जीएसटीः छोटे उद्यमी, बड़ी मुश्किल

जीएसटी की जटिलताओं को समझने और इससे तालमेल बैठाने में छोटे उद्यमी नाकाम रहे हैं. यही वजह है कि इसके लागू होने के करीब एक महीने बाद अब उन्हें भविष्य की चिंता सता रही.

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मनीष दीक्षित

  • नई दिल्ली,
  • 02 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 1:57 PM IST

गाजियाबाद में मेरठ रोड पर करीब ढाई सौ वर्ग गज के प्लॉट में सुरेंद्र त्यागी की लोकल बैटरी की फैक्टरी में 1 जुलाई के बाद से कोई कर्मचारी नहीं है. त्यागी अब रोज अपनी फैक्टरी भी नहीं जाते और बिजनेस बदलने के लिए उन्होंने सोलर पैनल कारोबार की बारीकियां समझना शुरू कर दिया है. सुरेंद्र त्यागी का कहना है कि जीएसटी (माल और सेवा कर) कानून लागू हुए तीन हफ्ते बीत गए हैं अभी तक एक भी बिलिंग नहीं हुई है. वे कहते हैं, ''हमने सारे कर्मचारी छुट्टी पर भेज दिए हैं. टैक्स 14 से बढ़कर 28 फीसदी हो गया है, इससे कीमतों को लेकर कन्फ्यूजन है, डीलर माल नहीं ले रहे हैं. ब्रांडेड का पुराना माल ही मार्केट में है लेकिन अभी पुराने पर भी बिलिंग नहीं हो रही है. मेरा रजिस्ट्रेशन हो गया है और मैं 20 लाख टर्नओवर वाली लिमिट के भीतर हूं. लेकिन डर लगता है कि अगर अफसरों ने माल पकड़ लिया तो कैसे साबित करेंगे कि हम पर जीएसटी नहीं लगता. वे कैसे मानेंगे.''

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जीएसटी में जुलाई के दूसरे पखवाड़े तक 77 लाख से ज्यादा व्यापारी पंजीकरण करा चुके थे लेकिन इससे भी बड़ी संख्या में छोटे उद्यमी बेचैन बैठे हैं. बैटरी, जूते, फैब्रिकेशन, प्लाइवुड, ऑटो पाट्र्स, पैकिंग मशीन, पेठा, पतंग बनाने जैसे बेहद छोटे उद्योग (माइक्रो स्केल) खासी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.

गाजियाबाद में ब्रांडेड बैटरी का कारोबार करने वाले एक्साइड के डिस्ट्रीब्यूटर संजय सोढ़ी कहते हैं, ''जीएसटी कोई मुद्दा नहीं है. लोकल मैन्युफैक्चर्र्स की वाजिब समस्या 15-20 दिनों में दूर हो जाएगी. दिक्कत उन लोगों को है जो टैक्स से बचते हैं. ब्रांडेड बैटरी इसलिए महंगी होती है क्योंकि उसमें एक्सटेंडेड वारंटी होती है. हमारी बैटरी कभी एमआरपी पर नहीं बिकती.'' फेडरेशन ऑफ इंडियन स्मॉल स्केल बैटरी एसोसिएशंस के अध्यक्ष वी.के. अग्रवाल कहते हैं, ''जीएसटी से कोई खास असर नहीं पडऩे वाला क्योंकि टैक्स ढांचे में कोई फर्क नहीं पड़ा है. हालांकि छोटी इकाइयां जरूर मुश्किल में हैं. मझोले निर्माता इसके लिए पहले से तैयार हैं. एक-दो महीने में सब कुछ ठीक हो जाएगा.''

