इंडिया टुडे से: 130 साल पुराने डूबे जहाज के मलबे से मिलेगा अनमोल खजाना!

नवंबर 1885 में कलकत्ता के तट से जब एसएस इंडस जहाज ने यात्रा शुरू की तो उसमें नील और भारतीय चाय पत्तियों के गट्ठर भरे थे. लेकिन तब इस जहाज में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के कुछ विरले मूर्तिशिल्प का खजाना भी भरा था. यह जहाज 8 नवंबर 1885 को मद्रास से दक्षिण की ओर कोलंबो के रास्ते में डूब गया. जहाज में अमूल्य मूर्तिशिल्पों के अलावा कनिंघम का प्राचीन मुद्राओं का निजी संग्रह भी था.

Advertisement
symbolic image symbolic image

अनुभूति विश्नोई

  • नई दिल्ली,
  • 22 दिसंबर 2014,
  • अपडेटेड 8:57 PM IST

नवंबर 1885 में कलकत्ता के तट से जब एसएस इंडस जहाज ने यात्रा शुरू की तो उसमें नील और भारतीय चाय पत्तियों के गट्ठर भरे थे. लेकिन तब इस जहाज में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के कुछ विरले मूर्तिशिल्प का खजाना भी भरा था, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पहले प्रमुख सर एलेक्जेंडर कनिंघम ने खुद जतन से जुटाया था. मध्य प्रदेश के एक बौद्ध मठ से कई दौर की खुदाई के बाद कनिंघम ने भरहुत मूर्तिशिल्प प्राप्त किए थे और उन्हें एक प्रदर्शनी के लिए लंदन ले जाया जा रहा था. करीब 3,462 टन वजनी यह जहाज 8 नवंबर 1885 को मद्रास से दक्षिण की ओर कोलंबो के रास्ते में डूब गया. जहाज में अमूल्य मूर्तिशिल्पों के अलावा कनिंघम का प्राचीन मुद्राओं का निजी संग्रह भी था.

Advertisement

समुद्र में छिपा खजाना
हादसे के करीब सवा सौ साल बाद भारत और श्रीलंका के भूगर्भशास्त्रियों ने समुद्र के तल में छिपे उस खजाने को निकाल लाने के लिए साझा अभियान शुरू करने का फैसला किया है. असल में श्रीलंका की गाले स्थित केंद्रीय सांस्कृतिक कोष की समुद्री भूगर्भ इकाई (एमएयू) ने देश के उत्तरी तट की खोजबीन शुरू की तब जाकर यह संभव हो पाया. अगस्त 2013 में समुद्री भूगर्भ अनुसंधान अधिकारी एसएम नंददास की अगुआई में एक टीम ने वह जगह खोज निकाली, जहां एसएस इंडस डूबा था. यह जगह मुलैतिवु के नजदीक स्थित है, जहां एक समय एलटीटीई का राज हुआ करता था.

समुद्र में डूबे मूर्तिशिल्प को निकालने के लिए श्रीलंका के साथ साझा अभियान शुरू करने का समझौता हुआ है. एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक बीआर मणि कहते हैं, 'श्रीलंका के अधिकारियों ने एसएस इंडस के मलबे का पता चल जाने के बारे में हमें लिखा है. हमें उम्मीद है कि मूर्तिशिल्प अंतत: हमें हासिल हो जाएंगे. समुद्र में खुदाई के साझा अभियान के लिए सहमति-पत्र तैयार किया जा रहा है और विदेश मंत्रालय की मंजूरी मिलते ही इस पर काम शुरू हो जाने की उम्मीद है.'

Advertisement

पिछली सदी में एसएस इंडस की तलाश त्रिंकोमाली के आसपास ही होती रही है. माना जाता रहा है कि जहाज त्रिंकोमाली के उत्तर में 40 मीटर नीचे समुद्र तल में डूबा हुआ है. लेकिन 2009 में गृहयुद्ध खत्म होने के बाद श्रीलंका के अधिकारियों ने मुलैतिवु के आसपास खोजबीन शुरू की, जहां पहले एलटीटीई के कब्जे की वजह से जाना संभव नहीं था. जहाज की तलाश पर नंददास की रिपोर्ट ने जहाज का मलबा त्रिंकोमाली से 50 मील उत्तर में समुद्र की तलहटी में होने के अनुमान को खारिज कर दिया. साथ ही तलाश में मुलैतिवु का खास तौर पर जिक्र भी किया.

भरहुत की कलाकृतियां
भरहुत मध्य प्रदेश के सतना जिले का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है. भरहुत स्तूप के खंडहर आज भी मौजूद हैं. मान्यता है कि इसे सम्राट अशोक ने बनवाया था. इस स्तूप को ईसा पूर्व तीसरी सदी का आंका जाता है. भरहुत में बौद्धकला के प्रारंभिक काल का नमूना है जब भगवान बुद्ध के प्रतीक के रूप में कमल का फूल और धर्मचक्र, चरण, बोधि वृक्ष और खाली सिंहासन बनाया जाता था. सांची के स्तूप और अजंता के भित्तिचित्रों से भी प्राचीन भरहुत में मूर्तियों की बगल में उनके वर्णन शिलालेख में भी मौजूद हैं.

कनिंघम ने पहले भरहुत का दौरा 1873 में किया था, लेकिन इसकी खुदाई अगले साल की. वे कई आकृतियों और मूर्तिशिल्पों को अपने साथ कलकत्ता ले गए, जहां उन्हें भारतीय संग्रहालय में रखा गया. भरहुत मंदिर परिसर के बाकी खंडहरों के बारे में अधिक जानकारी मौजूद नहीं है, वहां पहले बुद्ध की एक विशाल मूर्ति, संस्कृत के कुछ शिलालेख और देवी-देवताओं की मूर्तियां भी थीं. माना जाता है कि इनमें से अनेक कलाकृतियां एसएस इंडस में लदी थीं, जो डूब गईं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement