असम: टूटे तटबंध से गांव बने टापू, महामारी के साथ जंगली जानवरों का खतरा

असम सरकार की ओर से अलग-अलग जिलों में प्रशासन राहत बचाव कार्य में लगा हुआ है. गांव में रहने वाले एक्टिविस्ट प्रणव सरकार से खासे नाराज हैं और कहते हैं कि अगर तटबंधों को लेकर सरकार ने सही व्यवस्था की होती, तो बाढ़ का पानी गांव में नहीं आता.

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बोकाघाट में टापू में तब्दील हुए गांव बोकाघाट में टापू में तब्दील हुए गांव

आशुतोष मिश्रा

  • बोकाघाट,
  • 26 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 1:22 AM IST

  • असम में बाढ़ और कोरोना वायरस की दोहरी मार
  • गांवों में फंसे लोग पानी कम होने का कर रहे इंतजार
भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में बाढ़ ने 50 लाख से ज्यादा की आबादी को अपनी चपेट में ले लिया है. सूबे के 28 जिले जलमग्न हो गए हैं. ऊपरी असम के कई इलाकों से बाढ़ का पानी निकलने लगा है, तो निचले इलाकों में अभी भी प्रलय की तस्वीर जिंदा है. ब्रह्मपुत्र के पानी ने कहीं तटबंध तोड़कर गांव के गांव जलमग्न कर दिए, तो कई इलाकों में रुका हुआ पानी महामारी का खतरा पैदा कर रहा है.

इस बीच आजतक की टीम असम के बोकाघाट पहुंची, जहां गांव के गांव टापू बन गए हैं. बाढ़ से हिफाजत के लिए बनाए गए तटबंध तिनके की तरह बह गए हैं, तो दूसरी तरफ काजीरंगा के जंगलों से आने वाले जंगली जानवरों के आतंक से गांव के लोग दहशत में हैं. बोकाघाट के तमोलीपथर गांव के लोगों ने तटबंध के ऊपर आशियाना बना लिया था, लेकिन ब्रह्मपुत्र के सैलाब ने उनके घरों को अपनी चपेट में ले लिया. इसी तरह इलाके में बने कई तटबंध कई जगह से टूट गए.

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इलाके में वाटर रिसोर्स विभाग में काम करने वाले नयन का कहना है कि तटबंध की समस्या यहां ग्रामीणों के लिए बड़ा मुद्दा है और लोग चाहते हैं कि इन्हें ऊंचा किया जाए, ताकि पानी हर साल गांव में ना घुसे. इस गांव के लोग भी मानते हैं कि ऐसी तबाही आखिरी बार 1988 में देखने को मिली थी. बाढ़ का पानी अब धीरे-धीरे कम होने लगा है, लेकिन गांव के चारों तरफ रुके हुए पानी से अब टाइफाइड और इंसेफेलाइटिस जैसी दूसरी महामारी के बढ़ने का खतरा है.

पानी-पानी हुईं सड़कें, कई गांव मुख्य शहरों से कटे

गांव के लोगों के लिए मुसीबत एक नहीं कई हैं. 55 साल के सुरेंद्र ने आजतक को बताया कि आखिरी बार ऐसी बाढ़ उन्होंने वर्षों पहले देखी थी. सुरेंद्र कहते हैं कि इस जमे हुए पानी से अब आगे बीमारियां फैल सकती हैं. बाढ़ की महा कवरेज के साथ आजतक की तरफ से गांव में फंसे लोगों के लिए मदद की एक छोटी सी कोशिश भी जारी है.

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नन्हे-मुन्ने चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान देखकर हम तमोलीपथर गांव से आगे माजोमति गांव की ओर बढ़े. ‌गांव के गांव मुख्य शहरों से कट चुके हैं, क्योंकि सड़कें पानी पानी हैं. गहराई इतनी ज्यादा कि अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. देसी नाव का ही सहारा है, जिस पर ज्यादा लोग बैठ नहीं सकते. ऐसी ही नाव लेकर आजतक की टीम अगले गांव की ओर रवाना हुई.

