शख्सियत: नोएडा में खाकी का आलोक

नोएडा के पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह ने यूपी में सबसे पहले पुलिस को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए हेजमेट सूट का इस्तेमाल किया. लॉकडाउन में नोएडा पुलिस ने भोजन से लेकर अस्पताल तक सभी सेवाओं में योगदान दिया.

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नोएडा के पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह नोएडा के पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह

आशीष मिश्र

  • लखनऊ,
  • 04 जून 2020,
  • अपडेटेड 12:44 PM IST

जनवरी के अंतिम हफ्ते में अमेरिका में कोरोना वायरस का खौफनाक रूप दिखाइ देने लगा था. इसी बीच केरल में 30 जनवरी को देश में कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आने से हर तरफ चिंता की लहर दौड़ गई थी. नोएडा के पहले पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह को कार्यभार ग्रहण किए हुए दो हफ्ते ही हुए थे. नोएडा में बड़ी संख्या में मल्टीनेशनल कंपनियों के दफ्तर हैं. यहां काम करने वालों की सरगर्मियां देखकर आलोक को आने वाले दिनों में कोरोना वायरस की चुनौती का आभास हो गया था.

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आलोक की पहली चिंता पुलिस बल को इस बीमारी से बचाने की थी. इनका मानना था कि अगर पुलिसकर्मी संक्रमण से बचे रहेंगे तो वह पूरी व्यवस्था को बनाए रख पाएंगे. लेकिन यह कैसे किया जाए? इस पर बहुत कुछ जानकारी मौजूद नहीं थी. सहयोगी अधिकारियों के साथ अपनी बैठकों में आलोक पुलिसकर्मियों को आने वाले खतरे से बचाव के तौर-तरीके अपनाने पर लगातार मंथन कर रहे थे. आने वाले दिनों में कैसी समस्याएं आ सकती हैं, इसके बिंदु तय होने लगे. मसलन लॉकडाउन लागू हो सकता है, इस दौरान आवश्यक वस्तुओं का संचालन, स्वास्थ्य सेवाएं, भोजन की कमी हुई तो 'फूड रायट्स' हो सकते हैं, ऐसे अप्रत्याशित क्षण आ सकते हैं जिसमें कोरोना संक्रमित की मृत्यु होने के बाद उसके परिजन शव को न ले जाएं. ऐसे कई बिंदुओं पर पुलिस की तैयारी का खाका खींचा जाने लगा.

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कोरोना संक्रमण से अपने पुलिस बल को बचाने के लिए प्रदेश में पहली बार आलोक ने हेजार्डस मैटेरियल सूट 'हेजमेट सूट' खरीदने की योजना बनाई. इसके लिए नोएडा के मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) की राय ली गई. दिल्ली में कई वेंडर ऐसे सूट का बिजनेस कर रहे थे. डॉक्टरों से उनके सूट का परिक्षण कराकर मार्च में होली के तुरंत बाद दिल्ली के एक वेंडर से सौ सूट की पहली खेप खरीदी गई. पुलिसकर्मियों को यह सूट पहनने का प्रशिक्षण सीएमओ कार्यालय से दिलाया. आलोक ने 15 मार्च तक नोएडा में 25 रैपिड रेस्पांस टीम का गठन किया जिनमें पुलिसकर्मियों को हेजमेट सूट दिए गए. बाद में इसी सूट को 'पीपीई किट' के नाम से जाना गया.

बाद में बीमारी फैलने पर इन रैपिड रेस्पांस टीम की संख्या सवा सौ हो गई. इसके बाद नोएडा के सभी थानों के लिए एक स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) भी बनाया गया ताकि लोगों की सुरक्षा के साथ पुलिस खुद को संक्रमण से बचा सके. सभी थानों में बिना हाथ धोए, बगैर थर्मल स्कैनिंग के प्रवेश बंद कर दिया गया. सोशल डिस्टेंसिंग के लिए अधिकारियों के मेज के आगे एक और मेज जोड़ दी गई. पुलिस में आपसी समन्वय के लिए नोएडा पुलिस कमिश्नरेट में कानून-व्यवस्था, पुलिस कल्याण, खाद्य सामग्री, आवश्यक सेवाओं की व्यवस्था, मीडिया एवं जनसंपर्क, स्वास्थ्य एवं क्वारंटीन सेंटर की व्यवस्था के लिए कुल छह टीमों का गठन किया गया.

