करीब 14 साल तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में अपने काम को 62 वर्षीय मनोहरलाल खट्टर ''क्लास वर्क" बताते हैं. उनके चेहरे पर छाया खुशी का भाव आपको फौरन बता देता है कि अब उनके दिन बहुरने लगे हैं. हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में उनके 20 महीने बेहद अफरातफरी वाले रहे हैं. वे अपने इस मौजूदा दायित्व को ''मास वर्क" कहते हैं.
हरियाणा में पहली बीजेपी सरकार के पहले दो साल पर गौर करें. पार्टी ने चुनाव घोषणा पत्र में कई तरह के ''लोकलुभावन" वादे किए थे. मसलन, बीपीएल परिवारों के लिए 1 रु. किलो की दर से चावल या गेहूं, अनाज की कीमतों पर स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट को लागू करना, कर्मचारियों की तनख्वाह को पंजाब की बराबरी पर लाना, प्रतिभावान छात्रों को लैपटॉप, बुजुर्गों के लिए मुक्रत तीर्थयात्रा का प्रबंध, 24 घंटे बिजली, 4,00,000 नई नौकरियां, बेरोजगार स्नातकों के लिए भत्ते और बुजुर्ग पेंशन दोगुनी करना. ये सभी वादे लगभग अछूते रह गए हैं, इन पर अमल नहीं हुआ.
लेकिन खट्टर कहते हैं कि 4 लाख नई नौकरियों का वादा वास्तविक है. वे मार्च के शुरू में हुए निवेशक सम्मेलन ''हैपनिंग हरियाणा" की ''भारी सफलता" का हवाला देते हैं, जो जाट आंदोलन की वजह से दस दिन बाद हो पाया था. मुख्यमंत्री कहते हैं, ''करीब 6 लाख करोड़ रु. निवेश के लिए 522 सहमति-पत्रों (एमओयू) पर दस्तखत हुए. देखते हैं, कितने कारगर होते हैं." उन्हें उम्मीद है कि यह नया निवेश नई नौकरियां लेकर आएगा.
राज्य के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु को भी पूरा यकीन है कि जल्दी ही नौकरियों की बहार आ जाएगी. वे 22 जुलाई को मंत्रिमंडल फेरबदल के पहले तक उद्योग मंत्रालय भी संभाल रहे थे और राज्य में कारोबार के लिए अच्छा महौल बनाने का श्रेय लेने से नहीं चूकते.
वित्त मंत्री बताते हैं कि बीजेपी सरकार के दो साल से भी कम समय में हरियाणा ''कारोबार के अनुकूल माहौल" के सूचकांक में 14वें स्थान से तीसरे स्थान (सितंबर 2016 में) पर पहुंच गया है. फिलहाल दो दर्जन से अधिक संभावित निवेशकों ने जमीन हासिल कर ली है. इसमें डीएलएफ तथा आइआरईओ जैसी रियल्टी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के अलावा वाहन निर्माता, खाद्य प्रसंस्करण और सेवा क्षेत्र की इकाइयां हैं. इसके मद्देनजर अभिमन्यु को उम्मीद है कि ''अगले 2-3 साल करीब 30 प्रतिशत (संभावित कुल 6 लाख करोड़ रु. में से) निवेश जमीन पर उतर आएगा."
अभिमन्यु कहते हैं, ''मेरी राय में बड़े आराम से हम इस दौरान (निजी क्षेत्र में) 7-8 लाख नई नौकरियों की उम्मीद कर सकते हैं." उनके भरोसे की एक वजह यह भी है कि आठ चीनी निवेशकों ने काफी रुचि दिखाई है. इनमें एक डालियां वांडा समूह (जिसके प्रमोटर 2015 के सबसे दौलतमंद चीनी उद्यमी वांग जियानलिन हैं) खरखोदा में 10 अरब डॉलर के निवेश से एक औद्योगिक पार्क बनाएगा.
