जेस्टेशनल डायबिटीज: खतरनाक है प्रेग्नेंसी में ग्लूकोज का बढ़ना

कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या होती है. ऐसी मां के नवजात बच्चे में जन्मजात बीमारियां होने का खतरा 40 से 50 फीसदी तक बढ़ जाता है.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 4:15 PM IST

कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या होती है. ऐसी मां के नवजात बच्चे में कुछ जन्मजात बीमारियां होने का खतरा 40 से 50 फीसदी तक बढ़ जाता है. गर्भवती के खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने पर नवजात शिशु को नर्वस सिस्टम में खराबी, स्पाइना बिफिडिया, वातरोग, मूत्राशय या हृदय संबंधी रोग भी हो सकते हैं.

अंकिता कपूर 32 साल की हैं. उनका वजन वजन 89 किलो है. गर्भावस्था के दौरान उन्हें जेस्टेशनल डायबिटीज की शिकायत थी. उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया, जिस कारण उनका बच्चा असामान्य आकार के लीवर, दिल और एड्रिनल ग्लैंड्स के साथ पैदा हुआ.

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दिल्ली के एक निजी अस्पताल में कार्यरत ऑब्स्टेट्रिशन गायनिकोलॉजिस्ट डॉ. अर्चना धवन बजाज बताती हैं कि जीवन-शैली से संबंधित एक सामान्य बीमारी माने जाने वाली डायबिटीज जब एक गर्भवती महिला में होती है तो उसके परिणाम जानलेवा भी हो सकते हैं. जिन महिलाओं को डायबिटीज की शिकायत होती है, उन्हें पीरियड्स में अनियमितता होती है और प्रेग्नेंसी के दौरान काफी परेशानी होती है.

विशेषज्ञ का कहना है कि डायबिटिक मां के गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्मजात बीमारी या कई बड़ी शारीरिक कमियां हो सकती हैं.

डॉ.अर्चना ने बताया कि जेस्टेशनल डायबिटीज के कोई सांकेतिक लक्षण नहीं होते. लेकिन कभी-कभी हाई ब्लडप्रेशर, ज्यादा प्यास लगना, बार-बार पेशाब और थकावट जैसे लक्षण हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि अगर मां के खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तो वह गर्भनाल से गुजर कर बच्चे के रक्त में पहुंच जाता है. इस कारण बच्चे का भी ब्लड शुगर बढ़ जाता है. ऐसे में गर्भपात का खतरा रहता है या जन्म के बाद बच्चा मानसिक रोगी भी हो सकता है. इसलिए गर्भवती महिला के ब्लड शुगर को कंट्रोल करना बेहद जरूरी है.

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जेस्टेशनल डायबिटीज से बचने के उपाय
-गर्भवती हर दिन कम से कम चार दफा अपना ब्लड शुगर चेक करें. एक बार नाश्ते से पहले और फिर खाने के बाद
-पेशाब में कीटोन एसिड की नियमित जांच करवाते रहें
-डॉक्टर की सलाह के मुताबिक खान-पान का पूरा ख्याल रखें.
-डॉक्टरी परामर्श से नियमित व्यायाम करें.
-वजन को नियंत्रण में रखें.
-अगर जरूरत हो तो डॉक्टर की सलाह से इन्सुलिन लें.

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