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लॉकडाउन लागू होने के बाद आलोक के सामने पहली चुनौती 28 मार्च को आई जब दिल्ली बार्डर से बड़ी संख्या में मजदूर नोएडा पहुंचने लगे थे. आलोक ने जिला प्रशासन से समन्वय बना कर चौबीस घंटे के भीतर बस और दूसरे साधनों का इंतजाम कर मजदूरों को उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था की. इनके भोजन पानी और बच्चो के लिए दूध का भी इंतजाम किया गया. लॉकडाउन लागू होने के बाद नोएडा में कोरोना संक्रमण के इलाज का एक मजबूत सिस्टम तैयार करने की रूपरेखा बनी क्योंकि यह जिला दिल्ली से सटा हुआ है.

नोएडा में एक एल-3 लेवल को अस्पताल तैयार करने की योजना बनी. यहां के शारदा अस्पताल से संपर्क किया गया. लेकिन इनके पास उस वक्त न डॉक्टर, एनस्थेटिस्ट, पीपीई किट जैसे जरूरी सामान नहीं थे. आलोक ने दिल्ली पुलिस से कोआर्डिनेशन किया और शारदा अस्पताल में डॉक्टर और अन्य जरूरी चीजों की उपलब्धता पूरी कराई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब 30 मार्च को नोएडा के निरीक्षण पर पहुंचे उसी दिन शारदा अस्पताल में एल-3 कोविड अस्पताल तैयार हो गया था. दो अप्रैल से नोएडा पुलिस ने हॉटस्पॉट और सभी संवेदनशील स्थानों की निगरानी ड्रोन के जरिए करनी शुरू की. इसके एक हफ्ते बाद नोएडा पुलिस कमिश्नरेट ने अथॉरिटी के साथ मिलकर सेनिटाइजेशन का काम भी शुरू किया.

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दिल्ली से संक्रमण नोएडा में न फैलने पाए इसके लिए बॉर्डर सील रखने का निर्णय लिया गया. नोएडा एक लंबाई में फैला जिला है जिसमें दूसरे राज्यों से इसकी सीमा 42 किलोमीटर लंबी है. दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पर चौबीस घंटे सघन पुलिसिंग शुरू हुई जो आज भी लगातार जारी है. लॉकडाउन का पालन करने के लिए पूरे जिले में अलग-अलग जगहों पर दो सौ जगह बैरियर लगाए गए. नोएडा एक ऐसा जिला है जहां एक तरफ तो गगनचुंबी इमारतें हैं तो दूसरी तरफ बड़ी संख्या में मजदूर हैं. लॉकडाउन के शुरुआत में कारखाने, कंपनियां बंद होने से नोएडा में बड़ी संख्या में मजदूर फंस गए थे. इनके लिए भोजन का इंतजाम करने के लिए आलोक ने नोएडा पुलिस कमिश्नरेट की कैंटीन को राशन का भंडारगृह बना दिया. यहां से पुलिस की 112 सेवा और थानों की गाड़ियों ने मजदूरों को भोजन और राशन बांटना शुरू किया. करीब 70 हजार से अधिक परिवारों को राशन सामग्री पहुंचाई गई.

पुलिस जरूरतमंदों को राशन पहुंचा रही थी तो नोएडा के संपन्न लोग जरूरी सामान पुलिस कमिश्नरेट के भंडारगृह में दान कर रहे थे. आलोक ने नोएडा में 'पुलिसिंग विथ एमपैथी' के जरिए खाकी की छवि निखारने की कोशिश की. लॉकडाउन लागू होने के बाद देश में सब कुछ थम गया था. ऐसे में उत्तर प्रदेश के बरेली की रहने वाली तमन्ना अली खान जो कि गर्भवती थीं, उन्होंने एक वीडियो जारी किया. अपने वीडियो में उन्होंने बताया कि वह नौ महीने की गर्भवती हैं, लेकिन उनके पति अनीस खान कामकाज की वजह से नोएडा में हैं. तमन्ना अली ने अपने इस वीडियो में अपील करते हुए कहा कि लॉकडाउन के बीच उनके पति को आने दें, क्योंकि अभी उन्हें काफी जरूरत है.