हालांकि मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री, दोनों यही मना रहे हैं कि फरवरी में जाट आंदोलन जैसी घटनाओं से संभावित विदेशी निवेशक बिदक न जाएं. इसकी वजह से दक्षिण कोरिया की ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कंपनी ओसियन, एशियन पेंट्स और सुजुकी मोटर्स हरियाणा में अपने बाहरी कर्मचारियों को वापस बुलाने और अपना काम कुछ समेटने पर मजबूर हो गई थीं.
खट्टर सरकार एक दूसरे चुनावी वादे पर कुछ आगे बढ़ती दिख रही है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार के 10 साल के शासन की गड़बडिय़ों की जांच की जाएगी. आखिरकार दो विस्तार और जांच-पड़ताल के दौरान खट्टर सरकार से ''तोहफे" पाने के आरोपों के बीच न्यायमूर्ति एस.एन. धींगड़ा ने 31 अगस्त को अपनी 182 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी. यह एक सदस्यीय जांच आयोग 2015 में गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और दूसरों को शिकोहपुर, सिकंदरपुर, बडाह और खिड़की धौला गांवों में निर्माण के लाइसेंस देने में कथित अनियमितताओं की हुड्डा सरकार की पड़ताल करने के लिए गठित किया गया था.
यह रिपोर्ट अभी विधानसभा में रखी जानी है, लेकिन इसके सार्वजनिक होने के पहले ही न्यायमूर्ति धींगड़ा ने कथित तौर पर वाड्रा द्वारा डीएलएफ को लाइसेंस हस्तांतरण जैसी कई ''अनियमितताओं" की ओर इशारा किया.
वैसे, मुख्यमंत्री समेत कोई भी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की जल्दबाजी में नहीं दिखता. एक बीजेपी नेता कहते हैं, ''अंत में यह रिपोर्ट सरकार को झेंपने पर ही मजबूर कर सकती है. इससे कुछ भी ठोस निकलता नहीं लगता."
हालांकि पार्टी इस मसले के दोहन का कोई मौका नहीं छोड़ती. 11 सितंबर को जींद में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक रैली में कहा, ''हरियाणा के किसानों को दिल्ली के दामाद की सेवा के लिए लूटा गया."
लेकिन खट्टर कहते हैं, ''चुनाव प्रचार में कई बातें कही जाती हैं लेकिन पहले दिन से उन्हीं के पीछे नहीं भागा जाता. कानून और अदालतें अपना काम करेंगी."
हुड्डा के खिलाफ पद के दुरुपयोग के आरोपों पर भी खट्टर और उनके मंत्री खास कुछ नहीं कहते. सीबीआइ ने पूर्व मुख्यमंत्री के आवासों पर 2 सितंबर को छापा मारा. उन पर तीन संदिग्ध जमीन सौदों और नेताओं तथा अफसरशाहों को जमीन बांटने में नियमों की अनदेखी करने का आरोप है. खट्टर सरकार के संदर्भ के साथ सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (नेशनल हेराल्ड अखबार की मालिक कंपनी) को दिए लाभ के आरोपों के अलावा मानेसर में किसानों के साथ 400 एकड़ जमीन के एक सौदे में कथित तौर पर 1,500 करोड़ रु. का झांसा देने का भी मामला है. हुड्डा इन सब आरोपों को ''राजनीति-प्रेरित" बताकर खारिज कर देते हैं.
पिछले साल अक्तूबर में सत्ता में एक साल पूरा करने वाले खट्टर एक मायने में अपनी ''अनुभवहीनता" को स्वीकार कर चुके हैं. उन्होंने कहा, ''पहले वर्ष में दिशा ठीक की है...योजना बनाई है." वे वादों पर आगे न बढ़ पाने के लिए खाली खजाने को दोष देते हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने हरियाणा को दिवालिया बनाकर छोड़ा.
लेकिन सरकार का दूसरा साल उनके लिए और बुरा साबित हुआ. हिसार में नवंबर, 2014 में स्वयंभू धर्मगुरु रामपाल की गिरफ्तारी के अदालती आदेश को तामील कराने में हुई भारी समस्या के वक्त तो खट्टर ने माह भर पहले ही गद्दी संभाली थी. लेकिन इस साल फरवरी में जो जातिगत टकराव उभरा, उसमें खट्टर, उनके मंत्रियों, और पूरे प्रशासन की अक्षमता उजागर हो गई. उस दौरान हरियाणा पूरे 72 घंटे तक जलता रहा और करीब 30 लोगों की जान चली गई.