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कश्मीरी गेट ऑटो पाट्र्स कारोबारी ओ.पी. मदान कहते हैं, ''ओरिजनल पाट्र्स जो कंपनी सप्लाई करती थी उसके कारोबार पर कोई असर नहीं पड़ा है क्योंकि जीएसटी आने से इन पर टैक्स घट गया है. असली मार पड़ी है पाट्र्स बनाने वाले छोटे लोकल मैन्युफैक्चरर्स को एक्साइज पर पहले छूट मिलती थी वह अब खत्म हो गई है. इससे उनकी लागत बढ़ गई है. दाम भी ओरिजनल के बराबर आ गए हैं.'' मदान कहते हैं, दिक्कत इनपुट क्रेडिट की भी है. इस इंडस्ट्री में जरूरी नहीं कि सारे पाट्र्स छह महीने में बिक जाएं और इनपुट क्रेडिट के लिए लंबा इंतजार करने की वजह से कारोबारी को वर्किंग कैपिटल ज्यादा रखनी होगी. जीएसटी से नंबर दो का माल बनाने वालों का कारोबार अब नहीं चल पाएगा.

बढ़ा पेपरवर्क और टैक्स

लेकिन जूता उद्योग को ऐसी आस बंधाने वाला भी कोई नहीं है. आगरा में करीब नौ लाख लोगों को रोजगार देने वाले जूता उद्योग पर जीएसटी की मार पड़ी है क्योंकि अब 500 रुपए तक का जूता भी 5 फीसदी कर के दायरे में आ गया है. एक जोड़ी जूता करीब एक दर्जन हाथों से होकर गुजरता है. शू एक्सपोर्टर कंपनी के नजीर अहमद कहते हैं, ''जीएसटी में पेपरवर्क काफी बढ़ गया है. छोटे कारीगर अनपढ़ हैं, उनका पेपरवर्क कैसे होगा. ये उद्योग जीएसटी मुक्त होना चाहिए.'' आगरा फुटवियर मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के चेयरमैन पूरन दावर के मुताबिक, ''छोटे कारोबारियों को दिक्कत होगी. एमआरपी लिखने से लेकर तमाम लिखा-पढ़ी छोटे कारीगरों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है.''    

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आगरा के नूरी दरवाजा इलाके में केंद्रित पेठा बनाने वाली इकाइयां चलाने वालों का जायका जीएसटी ने खराब कर दिया है. यहां के पेठा कारोबारी कन्हैयालाल गोयल कहते हैं, ''पहले ही कोयले का प्रयोग करने वाली पेठा इकाइयां प्रदूषण का डंडा झेल रही थीं और अब जीएसटी ने एकदम तालाबंदी के कगार पर ला खड़ा किया है. यहां के ज्यादातर व्यवसायी कम पढ़े-लिखे हैं और इतने सारे रिटर्न दाखिल करना उनके बस में नहीं है.''

पेठानगरी समिति के शिव कुमार अग्रवाल कहते हैं, ''हमारी परेशानी टैक्स को लेकर नहीं पेपरवर्क को लेकर है. मजदूरों को लिखा-पढ़ी में लाना हमारे लिए बेहद मुश्किल है.'' इसी तरह पतंग बनाने वाले भी जीएसटी के दायरे में आ जाने के कारण परेशान हैं. उत्तर प्रदेश और गुजरात में तो पतंग कारोबारी आंदोलन पर आमादा हैं. आगरा में पतंग निर्माण एसोसिएशन के अध्यक्ष समी आगाई कहते हैं, ''जीएसटी लागू होने से पतंग का छोटा कारोबार चैपट हो जाएगा. ये पुश्तैनी काम है और कारीगर दूसरा कोई हुनर भी नहीं जानते हैं.''  

फंस गए ऑर्डर, पुलिस का डर

नोएडा में पैकिंग मशीन बनाने वाले अनवर कहते हैं, ''जीएसटी लागू होने के बाद से हमारे नेपाल के ऑर्डर फंसे हुए हैं. कोई बताने वाला नहीं है कि हम कितना चार्ज करके वहां माल भेजें. हमारे प्रोडक्ट 18 फीसदी जीएसटी के दायरे में हैं. अफसरों को भी कोई आइडिया नहीं है. अगर स्थिति साफ नहीं हुई तो आगे और दिक्कत होगी.''