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इस वीडियो के सामने आने के बाद बरेली के एसएसपी ने तमन्ना से फोन पर बात की और अस्पताल भिजवाने में मदद की. बरेली पुलिस ने नोएडा पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह से तमन्ना के पति को ढूंढने में मदद मांगी. आलोक ने फौरन यह टास्क एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह को सौंपा. रणवविजय ने काफी मशक्कत के तमन्ना के पति को ढूंढा जिसके बाद उन्हें बरेली अपनी पत्नी के पास पहुंचाया गया तमन्ना ने एक बेटे को जन्म दिया. पुलिस के सहयोग से प्रभावित तमन्ना ने अपने बेटे का नाम एडिशनल डीसीपी के नाम पर रणविजय रखा.

लॉकडाउन में पुलिस का मानवीय चेहरा उभारने वाले आलोक मूलत: अलीगढ़ में अतरौली तहसील के रहने वाले हैं. इनके पिता प्राजीक्यूशन विभाग में संयुक्त निदेशक थे. यह आगरा में तैनात थे इसीलिए आलोक की शुरुआती शिक्षा आगरा में हुई. यहां के सेंट पीटर कॉलेज और सेंट जॉन कॉलेज से पढ़ने के बाद आलोक ने पोद्दार इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट, जयपुर से मार्केटिंग ऐंड फाइनेंस में एमबीए किया. पढ़ाई के दौरान ये के. पी. एस. गिल से काफी प्रभावित थे. पंजाब में आतंकवाद का खात्मा करने के लिए गिल के प्रयासों को आलोक लगातार अखबारों में पढ़ रहे थे. इसी से इन्हें पुलिस सेवा में जाने की प्रेरणा मिली.

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आलोक ने संघ लोक सेवा की आइएएस और आइएफएस दोनों सेवाओं के लिए क्वालिफाई किया था लेकिन आइपीएस पहला विकल्प देने के कारण यह भारतीय पुलिस सेवा में आ गए. वर्ष 1995 बैच के आइपीएस अफसर के तौर पर आलोक को यूपी कैडर मिला. इनकी शुरुआती पोस्टिंग एएसपी लखनऊ के रूप मे हुई. ये कौशांबी, बागपत, सोनभद्र, बस्ती, रायबरेली, सीतापुर, उन्नाव, बिजनौर, कानपुर, मेरठ और बाराबंकी में पुलिस कप्तान रहे. सोनभद्र में नक्सल के खिलाफ कड़ा अभियान चलाने के कारण आलोक को प्रेसीडेंट गैलेंटरी मेडल मिला. तैनाती के दौरान आलोक को लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी में डिजास्टर मैनेजमेंट की ट्रेनिंग मिली.

इन्होंने इटली में कार्बनरी पैरामिलिट्री फोर्स के साथ ‘डिस्टर्ब सोसाइटी’ में ‘इंटरनेशनल इंटरवेंशन’ की ट्रेनिंग भी ली. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से एक मिड टर्म कोर्स किया. इसके बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने आलोक को “रिसोर्स परसन” के रूप में आमंत्रित किया लेकिन वह नहीं जा पाए. ये कानपुर और मेरठ में पुलिस महानिरीक्षक आइजी रहे. ये सात वर्ष तक केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर रहे. इस दौरान यह विदेश मंत्री और गृह मंत्री के प्राइवेट सेक्रेटरी, एयर इंडिया में डायरेक्टर सिक्युरिटी के पद पर तैनात रहे. केंद्र सरकार में लोकपाल बिल तैयार करने में आलोक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

विदेश मंत्रालय में तैनाती के दौरान भारत और बांग्लादेश की सीमा से जुड़े विवादित मसलों को दूर करने में भी आलोक की भूमिका थी. एयर इंडिया में तैनाती के दौरान आलोक ने पहली बार साइबर अटैक से सुरक्षा के लिए योजना शुरू की. इस वर्ष पहली जनवरी को आलोक का प्रमोशन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के पद पर हुआ और दो हफ्ते बाद इन्हें नोएडा का पहला पुलिस कमिश्नर बनाया गया. अब लॉकडाउन जैसे-जैसे हटेगा आलोक की चुनौतियां वैसे-वैसे बढ़ेंगी. यही चुनौतियां इनके प्रशासनिक कौशल की असल परीक्षा भी लेंगी. एक कुशल छात्र के रूप में आलोक भी तैयारी में जुट गए हैं.

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