पूर्वी लद्दाख के फेस-ऑफ जोन में चीन की ओर से सैनिकों की सपोर्ट पोजीशन्स का बिल्ड-अप करना जारी है. गलवान घाटी के संघर्ष के बाद से चीन पूरी घाटी, हॉट स्प्रिन्ग्स एरिया, पैंगॉन्ग त्सो झील में अपनी सपोर्ट पोजीशन्स को मजबूत कर रहा है. पैंगॉन्ग त्सो एरिया में चीन का मुख्य फोकस फिंगर 4 एरिया में है और यहां नौकाओं को घूमते देखा गया है.
अब, जाने माने ओपन सोर्स इंटेलीजेंस (OSINT) हैंडल @Detresfa_ की ओर से जारी नई सैटेलाइट तस्वीरों से फिंगर 4 और फिंगर 6 क्षेत्रों के बीच अधिक सपोर्ट पोजीशन्स का पता चलता है. बताया जा रहा है कि इन क्षेत्रों में 13 जून से कैम्प-वर्क चल रहा था.
(नीचे दिखाई गईं तस्वीरें 23 जून को खींची गई थीं. सभी तस्वीरों को आवश्यक अनुमतियों के साथ हासिल किया गया है और इन पर वॉटरमार्क वहीं क्रेडिट दर्शाते हैं)
नई कैम्प पोजीशन्स
पैंगॉन्ग त्सो झील क्षेत्र में चार नई कैम्प पोजिशनिंग उग आई हैं. ये उस पहले वाली पोजीशन के अलावा हैं जिसे हम पहले से ही फिंगर 4 एरिया में ट्रैक करते आ रहे हैं.
ये कैम्प मूल रूप से फिंगर 4 में मेन कैम्प के लिए सपोर्ट पोजीशन्स कहे जा सकते हैं. इन कैंप्स में से एक को नदी के पार मेन कैम्प के दक्षिण में स्थापित किया गया है. आइए हम एक-एक करके इन पर नज़र डालें.
कैम्प 1
बाईं ओर स्थित कैंप फिंगर 4 क्षेत्र का मेन कैम्प है, जिसमें नीली बोट्स भी हैं जिन्हें हमने बहुत पहले नहीं देखा था. दाईं ओर वाली टेंट्स की नई साइट एक सपोर्ट कैम्प की तरह दिखती है, जो पिछले दो हफ्ते में कुकुरमुत्ते की तरह उग आई. यह बाईं ओर स्थित मेन कैम्प के लिए सबसे नजदीकी सपोर्ट कैम्प की तरह लगता है. इस जगह के दोनों ओर (पूर्व और पश्चिम) में 2-2 किलोमीटर पर भी कैम्प नजर आते हैं.
कैम्प 2
यहां नए टेंट्स के साथ हर मौसम को झेल सकने वाला बेस है. यह कैम्प पैंगॉन्ग त्सो झील क्षेत्र के कैम्पों में सबसे अधिक ऊंचाई पर है.
कैम्प 3
कैम्प 1 के दाईं ओर और कैम्प 2 के ठीक नीचे, नए सेट अप किए टेंट्स नजर आते हैं. इनकी संख्या यहां ज्यादा हो सकती है. हालांकि, यहां सभी मौसम को झेल सकने वाला बेस नया नहीं है और गलवान के संघर्ष से पहले भी मौजूद था.
कैम्प 4
ये झील के पार फिंगर 4 के मेन कैम्प के दक्षिण में हैं. इस स्थान के दोनों ओर (उत्तर और दक्षिण) में 2-2 किलोमीटर पर भी कैंप देखे जा सकते हैं.
यह स्थान फिंगर 4 फेस-ऑफ एरिया से 19 किमी दूर है.
कैम्पों की अहमियत
भारत और चीन 22 जून की बातचीत में पूर्वी लद्दाख की लोकेशन्स से चरणबद्ध और सत्यापित किए जा सकने वाले ढंग से पीछे हटने पर सहमत हुए. यह 11 घंटे तक चली बहुत लंबी बैठक थी. इसमें 14 कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और दक्षिण शिनजियांग मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट (XJMD) चीफ मेजर जनरल लियू लिन ने हिस्सा लिया.
भारतीय सेना के आधिकारिक बयान में कहा गया- "भारत और चीन के बीच 22 जून 2020 को कोर कमांडर-स्तर की वार्ता मोल्डो में सौहार्दपूर्ण, सकारात्मक और रचनात्मक माहौल में हुई. इसमें पीछे हटने के लिए आपसी सहमति थी. पूर्वी लद्दाख के सभी तनाव वाले क्षेत्रों से पीछे हटने के तौर तरीकों पर चर्चा की गई और दोनों पक्षों की ओर से आगे बढ़ाया जाएगा.”
पैंगॉन्ग त्सो झील सबसे जटिल
हम इस डिसेंगेजमेंट की असल टाइम लाइन और प्रकृति के बारे में अभी तक नहीं जानते हैं, लेकिन यह उम्मीद की जाती है कि यह सबसे पहले गलवान घाटी की टकराव वाली जगह से शुरू होगा, और फिर हॉट स्प्रिंग्स-गोगरा एरिया तक जाएगा. इसके बाद पैंगॉन्ग त्सो झील सबसे जटिल हिस्सा होगा.
इसे भी पढ़ें --- भारत-चीन सेनाओं में LAC से पीछे हटने पर बनी सहमति, कोर कमांडर की बैठक में फैसला
इन सैटेलाइट तस्वीरों को देखने के बाद एक बात निश्चित है कि यह बिल्ड-अप रातोंरात नहीं हो सकता है. चीनी सेना यानि PLA ने फिंगर 4 से फिंगर 6 स्थानों के बीच इन कैम्पों की स्थापना के लिए बहुत समय और कोशिशों का निवेश किया है. इसमें कई ऑल-वेदर बेस और पिलबॉक्स शामिल हैं.
इसे भी पढ़ें --- लद्दाख: बातचीत की आड़ में धोखा दे रहा चीन? देखें बॉर्डर पर नई साजिश के सबूत
इन कैम्पों की रणनीतिक प्रकृति को देखते हुए, भारत को इस पर कड़ी नजर रखनी होगी. देखना होगा कि आगे स्थिति कैसे विकसित होती है. बताया जा रहा है कि भारत ड्रोन के साथ डिसेंगेजमेंट पर निगरानी के लिए तैयार है.
यह लेख @detresfa_ और नाथन रुसर के इनपुट्स के आधार पर लिखा गया है.
(लेखक सिंगापुर स्थित ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस एनालिस्ट हैं)
एस.कनन