एनडीए तो जीती ही पर कांग्रेस की हार भी नहीं गई बेकार

राज्य उपसभापति चुनाव में एनडीए की जीत हुई लेकिन कांग्रेस ने आने वाले चुनावों के लिए कई संदेश दे दिए हैं. एक तरफ कांग्रेस ने बीजद से कोई मदद न लेकर ओडिशा में खुद को राज्य में सत्तासीन पार्टी की प्रतिद्वंदी पार्टी और दूसरी तरफ एआइएडीएमके को भाजपा की बी टीम होने का संदेश दे दिया.

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राज्यसभा उपसभापति चुनाव में चुने गए हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा उपसभापति चुनाव में चुने गए हरिवंश नारायण सिंह

संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर

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  • 09 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 6:48 PM IST

राज्यसभा उपसभापति चुनाव में एनडीए की जीत अहम जरूर है लेकिन कांग्रेस के लिए यह हार भी जाया नहीं हुई. इस चुनाव नतीजे ने कांग्रेस को तमिलनाडु में यह प्रचारित करने का मौका जरूर दे दिया है कि एआईएडीएमके केंद्र में भाजपा की बी टीम है. साथ ही कांग्रेस ने बीजू जनता दल (बीजद) से सहयोग नहीं मांग कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि ओडिशा में, बीजद के मुकाबले कांग्रेस ही खड़ी है क्योंकि नवीन पटनायक की पार्टी तो भाजपा के साथ है.

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जेडीयू प्रत्याशी और एनडीए उम्मीदवार हरिवंश को कुल 125 वोट मिले जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद 105 वोट हासिल करने में सफल रहे. यह वोट कांग्रेस की राज्यसभा में अपने वोट से 55 वोट अधिक है.

मतलब साफ है कि विपक्षी एकजुट हैं और आने वाले दिनों में इसमें बिखराव की संभावना कम है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि, हमने जेडीयू उम्मीदवार को हराने के लिए इसलिए बड़ी कोशिश नहीं कि क्योंकि हमारा फोकस सिर्फ भाजपा को हराना है न कि इसके सहयोगी दलों को कांग्रेस के लिए अछूत घोषित करना.

संकेत साफ है कि कांग्रेस अभी वह रास्ता खुला रखना चाहती है जिसके जरिए समय और परिस्थिति के मुताबिक नीतीश कुमार का समर्थन हासिल किया जा सके.

हलांकि इस चुनाव में भाजपा को एक बड़ी सफलता यह मिली की उसे शिवसेना का समर्थन मिला. शिवसेना ने मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में पेश हुए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान शामिल नहीं हुई थी.

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इसके बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मुंबई में भाजपा कार्यकर्ताओं से कहा था कि 2019 का लोकसभा और विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने की तैयारी करें.

यह तल्ख रिश्ता उपसभापति के चुनाव के बहाने कुछ हद तक सामान्य हुआ. हलांकि भाजपा के एक नेता कहते हैं कि अभी पिछले सप्ताह जिस तरह से महाराष्ट्र में हुए पंचायत चुनाव में भाजपा को सफलता मिली है उससे शिवसेना को यह अहसास हो रहा है कि उसका भाजपा के साथ बने रहना ही बेहतर विकल्प है. यदि शिवसेना दूरी बनाने की स्थिति में होती तो वोटिंग से दूर भी रह सकती थी.

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