इस मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की जांच समिति ने 80 से ज्यादा अधिकारियों को लापरवाही का दोषी पाया. इसमें पांच आइएएस और पांच आइपीएस अधिकारी थे. लेकिन सिर्फ मुट्ठी भर निचली पांत के अधिकारियों के खिलाफ ही कार्रवाई हुई. जाट हिंसा की राजनैतिक वजहों की जांच के लिए पूर्व न्यायाधीश एस.एन. झा की अगुआई में बनी दो सदस्यीय जांच समिति को पांच महीने में महज दो दर्जन शिकायतें ही मिली हैं.
खट्टर सरकार को पुलिस तथा नागरिक प्रशासन को सुधारने के लिए पूर्व डीजीपी की एक और रिपोर्ट पर पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट से फटकार सुनने को मिली. ऐसे हालात में फिलहाल राज्य में भले शांति है, लेकिन जाटों और दूसरी पैंतीस जातियों के बीच टकराव कभी भी उभर सकता है. लेकिन खट्टर मानते हैं कि उन्होंने अच्छा काम किया है. वे कहते हैं, ''लोग भले सोचें कि मैं नया मुख्यमंत्री हूं, लेकिन मैंने महज तीन दिन में ही हालात पर काबू पा लिया." उनके मुताबिक, 1991 में मंडल आंदोलन तो तीन महीने तक खिंच गया था.
खट्टर वादा करते हैं कि सभी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी. वे कहते हैं, ''झा आयोग की रिपोर्ट आने दीजिए. मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. मैंने जाट नेताओं से बात की और उनकी मांग पर राजी हुआ." वे कहते हैं कि दंगाइयों को दंड देना ''अदालत" का काम है.
अपनी दो साल की उपलब्धियों में वे कड़े गोरक्षा कानून और भ्रष्टाचार दूर करने के लिए ई-प्लेटफॉर्म बनाने को प्रमुख मानते हैं. वे यह भी बताते हैं कि अप्रैल, 2015 में हरियाणा के किसानों की गेहूं की फसल के बर्बाद होने पर 2,200 करोड़ रु. मुआवजे में दिए गए. वे कहते हैं, ''हरियाणा के 1966 में गठन के 48 वर्ष में हमने सबसे ज्यादा मुआवजा दिया है."
वे स्कूली शिक्षा पर अपनी सरकार के फोकस को महत्वपूर्ण मानते हैं. उनका आरोप है कि पूर्व सरकार ने बिना परीक्षा के बच्चों को पास कर देने का नियम लगाकर काफी गड़बड़ी की. वे कहते हैं, ''उन्होंने बच्चों में जिम्मेदारी के भाव को बर्बाद किया है." उनकी सरकार ने स्कूलों में हर महीने टेस्ट की व्यवस्था करके बच्चों में स्पर्धा का भाव लाने की कोशिश की है.
लेकिन जमीन पर इसका कोई खास असर नहीं दिखता. बीबीपुर गांव के पूर्व सरपंच सुनील जागलान कहते हैं कि स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों की हाजिरी तो बढ़ी है, लेकिन यह हुड्डा सरकार की शुरू की गई बायोमीट्रिक हाजिरी व्यवस्था की वजह से है.
खट्टर भले अपने नारे ''हरियाणा एक, हरियाणवी एक्य को साकार करने के तरीके तलाश रहे हों. मगर वे अपनी उपलब्धियों से ज्यादा प्रधानमंत्री के साथ अपनी नजदीकी को बताने में दिलचस्पी रखते हैं. ''जब भी मैं उनसे मिलता हूं, मैं पूछता हूं, हरियाणा के बारे में कुछ कहिए तो वे जवाब देते हैं, ''नहीं, नहीं, सब कुछ ठीकठाक है."
असित जॉली