बोलने-सुनने में नाकाम, श्रद्धा गेंदबाजी से करती हैं विपक्षियों को तमाम...

श्रद्धा वैष्णव जन्म से ही सुनने और बोल सकने में अक्षम रही हैं, लेकिन इन तमाम झंझावतों को पार करते हुए वह आज छत्तीसगढ़ महिला क्रिकेट टीम का हिस्सा हैं. पढ़ें उनके अदम्य साहस और संघर्षों की दास्तां...

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Shradha Vaishnav (PC- TOI) Shradha Vaishnav (PC- TOI)

विष्णु नारायण

  • नई दिल्ली,
  • 05 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 12:45 PM IST

आज छत्तीसगढ़ प्रांत के लिए क्रिकेट खेलने वाली 18 वर्षीय श्रद्धा की चर्चा भले ही चारों ओर हो रही हो, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. वह पहली ऐसी दिव्यांग महिला हैं जो किसी भी राज्य की ओर से लगातार क्रिकेट खेल रही हैं. वह छत्तीसगढ़ की महिला क्रिकेट टीम के लिए चुनी गई हैं.

गौरतलब है कि श्रद्धा वैष्णव अभी महज 18 वर्ष की हैं और आज उनकी धमक पूरे देश में सुनी जा सकती है. उन्हें देख कर इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है कि वह किन-किन दुश्वारियों से होकर गुजरी हैं. वह सुनने और बोलने में अक्षम रही हैं. देश के भीतर किसी भी महिला दिव्यांग खिलाड़ी की यह अनोखी और पहली कोशिश है.

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छत्तीसगढ़ को हमेशा से ही एक ऐसे राज्य के तौर पर जाना जाता रहा है जो संगीनों के साए में आगे बढ़ रहा है. जहां आम खिलाड़ियो के लिए मामला उलझा हो वहां दिव्यांग खिलाड़ियों को भला कौन पूछता है. हालांकि श्रद्धा ने इन तमाम दिक्कतों का सामना करते हुए क्रिकेट खेलने का फैसला किया. वह 13 वर्ष की उम्र से ही क्रिकेट खेल रही हैं. शुरुआती दिनों में वह मीडियम पेस गेंदबाजी करती थीं लेकिन समय बीतने के साथ-साथ और मौके की नजाकत को भांपते हुए उन्होंने स्पिन गेंदबाजी करने का फैसला लिया.

श्रद्धा अब राज्य क्रिकेट टीम का हिस्सा हैं...
पिछले सप्ताह उनकी प्रतिभा और गेंदबाजी को देखते हुए राज्य की टीम में चुन लिया गया है. उनके बोलने और सुनने की क्षमता में 90 फीसद की कमी है. इसका इलाज संभव नहीं. इस सभी के बावजूद वो अपने राज्य और देशवासियों के चेहरे पर मुस्कान और खुशी लाने के प्रति प्रतिबद्ध हैं.

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क्रिकेट देखते-देखते लिया गेंदबाजी का फैसला...
जैसा कि आम घरों में होता है कि लड़के क्रिकेट खेलते हैं और टीवी पर क्रिकेट देखा करते हैं. श्रद्धा का छोटा भाई रमेश क्रिकेट देख रहा था. उसकी देखादेखी श्रद्धा भी क्रिकेट देखने लगीं. एक दिन उन्होंने अपने भाई से कहा कि वह गेंदबाजी करना चाहती हैं. उनका भाई उन्हें एक क्रिकेट अकादमी तक ले गया. वहां वह गेंदबाजी की प्रैक्टिस करने लगीं. उनके कोच मोहन सिंह ठाकुर कहते हैं कि श्रद्धा मेहनत से जी नहीं चुराती. पहलेपहल तो वह मीडियम पेस गेंदबाजी कर रही थीं लेकिन धीरे-धीरे वह लेग-ब्रेक गेंदबाजी की ओर मुड़ गईं. वह बाएं हाथ से गेंदबाजी करती हैं और यही चीज उन्हें और भी खतरनाक बनाती है.

दूसरों के लिए बन रही हैं नजीर...
श्रद्धा की इस जबर्दस्त सफलता ने बहुतों को क्रिकेट की ओर मोड़ा है. क्रिकेट अकादमी में ट्रेनर अनिल ठाकुर कहते हैं कि श्रद्धा की सफलता ने बहुतों को क्रिकेट के प्रति खींचा है. 15 नई और छोटी लड़कियां क्रिकेट अकादमी में दाखिल हुई हैं. छत्तीसगढ़ राज्य क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बलदेव सिंह कहते हैं कि श्रद्धा आज बहुतों के लिए उम्मीद का किरण हैं. उनकी यह दुर्लभ और अनोखी उपलब्धि है.

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