आजादी की कहानी बयां करते ये बेशकीमती विंटेज ट्रैक्टर...

आपने विंटेज कारें तो बहुत देखी होंगी, लेकिन क्या कभी विंटेज ट्रैक्टर देखे हैं? वो भी ऐसी, जो आजादी की कहानी बयान करते हों? पावर, कंडिशन और खूबसूरती में जिसका कोई शानी न हो, जो किसी धरोहर से कम नहीं हो...

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ट्रैक्‍टर ऐसे कि निगाहें थम जाएं.... ट्रैक्‍टर ऐसे कि निगाहें थम जाएं....

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 जून 2014,
  • अपडेटेड 11:40 AM IST

आपने विंटेज कारें तो बहुत देखी होंगी, लेकिन क्या कभी विंटेज ट्रैक्टर देखे हैं? वो भी ऐसी, जो आजादी की कहानी बयान करते हों? पावर, कंडिशन और खूबसूरती में जिसका कोई शानी न हो, जो किसी धरोहर से कम नहीं हो...

इस तरह के विंटेज ट्रैक्टर हिंदुस्तान की आजादी की यादों को संजोए हुए हैं. सन 1950 मॉडल के ये ट्रैक्टर अपनी कई चीजों के लिए मशहुर हैं, जो किसी बेशकीमती हीरे की तरह हैं. 1950 से लेकर अब तक कितनी ही फिजाएं बदलीं, लेकिन बदलते वक्त के साथ ये ट्रेक्टर अपनी पहचान उस धरोवर की तरह बनाए हुए हैं जो हर बार कुछ नई यादें ताजा करती हैं. ये बेशकीमती ट्रैक्टर दुनिया में वो जीती-जागती मशीनें हैं, जो आज भी अपनी पावर, कंडिशन और खूबसूरती के लिए जानी जाती हैं.

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पवन राव के पास दो विंटेज ट्रैक्टर हैं, जो पूरी दुनिया में शायद ही इस कंडिशन मे कहीं पर हों. इन ट्रैक्टर पर जिंक कोटिंग कराई गई है. पवन राव ने इस पर लाखों खर्च किए हैं. ट्रैक्टर के पुर्जों के लिए पवन राव ने कई देशों से सामान मंगवाया, क्योंकि फर्गुसन नाम की कम्पनी के ये ट्रेक्टर उस जमाने में इंग्लैंड से आयात किए जाते थे. आज ये ट्रेक्टर अनमोल हैं. एक से बढ़कर एक खरीदार आए, लेकिन अपनी किस्म के खास तरह के इतने पुराने और नए ट्रैक्टर को भी मात देते दुनिया में बिरले हैं, इसलिए पवन राव के लिए ये किसी कोहिनूर से कम नहीं. ट्रैक्टर का एक पुर्जा आज भी उसी ताकत का एहसास कराता है, जैसे जंग के मैदान में कोई योद्धा. 'जय जवान, जय किसान' के नारे के उद्घोष की यादें भी ताजा करते हैं विंटेज ट्रैक्टर.

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अपनी आइडियल स्पीड में ऐसे ट्रैक्टर किसी भी ऊंचाई पर आसानी से चढ़ जाते हैं. ट्रैक्टर के हर हिस्से को बेहद ही बारीकी से सजाया संवारा गया है. इनके नम्बर भी बेहद खास हैं.

पवन राव के पास अपना एक खुबसूरत कलेक्शन है. दो गाड़ियां भी हैं, जो विंटेज कलेक्शन के लिहाज से खास हैं. एक है अल्फा रोमियो कार, जो अपने नाम के साथ ही असर छोड़ती है. दूसरी फिएट की है, लेकिन ट्रैक्टर की जब बात आती है, तो सब कुछ फीका पड़ जाता हैं.

ट्रैक्टर मालिक पवन राव कहते हैं, 'ये ट्रैक्टर आजादी के बाद के हैं. ये 1950 में मेरे पापा के पास थे. मुझे इस ट्रैक्टर से बहुत लगाव है. मुझे लगता है कि ऐसा ट्रैक्टर इस दुनिया में और होंगे ही नहीं.'

पवन राव की पत्‍नी नीता ने कहा, 'ख़ुशी होती है, जब इतनी पुरानी चीजों को संभालकर रखते हैं.'

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