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आगे की दिक्कत पीसीबी बोर्ड बनाने वाले दिल्ली के कारोबारी प्रेम शंकर मौर्य की भी है. मौर्य कहते हैं, ''अभी तो सप्लाई में कोई दिक्कत नहीं आई लेकिन डर सा बना रहता है कि कहीं पुलिस वाले या दूसरे अफसर जीएसटी बिल न मांग लें. खरीदार पक्का बिल मांग रहे हैं. अभी तो काम चल रहा है लेकिन चिंता है कि हम दो महीने की समय सीमा खत्म होने के बाद कैसे काम करेंगे. हमारा 20 लाख से कम का कारोबार है लेकिन खरीदार मानने को तैयार नहीं, वे पक्का बिल मांग रहे हैं. हमारे लिए पक्का बिल अनिवार्य न किया जाए.''

इंडस्ट्री के लिए जॉब वर्क करने वाले गाजियाबाद के फैब्रिकेटर रोहताश गुलाटी कहते हैं, ''फिलहाल कुछ गलतफहमियों के चलते कारोबार में सुस्ती है और भविष्य में बेहतर होगा. मुझे अभी दूसरे प्रदेशों के जॉब वर्क करने में आसानी होगी. पहले लोग गाजियाबाद से स्टील खरीदकर उत्तरांचल या हरियाणा में काम कराते थे अब वे सीधे हमें ही ऑर्डर देंगे.''

कच्चे माल की कमी

जीएसटी का प्रत्यक्ष असर बनारस में साड़ी कारोबार पर दिखा है. यहां रोज सौ करोड़ रु. का कारोबार होता है जो घटकर करीब 25 करोड़ रु. पर आ गया है. बनारस साड़ी डीलर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष अब्दुल रहीम कहते हैं, ''अभी तक किसी को यहां पर जीएसटी का सिस्टम समझ में नहीं आ रहा है. बुनकर बहुत परेशान हैं. यार्न नहीं मिल रहा है, ब्लैक में 450 रु. किलो में मिल रहा. पैसे न होने के कारण बुनकर खरीद नहीं पा रहा है. उत्पादन ठप है. ये बनारस का कुटीर उद्योग है. साडिय़ों की सप्लाई नाममात्र की है. सबसे ज्यादा दिक्कत छोटे बुनकरों को है. उनके सामने रोजी-रोटी का संकट है. यही हाल रहा तो इनके साथ अनहोनी तक हो सकती है.'' परेशानी में अकेले बुनकर ही नहीं बल्कि हस्तशिल्प से जुड़े देश के 42 लाख कारीगरों का भी यही हाल है जो जीएसटी की जटिलताओं में उलझे हुए हैं. इनमें एक-तिहाई सिर्फ दो राज्यों पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में हैं.

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उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड से लेकर पंजाब तक खुली सैकड़ों प्लाइवुड इकाइयां भी जीएसटी के बढ़े करों की मार झेल रही हैं. नॉर्दर्न इंडिया प्लाइवुड मैन्युफैक्चरर्र्स एसोसिएशन के महासचिव अनिल गोयल का कहना है, ''एक इकाई में सौ से डेढ़ सौ आदमी काम करते हैं. जीएसटी में सरकार ने सभी तरह की छूटों को खत्म करते हुए सीधे 28 फीसदी के दायरे में ला दिया. इसका बुरा असर प्लाइवुड इंडस्ट्री पर होगा. टैक्स की यह दर तर्क संगत नहीं है.

सप्लाई-डिमांड पर इसका सीधा असर होगा. मिलें अभी 28 फीसदी टैक्स के साथ माल भेजने की तैयारी कर रही हैं, पुराना स्टॉक खत्म होने के बाद जीएसटी का असली असर दिखना शुरू होगा. यह उद्योग विभिन्न रिसर्च के बाद किसान की उपज पर आधारित हो सका है. लोग बड़ी मुश्किल से प्लाइवुड की ओर लौटे थे. अब जीएसटी से यह महंगा हो जाएगा.'' अकेले प्लाइवुड ही नहीं, कई उद्योग ऐसे हैं जिनके लिए जीएसटी महंगा पड़ रहा है. वैसे, जीएसटी के असर का आकलन दो महीने की मियाद खत्म होने के बाद किया जा सकेगा.

—साथ में सिराज कुरैशी और रियाज हाशमी

 

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