश्वर ने बनाया है और उन्हें कोई भी एक दूसरे से जुदा नहीं कर सकता.

सम्मेलन में एमजे अकबर के अलावा मुस्लिम धर्म नेता मौलाना उमर अहमद इलियासी, यूरोपीय सांसद फुल्वियो मार्तुसाइल्लो और पत्रकार आतिका अहमद फारूकी समेत कई लोग मौजूद थे.

फुल्वियो मार्तुसाइल्लो ने भारत में मौजूद भाईचारा और शांति का हवाला देते हुए कहा कि सीएए किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की नागरिकता छीनने के लिए नहीं है. बल्कि इस कानून की वजह से कई ऐसे लोग जो धार्मिक उत्पीड़न झेलने के बाद भारत आए और नागरिक वाली सुख-सुविधा से वंचित हैं उन्हें अपना अधिकार मिल पाएगा.

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वहीं उमर अहमद इलियासी ने कहा कि पूरे विश्व में मुस्लिमों की आबादी के मामले में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है और यहां पर सभी तरह के विचारधारा को जगह दी गई है. सभी धर्म के लोगों को एक तरह की नागरिकता दी गई है.

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जहां पर किसी भी धर्म के लोगों को विशेष स्थान नहीं दिया गया है. इतना ही नहीं भारत के मुसलमान यूरोप के मुसलमानों जैसे कट्टरपंथ के शिकार नहीं हुए, इसीलिए वहां पर जेहाद आंदोलन जैसी कोई बात नहीं हुई है. उन्होंने अपनी बात खत्म करते हुए कहा कि अगर कोई मुसलमान अभी भी नागरिकता कानून 1955 के तहत नागरिकता पाना चाहता है तो उन्हें दिया जाएगा.

पत्रकार आतिका अहमद फारूकी ने भारत का पक्ष रखते हुए कहा कि वो या भारत का कोई व्यक्ति जब किसी को देखता है तो उसमें धर्म या जाति नहीं देखता है. मेरे अनुसार भारत एक बहुसांस्कृतिक देश है जो खान-पान, अलग-अलग भाषा और कई सारे नृत्य फॉर्म की वजह से और भी खूबसूरत हो जाता है.

उन्होंने अपनी बात की समाप्ति में कहा, 'हम भारतीय केवल जिज्ञासु और परिश्रमी होते हैं. जहां पर मुस्लिम, क्रिश्चियन, सिख और हिंदू जैसे केवल नाम होते हैं.'

क्या है कानून?

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भारत सरकार ने 11 दिसंबर 2019 को नागरिकता कानून 1955 में कुछ बदलाव किए हैं. सरकार को उम्मीद है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) आने से अवैध प्रवास को रोका जा सकेगा. नए नागरिकता कानून के तहत छह धर्म के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिश्चियन. शर्त यह है कि इन धर्मों को मानने वाले सभी लोग, अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न झेलने के बाद भारत आए हों.

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विरोध क्यों?

हालांकि इस कानून का विरोध करने वाले एक समूह के लोगों का मानना है कि इस कानून में इस्लाम मानने वालों को अलग क्यों रखा गया है? जबकि भारत के संविधान में किसी तरह के धार्मिक भेदभाव को स्वीकार नहीं किया गया है.

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