लोगों के लिए पाने की पानी की भी किल्लत

मदद के दो हाथ आगे बढ़ाकर हमने गांव के लोगों से उनकी समस्या भी जानने की कोशिश की. राम प्रसाद का कहना है कि गांव के लोग जहां-तहां फंसे हुए हैं और पानी घटने का इंतजार कर रहे हैं. पानी और बुनियादी सुविधाओं की कीमतों के बारे में रामप्रसाद ने आजतक से कहा कि पीने का पानी भी अब एक बड़ी समस्या बन रहा है.

जंगली जानवरों का भी है लोगों को खतरा

गांव में रहने वाली बरनाली सैकिया भी कहती हैं कि पानी की दिक्कत तो है, लेकिन सड़कों के डूब जाने से बुनियादी सुविधाओं से भी गांव के लोग वंचित हैं. बरनाली कहती हैं कि अब पानी वापस जाने में कुछ दिन लगेंगे. ऐसे में कोरोना से डर के बीच दूसरी महामारी भी फैल सकती हैं, जिसको लेकर के गांव के लोग चिंतित हैं.

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लेकिन यहां समस्या बुनियादी सुविधाओं की कमी या बाढ़ के पानी की ज्यादा नहीं है, बल्कि ज्यादा खतरा जंगली जानवरों से है. इस गांव में ग्राउंड रिपोर्ट कवर करते ही आजतक की टीम को जंगली राइनो दिखाई पड़ा. ऐसा मंजर देखकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं, तो सोचिए गांव के लोगों का क्या हाल होता होगा?

गांवों में दस्तक दे रहे जंगली जानवर

बोकाघाट के ये गांव काजीरंगा जंगल के दूसरे सिरे से जुड़े हैं. जहां जंगल खत्म होता है, वहां से गांव शुरू होते हैं. बाढ़ का पानी आगे जाते ही जानवर तटबंधों की ओर चले आते हैं. यहां तक कि गांव में लोगों पर हमला भी किया. इन तस्वीरों में छोटे-छोटे बच्चे काजीरंगा के जंगली गैंडे से महज 100 मीटर की दूरी पर तटबंध पर खड़े होकर उसे निहार रहे हैं. सुरेंद्र और बरनाली सैकिया ने आजतक को बताया कि हाल ही में जब बाढ़ का पानी ऊपर आया, तो जंगली हिरण से लेकर शेर, हाथी और गेंडे कई बार गांव में दस्तक दे चुके थे.

अगर सरकार सही व्यवस्था करती, तो न आती बाढ़

असम सरकार की ओर से अलग-अलग जिलों में प्रशासन राहत बचाव कार्य में लगा हुआ है. गांव में रहने वाले एक्टिविस्ट प्रणव सरकार से खासे नाराज हैं और कहते हैं कि अगर तटबंधों को लेकर सरकार ने सही व्यवस्था की होती, तो बाढ़ का पानी गांव में नहीं आता. प्रणव का कहना है कि आसपास कोई भी स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं है. ऐसे में महामारी का खतरा बढ़ रहा है, तो लोग कहां जाएंगे.

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वैसे तो असम में ब्रह्मपुत्र अपना प्रकोप हर साल मॉनसून के दौरान दिखाती है, लेकिन इस बार उसे कुछ ज्यादा ही गुस्सा आ गया था. बर्बादी के मंजर जहां-तहां दिखाई पड़ते हैं और हालात सामान्य होने में फिलहाल लंबा वक्त लगेगा. जाहिर है इस प्रकोप से प्रभावित हजारों लाखों की जिंदगी भी सामान्य होने के लिए इंतजार कर रही है, लेकिन दूसरी समस्याएं मुंह बाए खड़ी हो रही हैं.

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